शोक को हरने का जतन-
उसिलमपट्टी में मंदिर पुजारी पी मुरुगन बताते हैं, मृत्यु पर बैंड-बाजा और आतिशबाजी सिर्फ इसी बेल्ट तक सीमित नहीं है। तमिलनाडु के अधिकतर हिस्सों में ऐसी परंपरा है। यह शोक को कम करने का जतन है। जो व्यक्ति इस संसार को छोड़कर चला गया, उसके लिए शोक करने से बेहतर है कि मोक्ष के लिए प्रार्थना की जाए।
चेहरे पर शोक का भाव, लेकिन विलाप नहीं-
लोग शव पर फूल बरसाते, मालाएं चढ़ाते हुए आतिशबाजी के शोर के बीच बैंड बाजे के साथ मुक्तिधाम पहुंचते हैं। इस दौरान गजब का अनुशासन देखने को मिलता है। चेहरे पर शोक का भाव तो नजर आता है, पर विलाप के स्वर कम ही सुनाई देते हैं।
जन्मोत्सव पर होते हैं सीमित आयोजन –
मदुरै के आर गणेशन बताते हैं कि मानव जीवन से जुड़े तीन उत्सव ही महत्त्वपूर्ण हैं। एक कन्या की 14 वर्ष की उम्र होने, दूसरा विवाह और तीसरा मृत्यु पर मोक्ष की कामना। जन्मोत्सव पर बहुत सीमित आयोजन होते हैं। नए दौर में कुछ नए तरह के आयोजन होने लगे हैं, पर चलन में यही तीन उत्सव हैं। इन्हें सामाजिक मान्यता मिली हुई है।