समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आज हरदोई पहुंचे। जहां उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का अनावरण किया। हरदोई को नरेश अग्रवाल के गढ़ के रूप में जाना जाता है। नरेश अग्रवाल जिस दल में होते हैं। वह दल यहां बहुमत में रहता है। हालांकि, नरेश अग्रवाल का गढ़ 2017 में भाजपा की आंधी में ढह गया था। हालांकि, मौसम का रुख भांपते हुए उन्होंने 2019 लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा ज्वाइन कर ली थी।
हरदोई में जनसभा को भी किया संबोधित अखिलेश यादव ने आज हरदोई के सदरपुर में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का अनावरण किया। साथ ही माधवगंज में एक जनसभा को भी संबोधित किया। इससे पहले अखिलेश यादव लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे के रास्ते मल्लावां होते हुए कार्यक्रम स्थल पहुंचे। इस रास्ते पर लगभग 20 जगह कार्यकर्ताओं ने उनके स्वागत किया।
हरदोई की राजनीति के केन्द्र में नरेश अग्रवाल राजनीतिक जानकर मानते हैं कि बिना नरेश अग्रवाल के अखिलेश यादव को अपना गढ़ वापस पाना मुश्किल है। दरअसल, हरदोई की राजनीति नरेश अग्रवाल के आसपास ही घुमती रहती है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि अग्रवाल ने जब किसी पार्टी को सपोर्ट किया है तो उसका परचम वहां लहराया है। यही वजह है कि बीते दिनों हरदोई पहुंचे अखिलेश यादव ने अग्रवाल को सपा में वापसी का ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया था।
हरदोई में बीजेपी का परचम 2002 में भाजपा को हरदोई की 8 सीटों में से 2 सीटें मिली थी। 4 सीट सपा को और 2 सीट बसपा को मिली थी। 2007 में 7 सीट बसपा को और एक सपा को मिली थी। जबकि 2012 में 6 सीटों पर सपा तो 2 सीटों पर बसपा का कब्जा हुआ था। जबकि 2017 में हरदोई से बसपा का सफाया हो गया। 7 सीटों पर भाजपा और एक सीट से नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल सपा से जीते थे। हालांकि, अब बाप बेटे दोनों ही भाजपा में हैं।
जिस पार्टी के नरेश उस पार्टी की हरदोई नरेश अग्रवाल मूल रूप से कांग्रेसी हैं। वह यूपी की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे हैं। 2002 में वह सपा में शामिल हुए। जबकि 2007 में बसपा की सत्ता आने के बाद नरेश अग्रवाल बसपा में शामिल हो गए और राज्यसभा सांसद भी बने। 2012 में वह एक बार फिर सपा में वापस हुए। हालांकि, 2017 के बाद कई क्षत्रपों की राजनीति तितर बितर हो गई और वह भाजपाई हो गए।