पिछले कुछ वर्षों में पंजाब की अर्थव्यवस्था काफी चरमरा गई है और उसे सही ट्रैक पर लाने के लिए AAP को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। भगवंत मान के समक्ष जनता से किए वादे को पूरा करने के लिए पैसे की चुनौती होगी। वर्तमान में पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है जो राज्य की जीडीपी का 56 फीसदी है। 2020-21 में, सरकार ने कर राजस्व का 54 प्रतिशत कर्ज पर ब्याज चुकाने में खर्च कर दिया था। पंजाब में प्रति व्यक्ति आय भी पिछले दो दशकों से लगातार गिर रही है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में राज्य का नंबर 3 से फिसलकर 19 वें नंबर पर पहुँच गया है।
पंजाब का राजकोष पहले से चरमराया हुआ है। इसके साथ ही राजकोष के धन का रिसाव भी बड़ी समस्या है। शराब हो या रेत से मिलने वाला राजस्व अपेक्षा से कम ही सरकार के पास पहुंचता है। आबकारी विभाग द्वारा विभिन्न शराब ब्रांडों के लिए प्राइस बैंड निर्धारित करने के बावजूद, शराब की कीमतें हर जगह भिन्न हैं। इसके पीछे कारण भ्रष्टाचार भी है जिसमें मंत्री लेवल तक के लोग लिप्त पाए गए हैं।
कांग्रेस सरकार में अवैध बालू खनन धड़ल्ले से चल रहा था। भले ही चन्नी सरकार ने इसपर थोड़ा नियंत्रण किया, परंतु ये समस्या काफी बड़ी है। जमीनी स्तर पर लोगों का कहना है कि माफिया आज भी कीमतों को नियंत्रित करते है। अमरिंदर सिंह ने तो ये तक कहा था कि खुद पार्टी के विधायक अवैध खनन में शामिल हैं। अब भगवंत मान इसे कैसे खत्म करते हैं सबको नजर इसपर होगी।
नशा कारोबार
पंजाब में सरहद पार से आने वाला नशा यहाँ के युवाओं को बर्बाद कर रहा है। इससे भी दुखद ये है की खुद युवा ही इसकी तस्करी का हिस्सा बन रहे हैं। इन युवाओं को नशे से मुक्त करना और पंजाब के युवाओं के भविष्य को बचाने की चुनौती भी भगवंत मान के समक्ष है।
पंजाब दुनिया में गेहूं के सकल उत्पादक के रूप में 7 वें स्थान पर है। चावल के मामले में, इसका बाजार अधिशेष थाईलैंड के बाद दूसरे स्थान पर है। यहाँ धान और गेहूं की अंधाधुंध बुवाई के कारण जमीनें बंजर होती जा रही हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया है कि राज्य के 18 जिलों में इसका भूजल अत्यधिक दोहन के कारण कम होता जा रहा है। 1998 में 3 से 10 मीटर से अब 30 मीटर से भी नीचे पानी चला गया है।
2017 में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कृषि विकास पिछले दो दशकों में स्थिर होना शुरू हो गया है जो 1986 में 5.07 प्रतिशत प्रति वर्ष से गिरकर 2015 में केवल 1.6 प्रतिशत रह गया।
हरित क्रांति के कारण जो राज्य कभी चर्चा में था वो अब कृषि ऋण के कारण चर्चा में रहता है। पिछले साल जुलाई में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अनुसार, पंजाब में किसानों के 21.94 लाख बैंक खातों पर 71305 करोड़ का कृषि ऋण बकाया है।
समस्याएं कई हैं, परंतु वो सुलझ नहीं रही हैं। कृषि ऋण के कारण किसानों की आत्महत्याएं भी बढ़ रहीं है। इसे सुलझाना आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है।