उन्होंने कहा कि सब चाहते है अच्छा, बड़ा बनूं। इसके लिए खुद के बारे में जानकारी करना आवश्यक है। विकास के अहंकार में जिंदगी के मूल्य छोड़ दें। नींव अच्छी हो तो मकान अच्छा बनेगा। नींव कच्ची रही तो तकलीफ होगी। हमारे
मन में प्रश्न पैदा होना चाहिए कि ऐसा क्यूं हो रहा है? सदियों से जो हो रहा है, यदि वह गलत होता तो रुक जाता।
डॉ. कोठारी ने कहा कि शरीर से जो तरंगें निकलती हैं, वे प्रभावित करती हैं। मंत्रों की ध्वनियां किसी एक बात को ध्यान में रखकर हैं। शब्द को हम ब्रह्म कहते हैं। अहं ब्रह्मास्मि कहते हैं, खुद को हम ईश्वर कहते हैं। हमें हमारे भीतर जो शक्तियां हैं, उनका विकास करना है। विकास का मतलब ईश्वर ने जो ताकत दी है, उसका विकास करना है। इसलिए जहां प्रार्थना की जाती है वहां सुगंध होगी और जहां गलत शब्द प्रयोग होगा, वहां दुर्गन्ध होगी। शब्दों में शक्ति है।
डॉ. कोठारी ने प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में पूछे गए प्रश्नों के सारगर्भित उत्तर दिए। उन्होंने कॅरियर से लेकर अध्यात्म के गूढ़ विषयों पर पूछे गए प्रश्नों के सरलतम तरीके से जवाब देते हुए जिज्ञासाएं शांत कीं। कार्यक्रम में क्षेत्र के प्रबुद्धजन,अफसर, शिक्षक, युवा एवं विद्यार्थी मौजूद थे।