चंबल की प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को आज न केवल सुरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि उसको लोकप्रिय भी बनाना है। निश्चित तौर पर जो प्राकृतिक संपदा मिली है, उसे ईको पर्यटन के तौर पर विकसित करके जिले को नई दिशा दी जा सकती है। अब फिल्मों और वीडियो द्वारा ये दुनियाभर में विख्यात हैं।
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दहशत की जगह में अब सुकून पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर नेचर के चैयरमैन डा.राजीव चौहान बबाते है कि चंबल घाटी का नाम आते ही शरीर मे सिहरन दौड़ जाती है। क्योंकि ज्यादातर लोग मानते है कि खौफ और दहशत का दूसरा नाम चंबल घाटी है, जबकि हकीकत मे ऐसा नही है। चंबल मे ऊबड़ खाबड़ मिट्टी के पहाड़ों के बीच कलकल बहती चंबल नदी की सुंदरता की कोई दूसरी बानगी शायद ही देश भर मे कहीं और देखने को मिले। नदी सैकडों दुर्लभ जलचरो का आशियाना है जिसमें घडियाल, मगरमच्छ, कछुए, डाल्फिन के अलावा करीब ढाई से अधिक प्रजाति के पक्षी चंबल की खूबसूरती को चार चांद लगाते है। दुनिया भर के लिए बन रहे आकर्षक स्थान चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाह आलम बताते है कि उत्तराखंड और कश्मीर की सुंदर वादियों की तरह चंबल की नैसर्गिक सुंदरता किसी का मन मोह सकती है। कश्मीर और उत्तराखंड की सुदंरता देखने के लिये देश दुनिया भर से पर्यटक आते है लेकिन चंबल को अभी वह मुकाम हासिल नहीं हुआ है, जिसका वाकई मे वो हकदार रहा है । पीले फूलों के लिए ख्याति प्राप्त रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कम भी नहीं है। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं। चंबल की इन वादियों के प्रति बालीबुड भी मुंबई की रंगीनियों से हटकर इन वादियों की ओर आकर्षित हुए और डकैत, मुझे जीने दो, चंबल की कसम, डाकू पुतलीबाई जैसी फिल्मों ने दुनिया भर के दर्शकों का मनोरंजन किया।
औषधियों का भी है खजाना चंबल की इन वादियों में अनगिनत ऐसी औषधियां भी समाहित है जो जीवनदान दे सकतीं हैं। यकीनन इन वादियों के इर्द-गिर्द रहने वाले युवकों को रोजगार तो मिलेगा ही बल्कि वादियों की दस्यु समस्या को भी सदा-सदा के लिए दूर किया जा सकेगा और चंबल की यह घाटी समृद्धि होकर विश्व पर्यटन के मानचित्र पर अपना नाम दर्ज कर सकेगी ।
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साभारः दिनेश शाक्य