भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने परिवर्तन यात्रा की शुरुआत चैतन्य महाप्रभु की धरती नवद्वीप से ही की थी। नवद्वीप धाम मायापुर में ही इस्कान का मुख्यालय है। चैतन्य महाप्रभु ने हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भावना पर जोर दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी। यह अलग बात है कि भाजपा समेत सभी पार्टियों ने इसके इतर अपने प्रचार अभियान को ध्रुवीकरण पर ही फोकस रखा है। जाति-धर्म का समीकरण बैठाए बिना चुनावी वैतरणी पार भी नहीं होती।
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नदिया जिले के शांतिपुर से बाहर निकलते ही बुनकरों की बड़ी सी बस्ती है गोविंदपुर। आम, कटहल, केले के पेड़ों के बीच टीन के पतड़ों से ढके छोटे-छोटे झौंपड़ी नुमा घरों में खट-पट का शोर करते ‘टैंट’। आप चौंकिए नहीं, हथकरघा में साड़ी बनाने वाली मशीन को यहां ‘टैंट’ कहते हैं। दो टैंट पर एक साथ करता सुब्रोतो, कलाचंद या ओरूण प्रमाणिक जब लाल, पीली या नीली साड़ी बुनते हैं तो जैसे वह आंखों को भा जाती है। इन साडि़यों में चटक गाढ़ा रंग चढ़ा है लेकिन इसे बनाने वाले कारीगरों के चेहरे का रंग उड़ा हुआ है।
बुनकर ढाका से आकर यहां बसे
बुनाई शांतिपुर का परम्परागत पेशा भी और पहचान भी है। दरअसल विभाजन के बाद ढाका के कई कुशल बुनकर नादिया जिले के शांतिपुर और बर्दवान जिले के अंबिका कलना में आकर बस गए। दोनों पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध केंद्र हैं। इसलिए कई बार यहां की साडि़यों को शांतिपुर की साड़ी के साथ ढाका की साड़ी भी कहा जाता है।
शांतिपुर स्टेशन के बाहर अजॉय बिस्वास बताते हैं, किसी समय यहां बीस-पच्चीस हजार बुनकर रहते थे। कोरोना ने इन्हें बहुत बेहाल किया है। नारू गोपाल दास की कसक है कि पावरलूम की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से सभी लोग परेशान हैं। वह भी रोजी-रोटी की जुगाड़ में महाराष्ट्र, गुजरात गया। कोरोना ने बुरे हाल कर दिए तो लौट आया। अब घर में काम कर रहा है लेकिन एक साड़ी बनाने पर ढाई घंटे लगते हैं और मिलते हैं मात्र 40 से 50 रुपए। ओपोर्णा बिस्वास छह घंटे चरखी पर धागे के लच्छों से छोटी गिट्टी बनाती है तब बीस रुपए कमा पाती है।
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चुनावी माहौल पर इनसे चर्चा करते हैं इनका दर्द छलकता है कि दशकों से इनकी समस्याएं जस की तस हैं। हथकरघा वस्त्र और बुनकरों को भले ही संस्कृति, विरासत और परंपरा का अंग माना जा रहा हो लेकिन ये चुनाव का मुद्दा कत्तई नहीं हैं। भाजपा ने रानाघाट से सांसद जगन्नाथ सरकार को शांतिपुर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। यह सीट उनमें से एक है जिन सीटों से बीजेपी के पांच सांसद चुनाव लड़ रहे हैं। सामने टीएमसी के अजॉय डे फिर एक बार मैदान में हैं।
मतुआ वोटो पर जोर
बांग्लादेश से सटे उत्तर 24 परगना जिले की तरह ही नदिया में भी मतुआ समुदाय बड़ा वोट फैक्टर है। इसलिए तृणमूल और भाजपा दोनों की ही उसपर निगाह है। करीब 70 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है। पिछले दिनों पीएम नरेन्द्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा में मतुआ समुदाय से मुलाकात को बंगाल चुनाव से ही जोड़कर देखा गया।
वोट बैंक के लिए तोड़फोड़ का जोड़
इस सीट की सबसे दिलचस्प और अहम बात यह है कि यहां से वर्तमान विधायक अरिंदम भट्टाचार्य 2016 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर टीएमसी के तत्कालीन विधायक अजॉय डे को हराकर चुनाव जीते। अरिंदम पेशे से वकील हैं और उनकी गिनती तेज-तर्रार नेताओं में होती है। वह यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे और 17 साल कांग्रेस में बिताए। चुनाव जीतने के करीब एक साल बाद ही टीएमसी में शामिल हो गए।
इस बार चुनाव से ऐन पहले अरिंदम ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा को 2016 के विधानसभा चुनाव में यहां से चार प्रतिशत वोट भी नहीं मिले थे। भाजपा ने इस सीट को हासिल करने के लिए इस कदर ताकत झोंकी कि जोड़-तोड-फोड़ सबकुछ करते हुए इस सीट को टक्कर में ला दिया है।
नवद्वीप विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के पुण्डरीकाक्ष साहा ने लगातार चार बार जीत दर्ज की है। पिछले दो चुनाव में उन्होंने सीपीएम के सुमित विश्वास को अच्छे अंतर से हराया। इस तरह से दो दशक से यह टीएमसी का गढ़ रहा है। यह रानाघाट लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।
पुण्डरीकाक्ष साहा इस बार पांचवी बार मैदान में हैं, मुकाबला सिद्धार्थ नस्कार और स्वर्णेन्दु सिंहा से है। चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली के बाहर चाय के खोमचे पर चौपाल लगाए बैठे पांच लोगों से चुनाव पर चर्चा शुरू करते हैं तो कोई राय नहीं देना चाहते। इनमें से एक बड़ी बेबाकी से कहता है, मुहं खोलना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए हर वोटर साइलेंट है लेकिन टीएमसी से पहले वाममोर्चा का गढ़ रहे इसे इलाके में वामपंथी कहीं मुकाबले में नहीं दिखते हैं।