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गांधी के पैरोकार, अन्ना के साथी, पेशे से समाजसेवी, नाम है पागल

locationएटाPublished: Oct 26, 2017 02:45:23 pm

Submitted by:

suchita mishra

एटा शहर में पागल नाम से मशहूर समाजसेवी दयानंद ने अपना पूरा जीवन आम लोगों के लिए समर्पित कर दिया, पढें इनके जीवन से जुड़ी विशेष बातें।

Social Worker Dayaram Pagal

Social Worker Dayaram Pagal

एटा। महात्मा गांधी और अन्ना हजारे जैसे देशभक्त और समाजसेवियों को सभी जानते हैं, लेकिन हम आपको आज मिलवाएंगे एक ऐसे शख्स से जिसने अपना पूरा जीवन आम लोगों को समर्पित कर दिया। जीवनभर गांधी जी के आदर्शों पर चले और अन्ना हजारे के कई अनशन में उनके साथी रहे। हम बात कर रहे हैं एटा शहर के दयाराम की। जिन्हें प्यार से लोग दयाराम ‘पागल’ के नाम से बुलाते हैं।
सैकड़ों बार अनशन और सत्याग्रह
दुबले पतले शरीर वाले दयाराम लोगों की मूलभूत सुविधाओं जैसे सिंचाई, पानी, स्वास्थ्य, सड़क जैसे मुद्दों के लिए लखनउ से लेकर दिल्ली तक कई बार अनशन कर चुके हैं। 33 सालों से इनकी ये जंग जारी है। जलेसर गांव के नगला मीरा में जन्मे दयाराम ने बताया कि वे इसके लिए कई बड़े-बड़े नेताओं से भी गुहार लगा चुके हैं। सुनवाई न होने पर 1983 से उन्होंने ये लड़ाई शुरू की। वे बताते हैं कि सबसे पहले वे जिले की तहसील जलेसर क्षेत्र के लिए लड़े। वहां 30 किलोमीटर के दायरे में खारा पानी होने के कारण, क्षेत्रीय किसान परेशान थे। इस समस्या को लेकर उन्होंने 1983 से 1986 तक लड़ाई लड़ी। इस दौरान वे 29 बार एटा के जिलाधिकारी से मिले, फिर भी कामयाबी नहीं मिली तो लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष बलराम जाखड़ के पास जा पहुंचे। उन्होंने शासन से अनुमति ली, इसके बाद सिंचाई के लिए नहर व बम्बा निर्माण हुआ।
किसानों के लिए ढाई महीने अनशन पर बैठे
किसानों की समस्याओं को लेकर दयाराम पागल ने करीब ढाई महीने तक अनशन किया। जलेसर तहसील क्षेत्र के नगला मीरा में खारे पानी की समस्या को लेकर इतने परेशान थे कि उनकी प्यास नहीं बुझती थी। उन्होंने उन लोगों के लिए मीठा पानी ढूंढने के लिए उन्नीस सौ स्थानों पर बोरिंग कराई। मीठा पानी मिलने के बाद जिला प्रशासन से गांव में पानी की टंकी बनवाने के लिए लखनऊ तक संघर्ष किया। इसके बाद जाकर कामयाबी मिल सकी।
तीन बार किया अन्ना के साथ अनशन
दयाराम पागल कई बार भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर आवाज उठा चुके हैं। वे तीन बार अन्ना हजारे के साथ अनशन कर चुके हैं। भ्रष्टाचार से वे इतने दुखी हुए कि उन्हें कुर्सी से नफरत हो गई। उन्होंने कुर्सी पर बैठना बंद कर दिया। 1990 से कुर्सी पर बैठना छोड़ चुके हैं। बैठने के लिए वे जमीन का प्रयोग करते हैं। दयाराम को लोग प्यार से पागल बुलाते हैं, वे इस नाम को सम्मान के साथ स्वीकारते हैं।

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