बता दें कि पडरौना के राजा साहब के राजा साहेब के रूप में विख्यात आरपीएन सिंह, सैंथवार के शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके पिता स्व. कुंवर सीपीएन सिंह, कुशीनगर से सांसद थे और 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा राज्य मंत्री रहे। न केवल इंदिरा गांधी बल्कि राजीव गांधी से भी उनकी घनिष्टता रही और पिता की उस परंपरा को आगे बढ़ाया आरपीएन सिंह ने और वो टीम राहुल गांधी के अहम् सदस्य रहे। पार्टी ने उन्हें यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए जारी स्टार प्रचारकों की टीम में शामिल किया था। इतना ही नहीं आरपीएन के बेहद करीबी रहे राज कुमार सिंह को खड्डा से टिकट भी दे दिया था। आरपीएन के एक अन्य करीबी मनीष कुमार जायसवाल को भी टिकट मिलना तय रहा। बावजूद इसके आरपीएन ने ऐन वक्त पर पाला बदल कर बीजेपी ज्वाइन कर ली। अब तो उनके करीबी खड्डा से कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार ने भी इस्तीफा दे दिया है। मनीष भी तैयारी में हैं।
आरपीएन सिंह कांग्रेस से तीन बार (1996, 2002, 2007) विधायक बने, फिर 2009 में सांसद चुने गए। पडरौना उनकी परंपरागत सीट है। विधायक के बाद सांसद चुने जाने पर वो यूपीए-2 की मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बने। लेकिन उसके बाद यानी देश की सियासत में नरेंद्र मोदी के उदय होने के बाद 2014 से अपने ही क्षेत्र में इनका प्रभाव कम होता गया। यहां तक कि 2014 में कुशीनगर लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार राजेश पांडेय से वो चुनाव हार गए। दोबारा 2019 में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके कांग्रेस में उनका रूतबा कायम रहा। वो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सचिव तो थे ही पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ और झारखंड का प्रभारी का दायित्व भी सौंप रखा था।
लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में आरपीएन सिंह को अपना कद घटता महसूस हुआ। इस चुनाव में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। हालांकि पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल जरूर किया था। मगर उन्हें वो रास नहीं आया और उन्होंने बीजेपी की राह पकड़ ली। अब आरपीएन के ऐन वक्त पर पाला बदल से कुशीनगर सहित आसपास की सीटों पर प्रत्याशी जुटाना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा। कहा तो यहां तक जा रही कि कुशीनगर में कांग्रेस कार्यालय तक बंद हो गया है।
पडरौना और कुशीनगर से जुड़े लोगों की मानें तो आरपीएन सिंह मूलतः सैंथवार कुर्मी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। सैँथवार बिरादरी में इनका काफी प्रभाव रहा। हालांकि राज परिवार से होने के बावजूद अन्य जातियां यहां तक ब्राह्मण-राजपूत भी इनका समर्थन करते रहे। लेकिन कहा ये जा रहा है कि 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने और केंद्र में मंत्री बनने के बाद आरपीएन अपने परंपरागत वोटबैंक सैंथवार से दूर होते गए। इस बीच 2014 में पडरौना-कुशीनगर के सैंथवार व अन्य पिछड़े बीजेपी के खेमें में चले गए जिसके चलते आरपीएन को 2014 व 2019 में हार झेलनी पड़ी। उधर यूपी की सियासत में प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय होने के बाद प्रियंका ने अपनी नई टीम बनाई जिसमें आरपीएन के लिए कोई जगह नहीं थी। ऐसे में वो खुद को उपेक्षित समझने लगे थे। जानकार बताते हैं कि पहले परंपरागत वोटबैंक का छिटकना फिर टीम प्रियंका की उपेक्षा आरपीएन के पाला बदल में बड़ा कारण बनी। फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया की चाल भी कामयाब हुई और उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली।
आरपीएन सिंह को बीजेपी में शामिल कराकर बीजेपी ने एक तीर से दो नहीं बल्कि कई निशाने साधने में जुटी है। एक तो बीजेपी ने कांग्रेस के पूर्वांचल के बड़े नेता का विकेट गिरा दिया है। इससे बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्या के पाला बदल कर सपा में जाने से हुए नुकसान की भरपाई कर ली है। अब वो स्वामी प्रसाद के मुकाबिल आरपीएन को पडरौना से उतार सकती है। स्थानीय दिग्गजों का कहना है कि 2019 में मिली पराजय के बाद आरपीएन फिर से अपनों के बीच आने-जाने लगे थे। अब बीजेपी में आने के बाद सैंथवार कुर्मी वोटबैंक जो इनसे दूर हो गया था वो फिर से जुड़ेगा और इस सूरत में स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए बड़ी दिक्कत पेश कर सकते हैं आरपीएन सिंह।
हालांकि आरपीएन के पाला बदल के बाद भले ही अभी पडरौना-कुशीनगर में कांग्रेस की हालत पतली हो गई है। लेकिन पार्टी बालेश्वर यादव का इस्तेमाल आरपीएन के खिलाफ कर सकती है। अगर पार्टी का ये दांव सफल होता है तो पडरौना सीट पर रोचक मुकाबला हो सकता है। कारण बालेश्वर यादव के पास अपना बेस वोटबैंक यादव तो है ही साथ ही वो ब्राह्मणों के बीच भी लोकप्रिय हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा दिक्कत में स्वामी प्रसाद मौर्य होंगे जिनसे सवर्ण खासे नाराज हैं। यही वजह है कि अब स्वामी प्रसाद मौर्य अपने लिए सुरक्षित सीट तलाशने लगे हैं।