रेटिंग: * स्टार बॉलीवुड के नवनिर्देशक कृष्णदेव अपनी पहली ही फिल्म में नई स्टारकास्ट को बड़े पर्दे पर लॉन्च किया है। उन्होंने फिल्म में कॉमेडी की गजब कमान संभाली है और साथ ही सभी स्टारकास्ट को खुद को साबित कर दिखाने का बराबर का भरपूर मौका भी दिया है।
कहानी : करीब 156 मिनट की पूरी कहानी कॉलेज के दिनों मेें चार अलग-अलग मिजाज के दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी एक हुक्का पार्लर से शुरू होती है, जहां विक्की (अंश बागरी) अपने पिता के स्ट्रिक्ट होने का बखान करता है तो निखिल (यश सोनी) भी अपने पिता के स्ट्रिक्ट होने का बात बताता है। अब रात के अंधेरे में सभी पार्लर से बाहर आते हैं, इस दरम्यान सुरेश (संचय गोस्वामी) को उल्टी हो जाती है तो निखिल से विक्की गाड़ी की चाभी लेता है और वहां से गुजर रहे तेज वाहन की चपेट में आ जाता है।
अब दलजीत उर्फ दूल्हा (सरबजीत बिंद्रा), निखिल और सुरेश सभी विक्की को अस्पताल लेकर जाते हैं। फिर फिल्म की पूरी कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है। दिखाया जाता है कि विक्की, निखिल, दूल्हा और सुरेश बहुत ही नजदीकी दोस्त हैं और विक्की जहां अपने पिता के फोन आने के डरता है तो वहीं सुरेश अपने पिता के सामने बहुत ही शरीफ और चिपकू टाइप दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन कॉलेज में एंट्री करते ही वह भी खुद को अन्य के मुताबिक रफ-टफ दिखाने की कोशिश करता है। सभी कॉलेज में भी क्लास बंक करने की होड़ में टीचर्स को जमकर परेशान करते हैं।
निखिल को कॉलेज की ही लड़की पूजा (निमिषा मेहता) से प्यार हो जाता है और वहीं पूजा की दोस्त ईशा (अनुराधा मुखर्जी) को समय-समय पर दूल्हा चोटें देता रहता है। फिर एक दिन सुरेश के पिता उसकी शादी पक्की कर देते हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं चाहता।
इसके लिए वह अपने दोस्तों से कहता है कि कैसे भी उसकी शादी टूट जानी चाहिए। फिर सभी सुरेश के पिता के साथ शादी की बात करने के लिए निशा (किंजल राजप्रिया) के घर जाते हैं और वहां उसकी उसे देखकर सुरेश कहता है कि वह शादी के लिए तैयार है, लेकिन अब विक्की उसे अपने झांसे में फंसा लेता है और उसकी शादी नहीं हो पाती है। इसी के साथ कहानी आगे बढ़ती है।
अभिनय : यश सोनी और अंश बागरी पूरी फिल्म में अपना शत-प्रतिशत देते दिखाई दिए। दोनों ही एक-दूसरे का भरपूर साथ देते नजर आए। साथ ही संचय गोस्वामी और सरबजीत बिंद्रा भी अपने किरदार में कुछ अलग करने में काफी हद तक सफल रहे। पूजा का रोल निमिषा मेहता ने बखूबी निभाया है और वे इसके लिए तारीफ लायक भी हैं। किंजल राजप्रिया और अनुराधा मुखर्जी ने सभी का साथ देने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। दोनों ने ही फिल्म भर में अपने तरह-तरह के अभिनय के बलबूते दर्शकों का दिल जीतने का पूरा प्रयास किया है।
निर्देशन : बी-टाउन के निर्देशक कृष्णदेव याज्ञनिक ने इस फिल्म में गजब का ड्रामा परोसा है। उन्होंने फिल्म के निर्देशन की कमान बखूबी संभाली है। फिल्म में उन्होंने कॉमेडी का गजब तड़का तो जरूर लगाया है, लेकिन कहीं-कहीं उन्हें कुछ बेहतर करने की जरूरत थी। इतने ज्यादा स्टारकास्ट को अपनी-अपनी जगह अहम बताने को लेकर याज्ञनिक ने वाकई में कुछ अलग कर दिखाने की कोशिश की है, जिसकी वजह से वे कुछ हद तक दर्शकों की वाहवाही लूटने में कामयाब रहे।
फिल्म लंबी होने की वजह से इसका फस्र्ट हाफ तो जैसे-तैसे कट जाता है, लेकिन सेकेंड हाफ में दर्शक परेशान से नजर आते हैं। बहरहाल, कॉलेज के दिनों की कॉमेडी की तो तारीफ की जा सकती है, लेकिन अगर टेक्नोलॉजी और सिनेमेटोग्राफी के गुणों को छोड़ दिया जाए तो इसके कॉमर्शियल में कुछ नया कर दिखाने की कमी सी महसूस हुई। इसके अलावा फिल्म में आवश्यकता के हिसाब से संगीत (बॉबी-इमरान, कोमेल-शिवान) भी थोड़ा-बहुत ही लोगों को भाता है।