शहडोल के रेहान खान, सुहेल खान, सीधी का रावेन्द्र, सिरमौर रीवा से सौम्या तिवारी, देव पटेल, हनुमना की रुखसार खान, समर तिवारी, क्षमा जायसवाल, आदर्श साहू, सतना से जय द्विवेदी, आर्यन स्वरूप सहित करीब दो दर्जन बच्चे कुक्कुर खांसी की गिरफ्त में हैं। गंभीर अवस्था में इनमें से कुछ जीएमएच में भर्तीहैं तो कुछ शहर के एक निजी अस्पताल में है। रेहान और सुहेल खान की रिपोर्ट पाजिटिव आई है। बच्चों के सैंपल जांच के लिए इंदौर भेजे जा रहे हैं।
यह बीमारी बोर्डेटेल्ला परट्यूसिया जीवाणु के संक्रमण से फैलती है। जो शुरुआत में नाक और गला को प्रभावित करता है। प्राय: 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होती है। इस बीमारी का नाम कुक्कुर खांसी इसलिए पड़ा है क्योंकि पीडि़त सांस लेते समय भौंकने जैसी आवाज करता है।
यह बीमारी श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है। छह माह के बच्चों में श्वसन नली सिकुडऩे से मौत की संभावना अधिक होती है। मेडिकल साइंस के मुताबिक इस बीमारी से एक वर्ष में 4.15 प्रतिशत बच्चे मरते हैं।
इस बीमारी के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स का प्रयोग अधिक किया जाता है। खांसी ठीक होने में 10 से 15 दिन लगते हैं। श्वसन नलियों की सिकुडऩ को कम करने के लिए दवाएं दी जाती है। पहले डीटीपी का टीका लगता था अब पेंटावैलेंट का टीका लगाया जाता है।
5 से 10 मिनट तक खांसी आती है। छोटे बच्चों में सांस बे्रक हो जाती है। झटके आने लगते हैं। पेट मचोडऩे लगता है। खून की उल्टी होती है। फैक्ट
-25 मरीज आए सामने।
-05 मरीजों में पुष्टि।
वर्तमान में जिस तरह तेजी से कुक्कुर खांसी के केस बढ़ रहे हैं वह अच्छे संकेत नहीं हैं। रोकथाम के प्रभावी इंतजाम स्वास्थ्य महकमे को करने होंगे। इस संबंध में इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलेंस मेडिकल अफसर को रिपोर्ट दी गई है।
प्रो. डॉ. ज्योति सिंह, शिशु रोग विभागाध्यक्ष, एसएस मेडिकल कॉलेज रीवा।