फिल्म पठान में कपड़ों के रंग को लेकर उठे विवाद पर नेता अलग अलग बयान दे रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस विवाद की वजह एक धर्म विशेष के एक्टर का होना बताकर बीजेपी पर निशाना साधा। वहीं पार्टी के सांसद व लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता एसटी हसन ने भगवा रंग को लेकर साधु-संतों के पहनावे पर सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि यदि इतना ही भगवा रंग का ख्याल है तो इस रंग की साधु-संत धोती क्यों पहनते हैं? लोग टेबल, कुर्सी पर भगवा रंग की तौलिया क्यों डालते हैं. कांवड़ यात्रा में भगवा रंग की अंडर वियर क्यों पहनते हैं? इस पर किसी को ऐतराज नहीं है !
बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने सवाल किया कि अगर सत्ता में बैठे लोगों को ही फिल्म पर प्रतिबंध लगाना है तो सेंसर बोर्ड का क्या काम है? बात सेंसर बोर्ड की उठी है, तो आपको बता दें देश में 1913 में पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र बनी। तब तक भारत में फिल्मों को लेकर इस तरह का कोई कानून नहीं था। इंडियन सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1920 में बना। आजादी के बाद रीजनल सेंसर्स को मिलाकर बॉम्बे बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स बनाया गया।
इस बोर्ड का नाम बदलकर सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स हो गया। बाद में इस संस्था का नाम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन रखा गया। हालांकि अभी भी इसे सेंसर बोर्ड ही कहते हैं। यह फिल्मों के लिए सर्टिफिकेट जारी करती है न कि सेंसर। जब कोई फिल्ममेकर सर्टिफिकेशन के लिए अप्लाई करता है, तो रीजनल ऑफिसर एक जांच कमेटी बनाता है। फिल्म से किसी खास वर्ग की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। जांच कमेटी इस बात का पूरा ख्याल रखती है।