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UP Assembly Elections 2022 : विकास हुआ बेपटरी, दलित जातियों पर डाल रहे सभी दल डोरे, रिजर्व सीटों पर जीत कायम करने वाले दल बनाते रहे सरकार

UP Assembly Elections 2022 : उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित जातियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य की सियासत में 1950 से 1990 तक दलित राजनीति कई दौर से गुजरी। दलितों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिला और राजनीतिक संस्थाओं में आरक्षण मिला। भूमि सुधारों और कल्याणकारी कार्यक्रमों से दलित जातियां लाभान्वित हुईं और दलित जातियों के आर्थिक उत्थान ने उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त बना दिया।

लखनऊJan 14, 2022 / 04:51 pm

Amit Tiwari

लखनऊ. UP Assembly Elections 2022 : विकास की पटरी पर दौड़ रही यूपी की राजनीति बेपटरी हो गयी है। एक बार फिर भी राजनीतिक दलों की सियासत जातीय मुद्दे पर आकर अटक गयी है। बसपा, सपा, भाजपा, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के लिए दलित फिर से महत्वपूर्ण हो गए हैं। आंकड़े बताते हैं जिस भी दल ने 86 रिजर्व सीटों में सर्वाधिक भागीदारी बनायी उसी की सरकार बनी है। इसीलिए दलित वोट बैंक में सेंधमारी के लिए सभी पार्टियां जुटी हैं।
20 से 21 फीसद हैं दलित

उत्तर प्रदेश में 42-45 फीसदी ओबीसी हैं। जबकि 20-21 फीसदी दलितों के वोट हैं। इसमें बड़ी संख्या जाटव की है। यह करीब 54 फीसदी हैं। दलितों की 66 जातियां हैं। जिनमें 55 ऐसी उपजातियां हैं, जिनका संख्या बल ज्यादा नहीं हैं। इसमें मुसहर, बसोर, सपेरा और रंगरेज शामिल हैं। 20-21 फीसदी को दो भागों में बांट दें, तो 14 फीसदी जाटव हैं और बाकी की संख्या 8 फीसदी है।
42 जिलों में 20 फीसद दलित

जाटव के अलावा दलितों की अन्य जातियों में पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं। यूपी के 42 ऐसे जिलें हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है।
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86 सीटें आरक्षित

यूपी में दलित समुदाय के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 86 है। अब तक के आंकड़ा यही बताते हैं कि जिस दल ने सबसे ज्यादा आरक्षित सीटें जीती हैं, उसी दल ने यूपी की सत्ता संभाली है। अधिक आरक्षित 2017 में रिजर्व सीटों का गणित
कुल सीटें-86

भाजपा-70

सपा-07

सुभासपा-03

अपना दल-03

बसपा-02

निर्दल-01

दलितों की बड़ी नेता मायावती

दलित नेताओं में बसपा प्रमुख मायावती सबसे बड़ी नेता हैं। वह चार बार यूपी की सत्ता संभाल चुकी हैं। भाजपा में बेबीरानी मौर्य सुरेश पासी, रमापति शास्त्री, गुलाबो देवी और कौशल किशोर और विनोद सोनकर तो कांग्रेस के पास आलोक प्रसाद और पीएल पुनिया जैसे नेता हैं। इंद्रजीत सरोज सपा में बड़े नेता है।
चंद्रशेखर से मिली सपा को ताकत

भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी पश्चिमी यूपी में जाटव वोटों को लुभा रही है। शुक्रवार को चंद्रशेखर ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर सपा को अपना समर्थन दिया है। चंद्रशेखर के सपा के साथ जाने से मायावती की पूरी चुनाव गणित बिगड़ सकती है।
धीरे-धीरे कमजोर होती गई बसपा

2007 में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से 30.43 फीसदी वोटों के साथ 206 सीट हासिल की थीं। 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा 27.4 फीसदी वोट के साथ 21 सीटें जीतने में सफलता मिली। साल 2012 में बसपा को सिर्फ 25.9 फीसदी वोट मिले। इसकी सीटें 206 से गिरकर 80 पर पहुंच गईं। 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 20 फीसदी वोट मिले और उसका खाता भी नहीं खुला। 2017 में 23 फीसदी वोट के साथ बसपा को सिर्फ 19 सीटें मिलीं। अब सिर्फ उसके पास 7 विधायक बचे हैं।

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