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UP Assembly Elections 2022 : महंगाई से परेशान आम जन मुखर, सता रही है रोजी-रोटी की चिंता

locationमुजफ्फरनगरPublished: Nov 23, 2021 12:15:30 pm

Submitted by:

lokesh verma

UP Assembly Elections 2022 : मुजफ्फरनगर में चाय की दुकानों से लेकर गांव की पंचायतों तक लोग विधानसभा चुनाव के बनते-बिगड़ते समीकरणों की चर्चा करते हुए मिले। कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलन से नाराज चल रहे किसानों के एक वर्ग के तेवर बदले हुए हैं। महंगाई पर बात छिड़ते ही लोगों की तकलीफ सामने आती है, लेकिन कानून-व्यवस्था में सुधार होने से लोगों के चेहरे पर संतोष के भाव उभरते हैं।

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नवनीत मिश्र

गंगा और यमुना के दोआब में बसा है मुजफ्फरनगर। यह खेती-किसानी के लिए जाना जाता है। यहां गन्ना और गेहूं की फसलें किसानों की समृद्धि का आधार हैं। मुजफ्फरनगर में चुनावी मुद्दों की पड़ताल करने पहुंचे, तो चाय की दुकानों से लेकर गांव की पंचायतों तक लोग विधानसभा चुनाव के बनते-बिगड़ते समीकरणों की चर्चा करते हुए मिले। कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलन से नाराज चल रहे किसानों के एक वर्ग के तेवर बदले हुए हैं। महंगाई पर बात छिड़ते ही लोगों की तकलीफ सामने आती है, लेकिन कानून-व्यवस्था में सुधार होने से लोगों के चेहरे पर संतोष के भाव उभरते हैं। लॉकडाउन में मुफ्त मिले राशन से गरीब वर्ग ने खुशी जताई, लेकिन रोजी-रोजगार पर पड़े असर से तनाव भी दिखा।
किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक राकेश टिकैत का घर भी इसी मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली में है। हम उनके गृह क्षेत्र का हाल जानने पहुंचे। हवेलीनुमा घर पर राकेश टिकैत के भाई और भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत के बेटे गौरव टिकैत मिले। उन्होंने तीनों कृषि कानूनों की वापसी को किसान आंदोलन की जीत बताया। लेकिन, यह भी कहा कि एमएसपी की गारंटी मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा। हालांकि, भाकियू युवा मोर्चा के अध्यक्ष गौरव के सुर नरम दिखे। सिसौली के सुरेश बालियान ने कहा, ‘पहले हम रात में खेतों में भी जाने से डरते थे। लेकिन, बड़े और छोटे अपराधियों के जेल जाने से क्राइम रुका है।’ बालियान खाप के ही जाट सुरेश ने कहा, ‘हमारे यहां किसान आंदोलन का आम किसानों के बीच बहुत ज्यादा असर नहीं रहा। लेकिन, आंदोलन के लंबा चलने से हमारा स्वाभिमान जरूर जुड़ गया। लेकिन, आंदोलन और वोट के बीच फर्क होता है।’
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यूपी से अधिक हरियाणा और पंजाब में गन्ने का रेट

किसान बलबीर ने कहा, ‘सरकार ने कानूनों की वापसी की घोषणा कर समझदारी दिखाई है। गन्ना किसानों को भुगतान की समस्या कुछ हद तक सुधरी है, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।’ किसान सरयू ने महंगाई को बड़ा मुद्दा बताया। कहा कि किसानी दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही है। डीजल के दाम ज्यादा होने से परेशानी है। किसान अवतार ने कहा, ‘सरकार ने हाल में 25 रुपए गन्ने का रेट बढ़ाया, लेकिन यह नाकाफी है। हरियाणा और पंजाब में गन्ने का रेट ज्यादा है।’
मुजफ्फरनगर में रोजी-रोजगार की समस्या

मुजफ्फरनगर शहर के लोगों से भी बात कर हमने मुद्दों की पड़ताल की। रोडवेज के पास एक दुकान में काम करने वाले मनोज ने कहा कि लॉकडाउन के बाद से रोजी-रोजगार रफ्तार नहीं पकड़ रही है। शहर के ही एक रेस्टोरेंट संचालक संजय शर्मा कहते हैं कि बहुत सारे रंजिशन अपराध क्रिया की प्रतिक्रिया में होते थे। जब क्रिया रुक गई, तो प्रतिक्रिया भी बंद हो गई। महावीर चौक के पास जाम में फंसे कार चालक मनोज कुमार काफी व्यथित दिखे। उन्होंने कहा, ‘जाम का हल कोई नहीं ढूंढ रहा।’ 28 वर्षीय सुशील ने कहा कि मुजफ्फरनगर में रोजी-रोजगार की समस्या है। रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है। यहां नए कल-कारखाने लगने चाहिए।
बढ़ती जा रही महंगाई

मीनाक्षी चौक पर एक चाय की दुकान पर नाजिम और सुरेश बैठे मिले। चुनावी मुद्दों के बारे में पूछे जाने पर नाजिम बोले, ‘महंगाई बढ़ती जा रही है। गाड़ी में डालने वाला तेल हो य खाने वाला, दोनों के दाम रॉकेट की तरह उछल रहे हैं। मुजफ्फरनगर की सूरत जैसे पहले थी, वैसे ही अब है।’ नाजिम ने आशंका जताई कि चुनाव नजदीक आने पर मुजफ्फरनगर के 2013 के दंगे चुनावी मद्दे बन सकते हैं, जबकि इसे लोग भूल चुके हैं। सुरेश कुमार ने कहा कि 2013 के दंगे पुरानी बात है। वह एक हादसा था, जिसे लोग भूल चुके। लेकिन, चुनाव में जख्म कुरेदे जाने पर दंगे भी मुद्दा बन सकते हैं।
डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा

जिले में कुल 6 विधानसभा सीटें हैं। 2017 के चुनाव में मुजफ्फरनगर की सभी 6 सीटों पर भाजपा ने क्लीन स्वीप कर सबको चौंकाया था। 2017 के मुकाबले 2022 के विधानसभा चुनाव में कुछ नए राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे हैं। किसान आंदोलन के बाद उपजे माहौल को भुनाने के लिए जहां सपा, रालोद और कांग्रेस की कोशिश है, वहीं भाजपा डैमेज कंट्रोल मोड में है। सपा और रालोद के संभावित गठबंधन की चर्चा लोगों की जुबान पर है। कौन दल किसके साथ जा रहा है, किस जाति के वोट किसके साथ जुड़ रहे हैं, ऐसी चर्चाएं आम हैं।
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