कहानी सात साल बाद… यह है केबल ऑपरेटर विजय सालगांवकर अब सिनेमा हॉल मालिक भी बन चुका है। वह फिल्म प्रोड्यूस करना चाहता है। स्क्रिप्ट भी लगभग तैयार है। हालांकि विजय की पत्नी और बेटी के दिमाग को अतीत के काले सच के जाल ने जकड़ रखा है। इस कारण वे डरी-सहमी रहती हैं। उधर, मीरा के दोस्त व गोवा के नए आइजी तरुण अहलावत के नेतृत्व में पुलिस गड़े मुर्दे को उखाडऩे के लिए सबूत ढूंढ रही है…।
स्टोरी में ट्विस्ट हैं। निर्देशक अभिषेक ने ईमानदारी व अनुशासित तरीके से काम को अंजाम दिया है। बैकग्राउंड स्कोर रोमांचक है। अजय ने दृश्यम में विजय का किरदार जहां छोड़ा था, वहीं से पकड़ा है। लुक जरूर बदला है, लेकिन मैजिक बनाए रखा है। अक्षय की सहज एक्टिंग इम्प्रेसिव है। तब्बू जबरदस्त हैं, पर स्क्रीन टाइम कम है। श्रिया व इशिता अपने रोल में फिट हैं।