केरल में एलडीएफ की सत्ता में वापसी को ऐतिहासिक इसलिए माना जा रहा है कि पिछले चार दशक में केरल में कोई भी सत्ताधारी पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सीएम पी विजयन दो साल में संकटमोचक बनकर उभरे और एलडीएफ गठबंधन को सशक्त नेतृत्व देते हुए पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के लिए सत्ता की दहलीज पर ला खड़ा किया है।
समझ नहीं आ रहा, जनता ने इतना बड़ा जनादेश क्यों दिया? केरल विधानसभा चुनाव 2021 में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्रन ने कहा है कि एलडीएफ सरकार भ्रष्टाचार के लिए लोगों के बीच बदनाम है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि प्रदेश की जनता ने इस चुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री को इतना बड़ा जनादेश क्यों दिया गया? हम यूडीएफ की हार के पीछे के कारणों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेंगे। अब चर्चा का विषय यह है कि आखिर सीएम पी विजयन ने विगत दो वर्षों में ऐसा क्या किया कि एलडीफ पहले से ज्यादा बहुमत से सत्ता में वापसी करने में सफल हुई। इस बात से पर्दा हटाने के लिए जरूरी है कि सीएम विजयन की पिछले दो साल की सियासी रणनीतियों को जानना जरूरी है, जिसके दम पर उन्होंने एलडीएफ दोबारा सरकार बनाने जा रही है।
एलडीएफ ने बदली सियासी चाल दरअसल, लोकसभा चुनाव में हार के बाद वाममोर्चा का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री विजयन पर आ गया। लोकसभा चुनाव 2019 में वाम मोर्चा को मिली करारी हार के बावजूद स्थानीय निकाय चुनाव में वाम मोर्चा ने शानदार जीत दर्ज की है। सीएम विजयन ने नई रणनीति के तहत काम करते हुए ग्राम पंचायत स्तर से लेकर जिला पंचायत स्तर तक युवाओं और महिलाओं को आगे बढ़ाने का काम किया। युवाओं और महिलाओं ने बड़ी संख्या में सीटें दिलाईं। स्थानीय निकाय चुनाव में यह फार्मला सफल होने के बाद विधानसभा चुनाव में भी विजयन ने अपना भरोसा युवाओं और महिलाओं में जताया और उन्हें एलडीएफ की ओर से टिकट देकर सियासी मैदान में उतार दिया। एलडीएफ का यही दांव सफल रहा। दलित और पिछड़ी जाति के लोगों का बड़ा तबका वामपंथियों के साथ पहले से ही बने हुआ है। इसी के चलते है कि विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा का पलड़ा केरल में काफी भारी रहा।
आपदा में फंसे लोगों के बीच बनाई संकटमोचक की छवि पिछले दो से तीन साल के दौरान सीएम पिनराई विजयन केरल के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता के रूप में भी उभरकर सामने आए हैं। मूसलाधार बारिश की वजह से बार—बार आई बाढ़, समुद्र में आया चक्रवाती तूफान निपाह और कोरोना वायरस संकट के दौरान विजयन सरकार ने लोगों की जान बचाने की भरसक कोशिया की है। उनके इन प्रयासों की दुनियाभर में तारीफ भी हुई थी। सबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर महीनों तक चले सियासी तूफान से भी विजयन ने केरल को बचाया और सांप्रदायिक सद्भावना कायम रखी।
एझावा समुदाय से होना भी सीएम के पक्ष में गया केरल के सीएम पी विजयन पिछड़ी जाति के एझावा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस वजह से उन्हें दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों में लोकप्रिय हैं। इस समुदाय के अधिकांश लोग कृषि मजदूर या ताड़ीतासक, छोटे और मझले किसान, कृषि मजदूर और सामान्य मजदूर है। इनकी आबादी भी केरल में अच्छी खासी है।
कांग्रेस से कहां हुई चूक? दो साल पहले लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद भी कांग्रेस के नेतृत्व वलाी यूडीएफ के नेता एंटी इनकंबेंसी का केरल में लाभ नहीं उठा पाए। केरल कांग्रेस के नेताओं में जारी आपसी खींचतान, गुटबाजी ने कांग्रेस के असर कमजोर हुर्ई। हालांकि राहुल गांधी ने कमान अपने हाथों में थाम रखी थी लेकिन सभी को साथ लेकर नहीं चल पाए। उन्होंने पी विजयन सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए तरह-तरह के सियासी प्रयोग भी किए। मछुआरों के साथ समुद्र में नाव पर जाना और समुद्र में छलांग लगाकर तैरना, युवाओं और महिलाओं से सीधा संपर्क बनाना, गरीबों के घर भोजन करना, युवाओं के साथ खेलना आदि शामिल हैं। इन सबके बावजूद कांग्रेस पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई और उनके सभी जादू सीएम विजयन के सामने असरकारी साबित नहीं हुए।