ममता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वीकार की हार, बोलीं- नंदीग्राम में जो हुआ भूल जाइए
पश्चिम बंगाल में ममता की जीत के कई दूरगामी परिणाम होंगे। सबसे पहला परिणाम तो यही निकाला जाना चाहिए कि भाजपा क्षेत्रीय दलों को धीरे-धीरे खत्म कर उनकी जगह लेती जा रही है। दूसरा- कांग्रेस दिशाहीनता का शिकार होकर अपनी बची-खुची सीटें भी खोती जा रही हैं। अब किसी भी गठबंधन में कांग्रेस या राहुल गांधी की लीडरशिप संभवतया स्वीकार नहीं की जाएगी। तीसरा नतीजा कि अब देश भर के विपक्ष को ममता बनर्जी के रूप में एक सर्वमान्य और ताकतवर चेहरा मिलने की उम्मीद बहुत ज्यादा बढ़ गई है। फिलहाल इसी प्वॉइंट पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।Assam Election Results 2021: हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया, 20 साल से जारी है जीत का सिलसिला
मोदी-शाह को चुनौती देकर बड़े अंतर से हरायाफिलहाल पूरे देश में ऐसा कोई भी नेता नहीं दिखाई देता जिसे मोदी और शाह की जोड़ी के सामने देशव्यापी विपक्ष का सर्वमान्य नेता स्वीकार किया जा सके। यूपीए में सोनिया गांधी के नेतृत्व में सभी पार्टियां एकजुट थीं लेकिन 2019 की हार के बाद से सभी पार्टियां अलग-थलग हो गईं। इसके बाद अलग-अलग स्टेट्स में कांग्रेस की हार ने कांग्रेस को इस स्थिति में नहीं छोड़ा कि दूसरी पार्टियां राहुल गांधी या कांग्रेस की लीडरशिप को स्वीकार कर सकें। ऐसे में ले-देकर ममता बनर्जी ही बचती हैं जिन्होंने न केवल मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती दी वरन उन्हें बहुत बड़े अंतर से हराया भी है। उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में जीत की हैट्रिक लगा कर साबित कर दिया कि करिश्माई व्यक्तित्व के मामले में वह मोदी से किसी भी तरह कम नहीं हैं।
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पहले भी ममता बनर्जी को बताया गया था प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवारममता बनर्जी को पहले भी एकजुट विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था परन्तु बात नहीं बन पाई। इस वक्त स्थितियां कुछ अलग हैं। सभी विपक्षी दल ममता का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और संभव है कि 2024 के चुनाव में ममता बनर्जी संयुक्त विपक्ष का चेहरा बन कर लोकसभा चुनाव में उतरें। हालांकि अभी 2024 बहुत दूर है और बीच में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं इतिहास का रूख बदल सकती हैं। फिर भी कुल मिलाकर आज ममता बनर्जी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं जो न केवल स्थानीय वरन राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा को चुनौती देती है फिर चाहे वो धारा 370 हो, एनआरसी हो या सीएए।
राहुल गांधी या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार दूसरे नेताओं के मुकाबले ममता बनर्जी का राजनीतिक अनुभव भी उन्हें मैच्योर और ताकतवर प्रतिद्वन्दी के रूप में दिखाता है। उन्होंने अकेले अपने दम पर बंगाल में लेफ्ट को हरा कर सरकार बनाने का कारनामा भी कर दिखाया था। वह देश की पहली महिला रेलमंत्री का पद संभाल चुकी हैं। वह केन्द्र में पी.वी. नरसिम्हा राव, अटल बिहार वाजपेयी तथा मनमोहन सिंह की सरकार में केन्द्रीय मंत्री की भूमिका निभा चुकी है। बंगाल में पिछले दस वर्षों से वह मुख्यमंत्री पद संभाल रही हैं। ऐसे में उनसे लोगों की उम्मीदें और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। अब यह देखना रोचक होगा कि ऐसा कब और किस तरह होगा।