बात अगर ओपी राजभर की की जाए तो इतिहास गवाह है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अकेले दम पर कभी भी जीत नहीं दर्ज कर सकी है। अगर बात 2012 के विधानसभा चुनाव की जाए तो राजभर की पार्टी ने 52 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था और इनमें से किसी भी सीट पर उसे जीत नहीं मिली थी। बल्कि उसके 48 उम्मीदवारों की तो जमानत भी जप्त हो गई थी। वोट प्रतिशत की बात करें तो इस चुनाव में राजभर की पार्टी को महज 5 फ़ीसदी वोट मिले थे।
लेकिन यही पार्टी जब किसी बड़े राजनीतिक दल के साथ मिल जाती है तो जरूर बड़ा खेल करती है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को पौने पांच लाख के करीब वोट मिले थे। इसमें 13 विधानसभा सीटों पर सुभासपा को 10,000 से लेकर लगभग 48,000 तक वोट मिले थे, जबकि हर सीट पर उसे 5000 से ज्यादा वोट मिले थे। गाजीपुर, बलिया और वाराणसी की कुछ सीटों पर तो उसे बीजेपी से भी ज्यादा वोट मिले थे। बीजेपी ने इसी कड़ी को पकड़कर 2017 में खुद को मजबूत किया और ओमप्रकाश राजभर से गठबंधन कर जो वोट ओपी राजभर की पार्टी को 2012 में मिले थे, उस वोट बैंक को बीजेपी की ओर शिफ्ट करया। नतीजा उसे पूर्वांचल में 106 विधानसभा सीटों पर जीत मिल गई।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का वोट बैंक 2017 में बीजेपी की ओर शिफ्ट नहीं हुआ होता तो शायद इन सीटों पर जीत समाजवादी पार्टी की होती। ऐसे सीटों की संख्या लगभग 20 के आसपास रही। यही वजह रही कि अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ कर लिया ताकि इस बार कम से कम इन सीटों पर ओपी राजभर का वोट बैंक समाजवादी पार्टी के साथ रहे ना कि बीजेपी के साथ।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का ही कमाल रहा कि इस विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के आजमगढ़ और गाजीपुर में भाजपा का खाता तक नहीं खुल सका। मऊ में बड़ी मशक्कत के बाद एक विधानसभा सीट पर कमल खिल सका जबकि तीन सीट पर सपा-सुभासपा गठबंधन को जीत हासिल हुई। जौनपुर में सपा-सुभासपा गठबंधन पांच और बलिया जिले में तीन विधानसभा सीट जीतने में कामयाब रहा। साथ ही पिछली बार की तुलना में इस बार सुभासपा के विधायकों की संख्या चार से बढ़कर छह हो गई।

वहीं अगर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बात करें तो सोनेलाल पटेल के परिवार से पहली बार 2012 में अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी की रोहनिया सीट पर जीत का परचम लहराया। उसके बाद से उनका कद लगातार ऊपर ही बढ़ता गया। 2012 में विधायक बनने के दो साल बाद ही बीजेपी से गठबंधन किया और मिर्जापुर से सांसद बन गईं। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 2014 में किया गया गठबंधन कायम है जिसके चलते पार्टी ने 2017 फिर 2022 में अपना परचम लहराया। बता दें कि 2017 में अनुप्रिया की पार्टी को नौ सीट पर जीत हासिल हुई थी। वहीं 2022 में उसके सहयोग से बीजेपी ने वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र में क्लीन स्वीप किया। साथ ही भदोही में एक और जौनपुर में चार सीटों पर फतह हासिल की। अकेले अपना दल (सोनेलाल) की बात करें तो अबकी दफा पार्टी ने 12 सीटें जीत ली हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ओपी राजभर हों या अनुप्रिया पटेल दोनों ने ये साबित किया है कि पूर्वांचल के राजभर और पटेल बिरादरी के मतदाताओं में उनकी अच्छी पैठ है। बिरादरी के लोगों की समस्याओं को उचित मंच दिलाकर आने वाले समय में वो अपने सियासी कद को और बुलंदियों पर पहुंचा सकते हैं। इस चुनाव ने ये साबित कर दिया है कि इनसे नाता तोड़ना घाटे का सौदा है। ये जोखिम कोई नहीं उठा सकता।