प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी सत्यप्रकाश पांडे ने बताया कि इस अभियान को सुगमता पूर्वक व प्रभावी रूप से संपन्न करने हेतु बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के समस्त परियोजना अधिकारी, आंगनबाड़ी, स्वयंसहायता समूह के प्रतिनिधि, ग्राम पंचायत प्रतिनिधि, शिक्षक एएनएम, आशा व अन्य विभागों के कर्मियों के साथ अगस्त तक सघन रूप से चलाया जा रहा है। घरों में जाकर 6 माह की आयु तक के सभी बच्चों को सिर्फ स्तनपान सुनिश्चित करवाया जा रहा है। पानी व अन्य ऊपरी पेय पदार्थों को देने संबंधी भ्रांतियों को दूर करने हेतु जागरूक किया जा रहा है।
जिला पोषण विशेषज्ञ प्रदीप शर्मा ने बताया कि वर्ष 2018 में जिले के 4 ब्लॉक में आईसीडीएस विभाग, स्वास्थ्य विभाग व पंचायती राज विभाग ने संयुक्त रूप से पानी नहीं सिर्फ मां का दूध अभियान चलाया था। जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने मिला। अतः इस वर्ष जिले के सभी ब्लॉकों में पानी नहीं, सिर्फ मां का दूध अभियान चलाने का निर्णय जिला पोषण समिति द्वारा लिया गया है।
-मां का पहला दूध नवजात शिशु का पहला टीकाकरण है जो उसे विभिन्न बीमारियों से बचाता है।
-मां के दूध में 80% पानी होता है जो शिशु की पानी की आवश्यकता को पूरा करता है।
-शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए मां के दूध में सभी पोषक तत्व व ऊर्जा होती है अतः 6 माह तक के शिशु को भूख अथवा प्यास लगने पर सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए।
शिशु का पेट बहुत ही छोटा होता है जब शिशु को पानी पिला दिया जाता है तो मां के पोषक दूध के लिए उसके पेट में जगह नहीं रह जाती।
पानी सदैव साफ और सुरक्षित नहीं होता जो शिशु में संक्रमण का कारण हो सकता है। पानी देने से शिशु दस्त बीमारियों और कुपोषण का शिकार हो सकता है।
-शिशु को पानी देने से उसमें पीलिया के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
-शिशु को पानी देने से उसमें धुंधला दिखाई पड़ने, अंग फड़कने, हाथ पैर सही से काम न करने, सांस की समस्या आदि उत्पन्न हो सकती है।
-एनएफएचएस 4, 2015 -16 के अनुसार जिला एटा में जन्म के तुरंत बाद स्तनपान करने वाले बच्चे 21.9% व सिर्फ स्तनपान का प्रतिशत 47.1 है।
-उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई द्वारा प्रदेश के 25 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों में कराए गए कम्युनिटी बिहेवियर सर्वे (सीबीटीएस 3) 2016 के अनुसार 35% बच्चे स्तनपान के साथ-साथ ऊपरी पानी मिलने के कारण 6 माह तक सिर्फ स्तनपान के अनिवार्य व्यवहार से पृथक हो जाते हैं।यदि पानी देने के इस व्यवहार को रोक दिया जाए तो 35% बच्चों के पोषण स्तर को भी बेहतर बनाया जा सकता है।