आधी रात को शुरू होती है साधना इटावा के श्मसान पर अघोरी संत गौरव की यह उग्र तारा साधना बम बम भैरव के उद्घोष के साथ आधी रात को उस समय शुरू होती है, जब आसमान पर चंद्रदेव अपने क्षितिज पर होते हैं। साधना के दौरान इस कड़ाके की ठंड में नंगे बदन अघोरी संत गौरव भैरव पहले भैरव नाथ की पूजा करते हैं। श्मशान के काल भैरव की यह पूजा घनघोर अंधेरे में होती है। इस पूजा में किसी अपवित्र शख्स को प्रवेश की इजाजत यह अघोरी संत नहीं देते। एक घंटे तक काल भैरव की पूजा करने के बाद अघोरी संत गौरव भैरव इटावा के श्मशान स्थल पर अपनी साधना शुरू करते हैं। श्मशान की इस साधना में शमशान की सहचरियों व देवी के गणों को भोग दिया जाता है। साथ ही श्मसान स्थल को दीपक की रोशनी से प्रकाशित किया जाता है। अघोरी की इस रहस्यमय तंत्र मंत्र पूजा में सबसे बाद में देवी उग्र तारा माता की सात्विक पद्धति से साधना की जाती है।
माघ की पूर्णमासी तक चलेगी साधना बाबा अघोरी गौरव भैरव बताते हैं कि इटावा के मरघट पर साधना करने आना उनके पूर्व जन्म संस्कार हैं। उनकी यह रहस्यमयी साधना माघ की पूर्णमासी तक चलेगी। उन्होंने बताया कि यह साधना पंच मकार पद्धति से की जाती है। अघोरी बाबा गौरव भैरव बताते हैं कि शठ कर्म से की जाने वाली पूजा गलत होती है। ऐसी पूजा करने वाला संत पापा का भागी होता है। उन्होंने बताया साधक अघोरी तंत्र यह एक अघोरी संत के लिये उच्च कोटि की स्थिति होती है। ऐसी साधना करने वाला संत देश हित व समाज हित में अपनी साधना करता है। बाबा अघोरी गौरव संत बताते हैं कि एक अघोरी संत अपनी साधना के लिए श्मशान स्थल इसलिये चुनता है क्योंकि श्मशान पर ही भगवान शिव का अघोरी रूप में साक्षात वास रहता है और एक संत को श्मशान पर साधना करने से परम सत्य का ज्ञान होता है। अघोरी बाबा अपने शिष्यों के साथ इटावा के श्मशान में इस समय विराजमान हैं। इनकी यह रहस्यमयी साधना रात 11 बजे से सुबह 4 बजे तक चलती है। उनकी इस कठोर और रहस्यमयी साधना में उनके कुछ खास शिष्य साथ रहते हैं।