बता दें कि बनारस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने से पहले से ही बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। खास तौर पर शहर की दो विधानसभा सीटों पर करीब तीन दशक से बीजेपी का कब्जा है। इन सीटो में शहर दक्षिणी और कैंट विधानसभा की सीट प्रमुख है। शहर दक्षिणी सीट पर 1989 से 2017 तक पूर्व मंत्री श्यामदेव राय चौधरी विधायक 'दादा' रहे। पिछली बार 2017 में दादा का टिकट काट कर बीजेपी ने नीलकंठ तिवारी के रूप में नया चेहरा उतारा। नीलकंठ जीते भी और योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के सहयोगी भी बने। इसी इसी तरह से कैंट विधानसभा सीट पर हरिश्चंद्र श्रीवास्तव, उनकी पत्नी ज्योत्सना श्रीवास्तव और अब उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव विधायक हैं।
यहां ये भी बता दें कि दोनों ही सीटों पर बंगाली फैक्टर सबसे मजबूत रहा। शहर दक्षिणी जहां मुस्लिम आबादी संग ब्राह्मण और बंगाली मतदाताओं की बहुतायत है। दादा को यूं तो सभी वर्गों का वोट मिलता रहा। लेकिन बंगाली वो भी कायस्थ मतों का ध्रुवीकरण अच्छे से हो जाता रहा। कमोबेश यही हाल कैंट विधानसभा क्षेत्र का है। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की पत्नी ज्योत्सना श्रीवास्तव खुद बंगाली परिवार से हैं। ऐसे में कैंट क्षेत्र के बंगाली मतों का ध्रुवीकरण करने में वो सफल होती रही हैं। ऐसे में अब सपा, सुभासपा और तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी के जरिए इन दोनों विधानसभा सीटों को साधने की साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं।
वहीं उधर सुभासपा ने अपने अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को शिवपुर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक व कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर के विरुद्ध मैदान में उतारने का ऐलान कर बड़ा दांव खेला है। हालांकि सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन ऐसा होता है तो एक-दो नहीं बल्कि आठ में से चार सीटों पर सपा, सुभासपा और तृणमूल कांग्रेस बीजेपी को बड़ी कठिन चुनौती पेश करने में सफल हो सकती है।
माना जा रहा है कि टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फरवरी में वाराणसी आ सकती हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि वाराणसी से पहले वो लखनऊ से वर्चुअल रैली करेंगी। उसके बाद वाराणसी आएंगी। ऐसे में स्थानीय टीएमसी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में ममता बनर्जी की सभा के लिए तैयारी में जुट गए हैं। यहां ये भी बता दें कि वाराणसी और पूर्वाचंल में टीएमसी की तैयायरियों का जिम्मा वाराणसी और पूर्वांचल के ब्राह्मण नेता औरंगाबाद हाउस के वारिस राजेशपति त्रिपाठी और उनके बेटे ललितेशपति त्रिपाठी संभाल रहे हैं। पिछले दिनों राजेशपति बनारस आए भी रहे और इस दौरान उन्होंने अपनों संग बैठक भी की। ऐसे में माना ये जा रहा है कि ममता के बनारस आने और उनकी सभा से सपा के पक्ष में एक माहौल बनेगा। ममता के बनारस दौरे पर बीजेपी की भी नजर होगी।
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी की अजगरा विधानसभा से सुभासपा और सेवापुरी से अपना दल (एस) के प्रत्याशी को जीत मिली थी, जबकि शेष अन्य 6 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने परचम लहराया था। उस दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मैजिक के बावजूद भाजपा के प्रत्याशी जातिगत समीकरणों के आधार पर ही चुने गए थे। ऐसे में अब सपा और सुभासपा के रणनीतिकारों का कहना है कि वाराणसी में भाजपा को घेरने से उसका राजनीतिक लाभ उन्हें न केवल वाराणसी बल्कि पूर्वांचल की अन्य सीटों पर भी मिलना तय है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो विधानसभा चुनाव में सुभासपा, सपा और टीएमसी के गठबंधन से बीजेपी को कांटे की टक्कर मिल सकती है। सब कुछ रणनीति के तहत हुआ तो वाराणसी में बीजेपी प्रत्याशियों की राह पिछली बार की तरह आसान नहीं होगी।