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मूवी रिव्यू…अन्ना के सत्य-असत्य को दर्शाती ‘अन्ना’

Published: Oct 14, 2016 06:43:00 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

देश के समाजसेवक अन्ना हजारे के कार्यों से प्रेरित और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले नव निर्देशक शशांक उदपुरकर की इंडस्ट्री में उनकी पहली फिल्म है।

anna movie review

anna movie review

बैनर : द राइज़ पिक्चर्स

निर्माता : मनींद्र जैन

निर्देशक : शशांक उदपुरकर

जोनर : बायोपिक 

संगीतकार : रवींद्र जैन

स्टारकास्ट : शशांक उदपुरकर, तनिषा मुखर्जी, गोविंद नामदेव, शरत सक्सेना, किशोर कदम, दया शंकर पांडेय
रेटिंग : ** स्टार

देश के समाजसेवक अन्ना हजारे के कार्यों से प्रेरित और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले नव निर्देशक शशांक उदपुरकर की इंडस्ट्री में उनकी पहली फिल्म है। उन्होंने अण्णा- किसन बाबूराव हजारे को इस फिल्म में उनके बचपन से लेकर अब तक के यादगार समय को ऑडियंस के सामने परोसने की पूरी कोशिश की है।
कहानी :

फिल्म में 141.29 मिनट की कहानी दिल्ली के राम लीला से शुरू होती है, जहां अन्ना किसन बाबूराव हजारे ने जान लोकपाल बिल के लिए धारणा दिया था। फिर कहानी फ्लैश बैक में जाती है और स्कूल के दिनों में किसन अपनी कॉपी घर ही भूल आता है। इस पर अध्यापक उससे कॉपी लाने के लिए घर भेजता है, लेकिन रास्ते में देश भक्ति के एक जुलूस में शामिल हो जाता है। किसन में देश भक्ति तो होती है, पर पढ़ाई-लिखाई में उसका दिल नहीं लगता है। 
यह देख उसका मामा उसे मुंबई ले आता है और वहां वह फूल बेचने का काम करता है, लेकिन पुलिस की हफ्ता वसूली के चलते वह वहां भी ठीक नहीं पाता। फिर किसन फौज में शामिल होने जाता है, पर फिट न होने के चलते वह बाहर कर दिया जाता है। लेकिन उसमें देश भक्ति के जज़्बे को देखते हुए ऑफिसर (शरत सक्सेना) उसे फौज में शामिल तो कर लेता है और साथ ही उसे फाइनल फिटनेस में पास होने के लिए उकसाता भी है। फिर वह पास होकर सरहद पर भेज दिया जाता है। पर वहां भी उसे उस तरह से नहीं, बल्कि किसी दूसरे तरीके से देश भक्ति की चाहत होती है। 
फिर एक दिन सेना जे ट्रक से किसन आगे जा रहा होता है कि तभी दुश्नामों Kई मिसाइल से ट्रक की चपेट में आने से किसन के सारे दोस्त मारे जाते हैं, साथ ही रिटायर होने के बाद अपने घर जा रहे एक अधिकारी की मौत भी किसन के सामने हो जाती है। यह सब देख और किसी दूसरे अंदाज में देश भक्ति करने की चाहत लिए वोलेंट्री रिटायरमेन्ट लेकर किसन अपने गांव रालेगढ़ सिद्धी वापस चला आता है। 
फिर किसन अपनी नौकरी की सारी कमाई गांव में मंदिर बनवाने में लगा देता है और पिछले तीन वर्षों से बारिश न होने के कारण सभी की हालत बद से बदतर होती जा रहा थी। किसन के लाख समझाने के बाद भी अन्ना की बात कोई नहीं मानता, पर वह गांव में पानी लाने की जद्दोजहद में लगा रहता है। साथ ही बीच-बीच में दिल्ली के राम लीला मैदान का प्रदर्शन भी दिखाया जाता रहा। इसी के साथ फिल्म दिलचस्प मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है। 
अभिनय : 

अन्ना हजारे को अपना आदर्श और उन्हें करीब से जानने-समझने वाले शशांक उदपुरकर ने बड़े पर्दे पर उन्हें उकेरने में हर संभव प्रयास किया है। उनकी अभिनय क्षमता ने वाकई में देश के समाजसेवी की हर तरह की कार्यशैली को जीवंत कर दिखाया है। साथ ही एक जर्नलिस्ट के किरदार में तनिषा मुखर्जी ने भी अपना शत-प्रतिशत दिया है। गोविंद नामदेव और शरत सक्सेना ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। इसके अलावा किशोर कदम व दया शंकर पांडेय ने भी अपना हर रोल पर्दे पर सही से निभाने का पूरा प्रयास किया है।
निर्देशन : 

शशांक उदपुरकर ने इस फिल्म को दर्शकों के सामने अपने ही अंदाज में परोसने का भरसक प्रयास किया है। उन्होंने बायोपिक फिल्म के निर्देशन की कमान बखूबी संभाली है। उन्होंने फिल्म को जीवंत करने के लिए हर तरह की कोशिश की है, लेकिन देश के इतने बड़े समाजसेवी की जिंदगी को लेकर वे कहीं-कहीं थोड़ा लडख़ड़ाते से दिखाई दिए। 
उन्होंने अणा हजारे की जिंदगी के हर पहलू में वाकई कुछ अलग कर दिखाने का बीड़ा उठाया है, जिसकी वजह से वे ऑडियंस की वाहवाही लूटने में कई मायनों में सफल रहे। खैर, फिल्म की धीमी होने के चलते दर्शकों का ध्यान इधर-उधर भटकता जरूर दिखाई दिया, पर अन्ना की कहानी जानने के लिए लोग सीट से बंधे रहे।
 इसके अलावा अगर टेक्नोलॉजी और सिनेमेटोग्राफी की बात छोड़ दी जाए तो फिल्म के कॉमर्शिल अंदाज में कुछ नया कर दिखाने की कमी सी महसूस हुई। साथ ही फिल्म की कहानी की तुलना में संगीत (रवींद्र जैन) की भूमिका कुछ हद तक अहम रही।
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