बता दें कि वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ही नई पेंशन स्कीम उत्तर प्रदेश में लागू की थी। तब सपा सरकार को समर्थन देने वाली भाजपा ने सदन से वाकआउट किया था जिसके चलते नई पेंशन स्कीम का प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हो गया। हालांकि उस वक्त भी शिक्षक विधायक दल के नेता, विधानपरिषद के पूर्व सभापति ओमप्रकाश शर्मा ने इस प्रस्ताव का जमकर विरोध किया लेकिन उनकी आवाज नक्कर खाने में तूती बन कर रह गई।
पुरानी पेंशन व्यवस्था को समाप्त करने की पहल भले मुलायम सिंह सरकार में हुई लेकिन उसके बाद मायावती, अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री बने और इन तीनों के कार्यकाल में शिक्षक-कर्मचारी समन्वय समिति ने प्रदेशव्यापी आंदोलन किया पुरानी पेंशन बहाली को लेकर लेकिन उन्हें सरकारी तंत्र के विरोध का ही सामना करना पड़ा।
यहां तक कि सत्ता से दूर होने पर योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह और केशव प्रसाद मौर्य ने भी शिक्षक-कर्मचारियों के पुरानी पेंशन बहाली की मांग का समर्थन किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री और यहां तक कि केंद्र सरकार को भी पत्र लिखा। लेकिन सत्ता में आने के बाद ये मुद्दा वो भूल गए। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में शिक्षकों और कर्मचारियों के दबाव में एक कमेटी जरूर बनाई गई पर उसकी रिपोर्ट का कुछ भी पता नहीं चला।
2005 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जब नई पेंशन व्यवस्था देश भर में लागू की तो केवल केरल व पश्चिम बंगाल ने उसे स्वीकार नहीं किया। यहां तक कि तमिलनाडु में डीएमके ने चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू करने का वादा किया था लेकिन सरकार बनने के बाद मामला केंद्र के पाले में डाल दिया। जहां तक पश्चिम बंगाल में पुरानी पेंशन व्यस्था लागू होने की बात है तो, वहां 2020 तक पांचवां वेतन आयोग लागू रहा। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वहां भी स्थिति बदल गई।
पुरानी पेशन बहाली की मांग को लेकर कर्मचारी संगठन अटेवा ने तो राष्ट्रव्यापी आंदोलन भी चलाया। कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी पेंशनर्स अधिकार मंच का गठन किया गया। इसके अलावा शिक्षकों और कर्मचारियों के अलग-अलग संगठनों की ओर से भी आंदोलन लगातार जारी रहा। पर सत्ताधारी दलों ने कभी इसे तवज्जो नहीं दी। अब अखिलेश यादव की इस घोषणा से कर्मचारियों और संगठनो को एक उम्मीद जगी है। अब शिक्षकों और कर्मचारियों का दबाव बढ़ गया है। ऐसे में शिक्षकों व कर्मचारियों में उम्मीद की किरण जगी है कि अखिलेश अपना वादा पूरा करेंगे।
बता दें कि पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली को लेकर आंदोलनरत शिक्षकों व कर्मचारियों पर 2016 में अखिलेश यादव की सरकार में लाठीचार्ज भी हुआ था जिसमें शिक्षक की मौत हो गई थी। इसका खामियाजा अगले वर्ष होने वाले चुनावों में सपा को देखने को मिला था और सपा की हार हुई थी। ऐसे में जानकार मानते है कि सपा अब शिक्षको की ताकत को समझ चुकी है।
आखिरकार 17 साल बाद अखिलेश ने पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा की है। इससे हम सभी शिक्षकों और कर्मचारियों के मन में सकारात्मक संदेश जरूर गया है। हम सभी इसका स्वागत करते हैं। यूपी की राजनीति में अखिलेश की इस घोषणा का स्वागत करते हैं। उम्मीद की जाती है कि ये महज चुनावी घोषणा या जुमला न साबित हो। -डॉ प्रमोद कुमार मिश्र, प्रदेश मंत्री, माध्यमिक शिक्षक संघ (शर्मा गुट)