सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर ये धर्म परिवर्तन गाजियाबाद में ही क्यों हुआ। इसके पीछे राजनीति जानकारों का मानना है कि प्रदेश भर में धर्म परिवर्तन के सर्वाधिक मामले पश्चिमी उप्र में ही आते रहे हैं। इस इलाके में धर्म परिवर्तन की राजनीति हावी रही है। यह भी कह सकते हैं कि पश्चिमी उप्र में धर्मातरण की राजनीति सुलगती रही है। जिससे भाजपा को लाभ मिलता रहा है। लेकिन अब 2017 के बाद से परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। जो कि भाजपा के पक्ष में नहीं हैं। वहीं गाजियाबाद में पिछले कई माह में कई मामले धर्म परिवर्तन के सामने आए हैं जिन्होंने राजनीतिक तूल भी पकड़ा है।
धर्मान्तरण के इस मामलों को हिंदू संगठनों ने प्रमुखता से उठाया तो भाजपा ने भी इसको समर्थन दिया। जिसको लेकर विपक्ष के निशाने पर सरकार और भाजपा दोनों ही आ गए। अब जबकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं तो ऐसे में विपक्ष इस मुददे को उठाकर भाजपा की घेरने की कोशिश में लगा हुआ था। विपक्ष के धर्मातरण जैसे चुनावी मुददे को खत्म करने के लिए ही वसीम रिजवी के धर्मातरण की पटकथा गाजियाबाद के डासना पीठ में तैयार की गई।
इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी अक्सर विवादास्पद बयानों के कारण चर्चा में रहे हैं। वसीम रिजवी के सनातन धर्म अपनाने के ऐलान से राजनीति में हलचल मच गई है। इसे लोग घर वापसी बता रहे हैं। वसीम रिजवी ने खुद इसे घर वापसी करार दिया है। जब उनके सामाजिक संबंध अच्छे होने लगे तो उन्होंने नगर निगम का चुनाव लड़ने का फैसला किया। यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई। इसके बाद वो वक्फ बोर्ड के सदस्य बने और उसके बाद चेयरमैन के पद तक पहुंचे। वो लगभग दस सालों तक बोर्ड में रहे।
वसीम रिजवी 2008 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य बने। 2012 में शिया वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में हेरफेर के आरोप में घिरने के बाद सपा ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो रिजवी ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए मुस्लिम विरोध का सहारा लिया है।