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मूवी रिव्यू: डबल का मतलब समझाती ‘बैंजो’

Published: Sep 23, 2016 08:59:00 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

मराठी फिल्मों के निर्देशन में अपना सिक्का जमा चुके और ऑडिसंस के लिए तरह-तरह के जोनर परोस में कामयाब रहे निर्देशक रवि जाधव अब पहली बार बॉलीवुड की फिल्म का निर्देशन संभाल रहे हैं।

banjo movie

banjo movie

बैनर : इरोश इंटरनेशनल

निर्माता : कृषिका लुल्ला

निर्देशक : रवि जाधव

जोनर : म्यूजिकल एक्शन ड्रामा

संगीतकार : विशाल-शेखर

स्टारकास्ट : रितेश देशमुख, नरगिस फाखरी, धर्मेश येलांडे

रेटिंग : ढाई स्टार
मराठी फिल्मों के निर्देशन में अपना सिक्का जमा चुके और ऑडिसंस के लिए तरह-तरह के जोनर परोस में कामयाब रहे निर्देशक रवि जाधव अब पहली बार बॉलीवुड की फिल्म का निर्देशन संभाल रहे हैं। उन्होंने इसमें संगीत के साथ-साथ एक्शन और ड्रामा का धमाकेदार तड़का लगाया है।
कहानी : 

137:47 मिनट की पूरी कहानी मायानगरी मुंबई की स्लम बस्तियों से शुरू होती है। यहां पर लोगों के घरों में एक पेपर डालने वाले का समना होता है कि उसकी खुद का वाटर टैंक हो, साथ ही एक वाहन सही करने वाले और दिन भर कालिक में कालिक का वास्ता पडऩे वाले ग्रीस (धर्मेश येलांडे) का सपना सफेदी में रहने का होता है। साथ ही शादी के कार्यक्रमों में मध्यम आवाज में बजाने वाले का सपना फ्लाइट में एयर हॉस्टेस की ओर से दी जानी वाली सेवाओं का होता है। 
इसके अलावा लोगों की दिलों पर राज करने वाले और स्लम बस्ती में अपनी अलग पहचान बना चुके नंदकिशोर उर्फ तरात (रितेश देशमुख) सदियों समय पहले विलुप्त हो चुके बैंजो (एक अलग तरह का संगीत) अपने में ही बिजी रहना चाहता है। विदित हो कि मुंबई की स्लम बस्तियों में बैंजो वे लोग बजाया करते थे, जो लोग अपनी रोजमर्रा की कमाई के अलावा भी कुछ और रुपये भी चाहिए होते थे। 
अब एक इंसान की नजर और समझ एक संगीत पर पड़ती है, जो दिखने में तो अंग्रजी होता है, पर उसे महाराष्ट्र की समझ होती है। वह गणपति के एक गीत की धुन को विदेश में रह रही अपने साथी म्यूजीशियन क्रिश (नरगिस फाखरी) को भेजना है। अब वह उसकी दीवानी हो जाती है और घर वालों के न चाहते हुए भी क्रिश अपनी धुन को पाने के लिए मायानगरी में आ जाती है। 
यहां पर क्रिश अपने फ्रेंड की ओर से दिए गए गंतव्य स्थान पर पहुंचती है, जहां वह आदमी स्लम बस्ती की जमीन को हथियाने के लिहाज से उसका प्रयोग करता है और मुंबई के दबंग कॉर्पोरेटर पाटिल के पास भेज देता है। अब पाटिल के लिए काम कर रहे तरात को क्रिश को स्लम बस्ती दिखाने और उसकी तह तक जाने का जिम्मा सौंपा जाता है। वह उसकी हर तरह से मदद करता है, लेकिन यह नहीं बताता कि वह खुद भी बैंजो बजाता है। फिर एक दिन कॉर्पोरेटर का खून हो जाता है, जिसमें तरात खुद फंस जाता है। इसी के साथ फिल्म दिलचस्प मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है। 
अभिनय : 

बॉलीवुड समेत मराठी फिल्मों में भी अपने दमदार अभिनय की बदौलत अलग ओहदा बनाने में सफल रहे रितेश देशमुख ने इसमें भी गजब रोल निभाया है। उन्होंने तरात के किरदार को अपने निराले अंदाज में ही पेश किया है, जो लोगों को काफी हद तक पसंद भी आया। साथ ही नरगिस फाखरी भी रितेश के साथ बहुत की कूल और अनोखे रोल में दिखाई दीं। उन्होंने अभिनय में अपना शत-प्रतिशत दिया है। इसके अलावा धर्मेश येलांडे रितेश के दोस्त के किरदार में खूब जंचे। धर्मेश कोरियाग्राफी के अलावा अभिनय में भी अपना लोहा मनवाने में सफल होते से नजर आ रहे हैं।
निर्देशन : 

बॉलीवुड में अपनी पहली ही फिल्म से निर्देशक रवि जाधव ने लोगों को बता दिया है कि भाषा चाहें जो भी, बस जरूरत होती है तो सिर्फ निर्देशन के समझ की। उन्होंने म्यूजिकल एक्शन ड्रामे की कमान संभालने में हर संभव प्रयास किया है। निर्देशक ने इसमें हर तरह के प्रयोग तो किए हैं और एक्शन का गजब तड़का भी लगाया है। संगीत की दुनिया में उन्होंने वाकई में कुछ अलग करने का भरपूर प्रयास किया है, इसीलिए वे कई मायनों में दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। फिल्म फस्र्ट हाफ में तो लोगों को बांधे रखती है, लेकिन सकेंड हाफ में उसकी स्क्रिप्ट इधर-उधर डगमगाती सी नजर आती है। 
बहरहाल, ‘इनवेस्टमेंट इज़ मार्केट रिस्क…’ और ‘कटिंग दे रहा है क्या, थोड़ा और दे न…’ जैसे कुछ डायलॉग्स काबिल-ए-तारीफ रहे, लेकिन अगर कॉमर्शिल और टेक्नोलॉजी अंदाज को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी में कुछ अलग किया जा सकता था। इसके अलावा फिल्म गीत-संगीत भी ऑडियंस को रिझाने के लिए कई मायनों से ठीक ही रहे।

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