‘घाट-घाट’ का फीडबैक लेकर इन चालकों की बहुत अच्छी-खासी राजनीतिक समझ विकसित हो गई है। करीब दस दिन तक बंगाल के अलग अलग क्षेत्रों में चुनावी कवरेज के दौरान टैक्सियों का बड़ा सहारा था। सफर के दौरान लगभग हर टैक्सी वाले से चुनाव पर चर्चा हुई। लगा कि इनकी टैक्सियों में सवारी कर रहे हैं तो इन्हें सिर्फ ‘सारथी’ ही नहीं ‘महारथी’ मानना होगा। कई से बातचीत में ये निष्कर्ष निकाला कि इस बार किसी को बहुमत नहीं मिलना है। कांग्रेस वाममोर्चे की मदद से ममता की सरकार ही बनेगी।
कोलकाता की पहचान पीली टैक्सियां –
कोलकाता महानगर में आवागमन के लिए लगभग खटारा हो चुकी पीली टैक्सियां बड़ा सहारा हैं। यहां दशकों से हिन्दुस्तान मोटर्स की एंबेसडर टैक्सियों का वर्चस्व रहा है। यह कोलकाता की पहचान हैं। इनका तगड़ा नेटवर्क है। हालांकि ये सरकारी योजनाओं की तरह जितनी चलती हैं उतनी ही बजती भी हैं। कोलकाता की सड़कों पर कभी पीली टैक्सियों का एकाधिकार हुआ करता था। पीली टैक्सियों का वर्चस्व तोडऩे के लिए ममता सरकार ने दूसरी कंपनियों को टैक्सी के तौर पर परमिट दिया लेकिन इनका वर्चस्व कम नहीं हो सका। टैक्सी चालक बताते हैं, ममता बनर्जी सरकार ने कई बार इनका रंग बदलने के प्रयास भी किया, कई तरह की शर्तें थोपी गई लेकिन यूनियन के विरोध से यह मंशा पूरी नहीं हुई। नए दौर में अब एप आधारित तकनीकी रूप से बेहतर वातानुकूलित टैक्सियां आ गई हैं। इससे पीली टैक्सियां कम हो रही हैं। वर्तमान में यहां 4 से 6 हजार पीली टैक्सियां चल रही हैं। ऐप वाली टैक्सियां अब ज्यादा हैं।
बहुमत मिलने को लेकर आशंकित-
मनोज कुमार यादव कहता है, सत्ता में कोई भी आए, अकेले दम पर बहुमत नहीं मिलेगा। उसका मानना है, किसी को बहुमत मिलना भी नहीं चाहिए। बहुमत से आई सरकार मनमानी पर उतर आती है। सुनील मांझी को लगता है कि भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी है। इस बार परिवर्तन नहीं हुआ तो भाजपा ऐसा माहौल फिर से नहीं बना पाएगी। मूलरूप से बिहार के लखीसराय निवासी राजू का मानता है कि बंगाल में रास्तों की स्थिति अच्छी नहीं है। उनका अनुभव है कि दूसरे प्रदेशों की सड़कें यहां से कहीं अधिक आरामदायक और सुरक्षित हैं।
स्वास्थ्य व रोजगार को लेकर नाराजगी –
बिमल सेन के अनुसार बिजली, रास्ता और पानी की अच्छी सुविधा कर दो तो लगता है कि कोई सरकार है। स्वास्थ्य व रोजगार की स्थिति बहुत खराब है। नावदा के धर्मराज सिंह ने बताया कोलकाता में मुश्किल से एक तिहाई टैक्सी चालक बंगाली होंगे। अधिकतर उत्तरप्रदेश व बिहार से हैं। सालों से रोजगार नहीं होने से अब बंगाली भी टैक्सियां चलाने लगे हैं। रहमान चौधरी कहता है, टीएमसी का हारना तो मुश्किल है अगर हारती है तो लड़ाई का नया मोर्चा होगा। वामपंथियों की तरह दीदी कमजोर नहीं होंगी।
सिंगूर आंदोलन से सत्ता मिली पर पिछड़ गया बंगाल-
टैक्सी चालक बबलू गुप्ता का कहता है, साहब सिंगूर में फैक्ट्री होती तो बंगाल की तस्वीर ही अलग होती। सिंगूर आंदोलन से ममता को सत्ता तो मिल गई लेकिन बंगाल पिछड़ गया। निर्मल मित्रा बताता है, 2006 के चुनाव में भी ऐसी ही तस्वीर थी। लगा कि ममता, बुद्धदेव भट्टाचार्य को बेदखल कर देंगी, लेकिन वह फिर सत्ता में लौटे। आज के हालात में ममता फिर सत्ता में आ सकती है। असद्दुल मौला और रमजान अली का मानना है, ममता फिर सत्ता में आएंगी। उन्होंने कहा, आज शहर की 80 फीसदी टैक्सियां ममता के सहयोग से ही चल रही हैं।