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कोई और मनाएं जन्मदिन.. अपना नाता तो मरण त्योहारों से

locationनई दिल्लीPublished: Apr 12, 2021 11:29:42 am

यहां लोग मृत्यु को मोक्ष का जरिया मानते हैं, इसलिए मौत को भी जश्न में बदल देते हैं।
जहां मृत्यु भी एक उत्सव, बैंड-बाजे से निकाली जाती है अंतिम यात्रा

कोई और मनाएं जन्मदिन.. अपना नाता तो मरण त्योहारों से

कोई और मनाएं जन्मदिन.. अपना नाता तो मरण त्योहारों से

राजेन्द्र गहरवार

मदुरै । ‘होंगे वे कोई और मनाएं ‘जन्मदिवस’, अपना नाता तो रहा ‘मरण त्योहारों’ से।’ कवि श्रीकृष्ण सरल की ये पंक्ति तमिलनाडु पर सटीक बैठती है। जहां मृत्यु एक उत्सव की तरह है। अंतिम यात्रा पर बैंड-बाजे व आतिशबाजी का शोर आम है। यहां लोग मृत्यु को मोक्ष का जरिया मानते हैं, इसलिए मौत को भी जश्न में बदल देते हैं। हालांकि इस परंपरा ने कब और कैसे मान्यता का रूप ले लिया, इस बारे में लोग कम बता पाते हैं। तमिलनाडु के उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम के निर्वाचन क्षेत्र बोडीनायाकनूर से लौटते समय मदुरै जिले की उसिलमपट्टी क्षेत्र के हाइवे के किनारे एक गांव में धमक पैदा कर रही पटाखे की लडिय़ों ने बरबस ही ध्यान खींच लिया। पहली नजर में यही लगा कि चुनाव के मौसम में किसी नेता या प्रत्याशी की अगवानी में आतिशबाजी की जा रही होगी। लेकिन टैक्सी चालक पार्थसारथी ने यह कहकर चौंका दिया कि गांव में किसी की मृत्यु हुई है। उसकी अंतिम यात्रा की तैयारी में पटाखे छोड़े जा रहे हैं। पूरे बेल्ट में ऐसा सदियों से चला आ रहा है।

शोक को हरने का जतन-
उसिलमपट्टी में मंदिर पुजारी पी मुरुगन बताते हैं, मृत्यु पर बैंड-बाजा और आतिशबाजी सिर्फ इसी बेल्ट तक सीमित नहीं है। तमिलनाडु के अधिकतर हिस्सों में ऐसी परंपरा है। यह शोक को कम करने का जतन है। जो व्यक्ति इस संसार को छोड़कर चला गया, उसके लिए शोक करने से बेहतर है कि मोक्ष के लिए प्रार्थना की जाए।

चेहरे पर शोक का भाव, लेकिन विलाप नहीं-
लोग शव पर फूल बरसाते, मालाएं चढ़ाते हुए आतिशबाजी के शोर के बीच बैंड बाजे के साथ मुक्तिधाम पहुंचते हैं। इस दौरान गजब का अनुशासन देखने को मिलता है। चेहरे पर शोक का भाव तो नजर आता है, पर विलाप के स्वर कम ही सुनाई देते हैं।

जन्मोत्सव पर होते हैं सीमित आयोजन –
मदुरै के आर गणेशन बताते हैं कि मानव जीवन से जुड़े तीन उत्सव ही महत्त्वपूर्ण हैं। एक कन्या की 14 वर्ष की उम्र होने, दूसरा विवाह और तीसरा मृत्यु पर मोक्ष की कामना। जन्मोत्सव पर बहुत सीमित आयोजन होते हैं। नए दौर में कुछ नए तरह के आयोजन होने लगे हैं, पर चलन में यही तीन उत्सव हैं। इन्हें सामाजिक मान्यता मिली हुई है।

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