ये है मामला
पीड़ित बजीर सिंह ने बताया कि 1998 में एक मुकदमे के मामले में वो जेल में थे और उनके साथी रंजीत सिंह यादव सुपरिटेन्डेन्ट से अथॉरिटी लेटर प्रमाणित करा कर गन हाउस पर रायफल जमा कराने जा ही रहे थे कि तत्कालीन एएसपी ने उन्हें रास्ते मे ही रोककर पकड़ लिया और जबरन उसे धारा 25/27 में उनका चालान कर जेल भेज दिया था। जब न्यायालय ने पुलिस से रिपोर्ट मांगी तो उसमें रंजीत को न्यायालय ने निर्दोष माना था। पुलिस ने रिपोर्ट दी कि रायफल और लाइसेंस थाने में जमा है।
पीड़ित बजीर सिंह ने बताया कि 1998 में एक मुकदमे के मामले में वो जेल में थे और उनके साथी रंजीत सिंह यादव सुपरिटेन्डेन्ट से अथॉरिटी लेटर प्रमाणित करा कर गन हाउस पर रायफल जमा कराने जा ही रहे थे कि तत्कालीन एएसपी ने उन्हें रास्ते मे ही रोककर पकड़ लिया और जबरन उसे धारा 25/27 में उनका चालान कर जेल भेज दिया था। जब न्यायालय ने पुलिस से रिपोर्ट मांगी तो उसमें रंजीत को न्यायालय ने निर्दोष माना था। पुलिस ने रिपोर्ट दी कि रायफल और लाइसेंस थाने में जमा है।
2013 में मामले में बरी होने के बाद जब पीड़ित बजीर सिंह यादव ब्लॉक प्रमुख ने थाने में जाकर जब अपनी रायफल मांगी तो थाने के मालखाने से रायफल गायब थी। इसके बाद पीड़ित ढाई साल तक कोर्ट के चक्कर लगाता रहा, जिसके बाद हाईकोर्ट ने चार हफ्ते में रायफल मामले को डिसाइड करने को कहा और 25-09 के आदेश कोतवाली में पीड़ित बजीर सिंह यादव को रायफल सौपी जाने का आदेश तामील हो गया। लेकिन पीड़ित की रायफल का अभी तक कुछ भी पता नहीं चला है और वो चक्कर लगा रहा है। अब थाने के पुलिस कर्मी मामले को टालते नजर आ रहे हैं।