बातचीत के दौरान प्रसून ने कहा कि जब हम जैसे पोएट पोएट्री लिखते हैं तो उसका एक मीटर होता है। ऐसे में राइटर को सिंगर से एक आजादी चाहिए होती है। जिससे उसकी कविता का तारतम्य सही रहे। मुझे खुशी है कि शंकर ने मुझे मेरे गानों में हमेशा यह आजादी दी है। ‘खो न जाएं ये तारे जमीं पर’ लिखते समय मेरे सामने यह दुविधा थी कि इसका तारतम्य बना रहे। इस बात पर शंकर महादेवन ने कहा कि मैं एक ही पंक्ति को बार—बार दोहराना नहीं चाहता था।हालांकि जब इन्होंने दो लाइन और लिखीं, ‘देखो इन्हें ये हैं ओस की बूंदें’ तब मैंने फैसला लिया कि शब्दों की खूबसूरती नहीं बिगड़नी चाहिए। चाहे मुझे बार—बार ही एक धुन क्यों न गुनगुनानी पड़े।
शंकर ने कहा कि ‘कजरारे कजरारे’ गाना नमसकीर्तन पर आधारित है। इस तरह के भजन में एक—एक लाइन का कोरस चलता है। जब मैंने इससे इंस्पायर होकर यह गाना रिलीज किया तो दूसरे दिन मेरे पास पं जसराज जी का फोन आया; मैं डर गया कि बडी गलती हो गई है, लेकिन उन्होंने कहा कि शाम से ही मैं यह गाना गुनगुना रहा हूं, तो काफी खुशी हुई। मेरे अनुसार क्लासिकल के साथ बॉलीवुड में भी उतनी ही एक्सपर्टीज चाहिए।
इस बातचीत के दौरान प्रसून ने कहा कि एक बेहतरीन गीत वही होता है जिसमें आप ये पता न कर सके कि ‘पहले शब्द लिखे गए या फिर धुन रची गई थी। जहां शंकर ने मेरे शब्दों की अंगुली थाम ली और मैंने इनकी धुन की। शंकर ने कहा कि कोई भी गाना हो, उसके शब्द जिस दिशा में जा रहे हैं, उसे महसूस कर अपने सुर लगाना ही संगीतज्ञ की कला है।
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