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यूपी-एमपी के बीच का टूटा कनेक्शन, चंबल पुल के क्षतिग्रस्त होने से मचा हड़कंप

locationइटावाPublished: Sep 23, 2018 08:54:22 am

1970 के आसपास चंबल पुल शुरू होने पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश एक-दूसरे से जुड़ गए थे…

UP MP Connecting Chambal river bridge damage in Etawah

चंबल पुल के क्षतिग्रस्त होने से मचा हडकंप, यूपी-एमपी के बीच का टूटा कनेक्शन

इटावा. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच आवागमन का एक मात्र आसान माध्यम चंबल नदी पर बने पुल के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण हडकंप मच गया। क्षतिग्रस्त होने के कारण लोकनिर्माण विभाग ने पुल से आवागमन प्रतिबंधित करने की तैयारी शुरू कर दी है। अनुमान लगाया जा रहा है आज चंबल पुल से आवागमन बंद कर दिया जाएगा।
पुल के आवागमान पर रोक

लोक निर्माण विभाग राष्ट्रीय मार्ग खंड शाखा के अधिशाषी अभियंता एमसी शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय मार्ग संख्या 92 इटावा-भिंड-ग्वालियर मार्ग के चंबल पुल के पिलर नंबर दो और तीन के बीच बीम में भारी भरकम छेद हो गया है। इस कारण आवागमन पर पूरी तरह से रोक लगाने की तैयारी कर ली गई है। भारी वाहनों के लगातार गुजरने के चलते चंबल पुल के इस बीम का लिंटर टूटने का अंदेशा जताया जा रहा है।
पहले भी पुल हो चुका है क्षतिग्रस्त

इससे पहले 11 मई को इस पुल के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण पुल को बंद कर दिया गया था। जिस पर तीव्रगति से चले दुरूस्तीकरण के अभियान के बाद 20 जून को चंबल पुल को चालू कराया गया था। 11 मई को पुल का पिलर संख्या 6 के दक्षिणी बीम के नीचे स्थापित रोलर बेयरिंग क्षतिग्रस्त से आवागमन बंद करना पड़ा था। साल 2016 अप्रैल माह में भी दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाला लिंटर छतिग्रस्त हो गया था। करीब एक माह तक बंद रहने के बाद पुल चालू किया गया था।
काफी महत्वपूर्ण है पुल

लगातार खराब हो रही दशा के चलते उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब 4 साल पहले 21 लाख रूपए जारी करके चंबल पुल की मरम्मत शुरू कराई थी। यह पुल ग्वालियर-बरेली राष्ट्रीय राजमार्ग-92 पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। करीब चार दशक पूर्व स्थापित इस पुल की क्षमता 20-25 टन वजन सहने की थी। बीते दशक से बालू तथा गिट्टी भरे करीब 70- 80 टन वजन के वाहनों और डंपरों के बेतहाशा संचालन से यह पुल दर्जनों बार क्षतिग्रस्त हो चुका है। इस बार दोनों ओर की एप्रोच धसक गई, इससे पुल जर्जर हालत में आ गया।
पुल न होने पर होती थी परेशानी

चार दशक पूर्व चंबल पुल का निर्माण न होने तक इटावा-भिंड आने-जाने के लिए स्टीमर और नावों का प्रयोग करना पड़ता था। 1970 के आसपास चंबल पुल का लोकार्पण होने पर दोनों राज्य एक-दूसरे से परस्पर जुड़ गए थे। इससे आवागमन तो सहज हुआ साथ ही व्यापारिक और सामाजिक रिश्ते और ज्यादा मजबूत हुए।
भारी वाहनों के निकलने से पुल हुआ क्षतिग्रस्त

तत्कालीन इंजीनियरों ने इस पुल का निर्माण कराने के दौरान अनुमान लगाया था कि ज्यादा से ज्यादा बीस-पच्चीस टन वजनी वाहन आवागमन करेंगे। इसी क्षमता के अनुरूप पुल का निर्माण कराया था। बेतहाशा ओवर लोडिंग ने इंजीनियरों के अनुमानों को पलीता लगा दिया। डंपर और ट्राला ट्रकों के माध्यम से तीस से अस्सी टन वजन के वाहन इस पुल से गुजरने लगे। इसके चलते पुल के कई बार खंभों के नीचे लगे बेयरिंग टूटे। खामियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ा।
लगातार क्षतिग्रस्त हो रहा पुल

चंबल पुल से प्रतिदिन इधर से उधर जाने वाले मध्यप्रदेश के बरही गांव के वासी रविकांत का कहना है कि क्षमता से अधिक भारी वाहनों के चलने के कारण चंबल पुल की दशा लगातार खराब हो रही है। साल 2003 में पुल की बैरिंग खराब हो गई थी उसके बाद पुल को एक माह के लिए बंद करके इस पर मरम्मत का काम किया गया था लेकिन तब से पुल की दशा लगातार बिगड़ती ही चली जा रही है।
भारी वाहनों के निकलने पर लगे रोक

इसी गांव के रहने वाले भानु प्रताप सिंह का कहना है कि जैसा की साफ तौर पर नजर आ ही रहा है कि पुल पर भारी वाहनों के गुजरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जरूरत इस बात की है कि पुल पर से भारी वाहनों के गुजरने पर पहले रोक लगाई जाए, उसके बाद पुल की मरम्मत का काम किया जाए। तो यह पुल लोगों को फायदा दे सकता है। अन्यथा किसी न किसी दिन बड़ा हादसा पेश आ सकता है। भानु का कहना है कि अगर सरकार चंबल नदी पर एक और पुल का निर्माण का करवा दे तो सोने पर सुहागा हो जाएगा।
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