भगवान विष्णु का अवतार थे परशुराम, 21 बार किया था क्षत्रियों का नाश
Published: May 08, 2016 09:44:00 am
भगवान परशुराम का जन्म वैशाख कृष्णपक्ष तृतीया को भृगुवंशीय ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था
न्याय और क्षमाशीलता के पक्षधर भगवान परशुराम दीन-दुखियों, शोषितों और पीडि़तों की सहायता और रक्षा के लिए जाने जाते थे। परशुराम का सप्त चिरंजीवियों में स्थान है। वे आज भी इस ब्रह्मांड में विचरण करते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म वैशाख कृष्णपक्ष तृतीया को भृगुवंशीय ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था। विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार के रूप में अवतरित इनका प्रारम्भिक नाम ‘राम’ रखा गया, लेकिन अपने गुरु भगवान शिव से प्राप्त अमोघ दिव्य शस्त्र परशु (फरसा) को धारण करने के कारण यह परशुराम कहलाए।
जन्म समय में छह ग्रह उच्च के होने से वे तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी महापुरुष थे। प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य था। न्याय के पक्षधर परशुरामजी दीन दुखियों, शोषितों और पीडि़तों की निरंतर सहायता और रक्षा करते थे। आखिर में परशुराम ने कश्यप ऋषि को पृथ्वी का दान कर स्वयं महेन्द्र पर्वत पर निवास करने लगे। शास्त्रों के अनुसार ये चिरंजीवी हैं व आज भी जीवित व तपस्या में लीन हैं। परशुराम का सप्त चिरंजीवियों में स्थान है।
अश्वत्थामा वर्लिव्यासो हनुमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च: सप्तैते चिरजीविन:।।
धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि एक बार एक क्षत्रिय राजा ने भगवान परशुराम के पिता की धोखे से हत्या कर दी। इसका प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का खात्मा कर दिया। क्षत्रिय राजाओं के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध में उन्होंने पूरी पृथ्वी को ही राजाओं से मुक्त कर दिया तथा ब्राह्मणों को दान दे दी। अंत में देवताओं तथा अन्य प्रजाजनों के विनती पर उन्होंने इस युद्ध को रोका। परन्तु उन्होंने इसके बाद कभी किसी क्षत्रिय राजकुमार या राजा को अपना शिष्य नहीं बनाया।
विश्व के महानतम योद्धाओं को सिखाई शस्त्र विद्या
भगवान परशुराम ने भीष्म, द्रोणाचार्य तथा कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई थी। इन तीनों ने ही महाभारत के युद्ध में अपने कौशल का प्रदर्शन किया था। हालांकि कर्ण ने अपने सूतपुत्र होने की बात छिपाते हुए ब्राह्मण बनकर उनसे शिक्षा प्राप्त की परन्तु वास्तविकता सामने आने पर उन्होंने कर्ण को अपनी मृत्यु के समय शस्त्र विद्या भूलने का शाप दिया।