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West Bengal Assembly Elections 2021: ममता को उम्मीद, तीसरी बार उन्हें सीएम बनाने में यह वर्ग निभाएगा बड़ी भूमिका

locationनई दिल्लीPublished: Mar 19, 2021 08:36:05 am

Submitted by:

Ashutosh Pathak

पश्चिम बंगाल में सभी राजनीतिक दलों की खास नजर इस बार ओबीसी वर्ग के वोटों पर है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसने फायदा दिलाया, तो ममता बनर्जी अपने घोषणा पत्र में कुछ जातियों को इसके तहत आरक्षण दिलाने का वादा कर दिया।
 

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नई दिल्ली।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Aseembly Electons 2021) के लिए पहले चरण की वोटिंग 27 मार्च को है। ऐसे में सभी दलों ने पहले चरण से जुड़ी विधानसभा सीटों पर प्रचार अभियान तेज कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को इसी क्रम में पुरुलिया में जनसभा को संबोधित किया। यह सीट दलितों के प्रभाव वाली मानी जाती है।
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ममता बनर्जी ने घोषणा पत्र में किया वादा
इससे अलग, राज्य में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा समेत तमाम दूसरे दलों की नजर अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वोटों पर भी है। देखा जाए तो तृणमूल ने अपने घोषणा पत्र में ऐलान भी किया है कि वह तामुल, शाह, महिसिया और तिली, जातियों को ओबीसी आरक्षण के दायरे में लाएगी। दूसरी ओर, एक चुनावी जनसभा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा ने भी ऐलान किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो इन समुदायों को ओबीसी के तहत आरक्षण का लाभ मिलेगा।
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पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हुआ फायदा
इससे पहले, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम की बात करें तो भाजपा को एससी-एसटी और ओबीसी बाहुल्य क्षेत्रों में काफी वोट मिले। खासकर, दक्षिण बंगाल में उन्हें अधिक फायदा हुआ। शायद यही प्रमुख कारण रहा, जिससे भाजपा को तृणमूल कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले इन क्षेत्रों सेंध लगाने में मदद की। एससी और एसटी वोटों से भाजपा को उत्तर 24 परगना, नादिया और जंगलमंहल में बेहतर चुनाव परिणाम हासिल करने में मदद मिली। वहीं, ओबीसी वोटों के ट्रांसफर से भाजपा को पूर्व और पश्चिम मिदनापुर, हुगली और हावड़ा जैसे जिलों में सीटें जीतने में सहायता की।
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आरक्षण का वादा दिला सकता है अच्छे वोट
टीएमसी को उम्मीद है कि आरक्षण का वादा, उसे चुनाव में अच्छे वोट दिला सकता है। पहली बार सत्ता संभालने के करीब एक साल बाद वर्ष 2012 में ममता बनर्जी की सरकार ने राज्य में पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अतिरिक्त) सेवा और पदों में रिक्तियों का आरक्षण विधेयक 2012 पारित किया था। यह राज्य में कुछ अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण देता था। वहीं, सिद्दीकी और सैयद को छोडक़र सभी मुस्लिम समाज इस सूची में ओबीसी-ए या ओबीसी-बी के तौर पर शामिल हैं। वहीं, हिंदुओं में ओबीसी सूची में कंसारी, कहार, मिदेस, कपाली, कर्मकार, कुम्हार, कुर्मी, मजी, मोदक, नेपेट्स, सूत्रधार, स्वर्णकार, तेलिस और कोलस को शामिल किया गया है।
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सरकार ने 38 लाख प्रमाण पत्र जारी किए
राज्य के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की ओर से करीब 38 लाख ओबीसी प्रमाण पत्र जारी किए हैं। हाल ही में राज्य सरकार ने दुआरे सरकार यानी दरवाजे पर सरकार कार्यक्रम के तहत एक योजना चलाई, जिसमें हजारों और ऐसे नामांकन का दावा किया गया। तब महसी, तोमर, तिली और शाह जैसे वर्गों को ओबीसी से बाहर रखा गया था। ऐसे में देखना होगा कि इन जातियों को ओबीसी वर्ग में लाने के लिए ममता बनर्जी ने अपने घोषणा पत्र में जो दावा किया है, वह उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सहयोग करता है या नहीं।
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