उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन केवल नेताओं के आपसी तालमेल का गठबंधन है। इस गठबंधन से आम मतदाता का कोई लेना देना नहीं है। चुनाव के बाद दोनों दल के प्रमुख एक दूसरे के खिलाफ मुखर होते हुए नजर आएंगे। भले ही आंकड़े उनके पक्ष में बताए जा रहे हों, लेकिन ऐसा हकीकत में नहीं है क्योंकि दोनों दल पहले ही पूरे प्रदेश भर में आधी आधी सीटो पर संसदीय चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि सपा बसपा गठबंधन कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि एक दूसरे संगठन के लोग एक दूसरे को हराने में जुटे हुए ऐसी खबरें उनके पास में आ रही है उनकी सभाओं में भीड़ भी नहीं मिट रही है, केवल जाति सम्मेलन के बल पर वो अपने आप को आगे बताने में जुटे हुए हैं जबकि हकीकत में दोनों दल भाजपा के मुकाबले कहीं भी नहीं टिक रहे हैं।
कठेरिया ने कहा कि दोनों दल के मुखिया अपने अपने दलों के समर्थकों को तरह तरह का प्रलोभन देकर के गुमराह करते रहते हैं, लेकिन अब लोग काफी जागरूक हो चुके हैं। इस जागरूकता का असर 2014 के संसदीय चुनाव में तो दिखाई ही दिया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आया। विधानसभा में दोनों दलों की विधायक संख्या भी इतनी कम हो चुकी है कि जो कहीं पर भी मुकाबले में खड़े होते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं।