बता दें कि यूपी की सत्ता पर फिर से काबिज होने के लिए अखिलेश ने 10 दलों से गठबंधन किया है। इनमें से कइयों के लिए सीटें छो़ड़ी जा रही हैं। ये सबसे बड़ा संकट है क्योंकि पिछले चुनाव में मोदी लहर में दूसरे व तीसरे नंबर पर आने वाले सपा नेताओं व कार्यक्ताओं के भीतर मायूसी पैदा कर रहा है। हालांकि अखिलेश खुद इस बाद को शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। इसी के तहत उन्होंने 'त्याग' का फार्मूला लागू किया है। वह कहते हैं कि अपनों के कुछ ज्यादा ही त्याग करना पड़ा है।
महा गठबंधन के चलते टिकट कटने से पूरब से पश्चिम तक में सपा कार्यकर्ता में मायूसी है। वजह भी साफ है, ये वही कार्यकर्ता हैं जो संकट के वक्त अखिलेश के साथ रहे। अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा है। इसमें कई ऐसे भी हैं जो 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में दूसरे-तीसरे नंबर पर रहे। अब महा गठबंधन और दूसरी पार्टी खास तौर पर भाजपा से आए क्षत्रपों और उनके करीबियों के टिकट को लेकर पार्टीजनों का टिकट कट रहा है या कटने की उम्मीद है। ऐसे में उनका मायूस होना लाजमी भी है। ऐसे में ऐसे कार्यकर्ता जो ये मान कर चल रहे थे कि उन्हें तो टिकट मिलेगा ही उनके मान मन्नौवल और प्रलोभन का दौर शुरू हो गया है। इसमें किसी को एमएलसी तो किसी को 2024 में लोकसभा का टिकट देने की बात की जा रही है। ऐसे भी कार्यकर्ता हैं जिन्हें सरकार बनने पर दर्जा प्राप्त मंत्री बनाने का प्रलोभन भी दिया जा रहा है।
वैसे कई ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जिन्हें सरकार बनने पर ठीक-ठाक ओहदा देकर समायोजित करने की बात भी कही जा रही है। वैसे पार्टी सूत्रों की बात पर यकीन करें तो बहुतेरे सपा कार्यकर्ता अखिलेश के समायोजन वाली नीति पर भरोसा भी करने लगे हैं। उन्हें अपने नेता पर पूरा विश्वास है कि उन्होंने जो कहा है वो सच साबित करेंगे। लेकिन ये आश्वासन की घुट्टी कितनी कारगर होती है इसका खुलासा तो 10 मार्च के बाद ही होगा।
इस महा गठबंधन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अपनों और अपने सरीखों के टिकट कटे हैं। मसलन, बरेली में कांग्रेस से आई नेत्री के लिए, हरदोई के संडीला से। अब हरदोई की सीट सुभासपा के खाते में चली गई है। इसी तरह से अब सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को लेकर बनारस के शिवपुर विधानसभा सीट से दावेदारी इन दिनों चर्चा में है। बता दें कि यहां भी पिछली बार सपा दूसरे नंबर पर थी।