विशेषज्ञों के अनुसार बंगाल में बीजेपी के पिछड़ने का एक कारण स्थानीय नेताओं की कमी भी माना जा रहा है। बीजेपी के पास दिलीप घोष, बाबुल सुप्रियो, मुकुल घोष, जैसे स्थानीय नेता हैं, लेकिन इनमें से कोई भी इतना बड़ा नेता नहीं है जो ममता बनर्जी का मुकाबला कर सके। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष काफी कोशिश लेकिन ममता को हराने में नाकामयाब रहे।
बंगाल के चुनावों में ध्रुवीकरण का मुद्दा रहा। बीजेपी ने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी पर तुष्टीकरण के आरोप लगाए तो ममता ने भी ऐसा ही किया। जहां बीजेपी ने जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाया तो ममता ने भी खुद का गोत्र बताते हुए हरे कृष्णा हरे हरे का नारा दिया और मंच पर चंडी पाठ भी किया। बीजेपी बंगाल में हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में करना चाह रही थी लेकिन नतीजे कुछ और ही आए। विशेषज्ञों का मानना है कि शीतलकूची फायरिंग और भाजपा नेताओं के बयानों की वजह ने मुस्लिम वोटर एकजुट हो गए।
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी के नेताओं को अपने पक्ष में करने के चक्कर में अपने नेताओं को नाराज कर दिया। बीजेपी ने आखिरी वक्त तक टीएमसी के नेताओं को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश की। कई जगह तो नामांकन वाले दिन भी बीजेपी ने TMC नेताओं को अपने पाले में करने में सफलता हासिल की। बीजेपी ने टीएमसी और दूसरी पार्टी से बीजेपी में आए नेताओं को चुनाव में टिकट भी दिए। ऐसे में टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी के कई नेता नाराज भी हुए। टिकट बंटवारे के समय बंगाल भाजपा यूनिट में असंतोष की खबरें भी सामने आई थी।
इस चुनाव में बीजेपी के पास पश्चिम बंगाल के लिए ममता के सामने उनके कद का कोई बड़ा नेता नहीं था। ऐसे में बीजेपी की तरफ से सीएम चेहरा न होना भी उनकी कमजोरी का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। पीएम मोदी ने भी पश्चिम बंगाल में पार्टी को जिताने के लिए काफी मेहनत की लेकिन बीजेपी के पास ऐसा कोई स्थानीय नेता नहीं था, जिसका कद बंगाल में ममता के बराबर हो। यह भी बीजेपी की हार का एक कारण माना जा रहा है।