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जीएसटी ने महात्मा गांधी के अनुयाई “बुनकरों” को मजदूरी करने पर किया मजबूर

locationइटावाPublished: Sep 30, 2018 10:27:29 pm

Submitted by:

Ashish Pandey

१967 में स्थापति की गई सूत मिल को भी 1999 मे बंद कर दिया गया।
 

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जीएसटी ने महात्मा गांधी के अनुयाई “बुनकरों” को मजदूरी करने पर किया मजबूर

दिनेश शाक्य
इटावा. आजादी पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से बुनकरी कारोबार शुरू करने वाले बुनकरों की कमर केंद्र की मोदी सरकार की जीएसटी (गुडस एंड सर्विस टैक्स) ने तोड़ कर रख दी है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 40 फीसदी के आसपास बुनकरों ने अपना-अपना धंधा बंद कर पेट भरने के लिए आटो चलाने के अलावा मजदूरी करना शुरू कर दिया है। इटावा में बुनकरी कारोबार आजादी से बहुत पहले शुरू हो गया था। 1928 में महात्मा गांधी इटावा आये थे। गांधी का सूत प्रेम देखकर बुनकरों के मन में नया उत्साह पैदा हुआ और आजादी के वक्त तक इटावा में बुनकरी का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा। आजादी के बाद भी यह बढ़त जारी रही लेकिन तब तक जब तक सरकार ने विकास की योजनाओं का श्रीगणेश नहीं कर दिया।
बदहाल है मजबूर
पहले से बदहाली में जी रहे इटावा के बुनकरों के सामने जीएसटी लागू होने के बाद अब रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है क्यों कि बुनकरी से अब पेट भरने के सिवाय कुछ नहीं हो पा रहा है चाह कर भी बुनकर अब कुछ नहीं कर पा रहे। असल में बुनकर इस कारोबार से दूरी बनाना चाह रहे हैं लेकिन उनको कोई दूसरा कारोबार आता भी नहीं हैं।
हथकरधा विभाग की है राय
इटावा हथकरधा विभाग के उप उपायुक्त सर्वेश कुमार शुक्ला का कहना है कि इटावा मे 400 के आसपास बुनकर समितियों को नामित करा रखा था, लेकिन अब मात्र 200 के आसपास ही क्रियाशील है। जो इस क्रम से अलग हो जाती है, उनको धारा 65 के तहत जांच के दायरे में लेकर फिर से सक्रिय किया जाता है। फिलहाल सरकारी की बुनकर के लिए कोई स्पेशल योजना नहीं है, लेकिन केंद्र सरकार के संचालित एक योजना मेरठ की एक संस्था के माध्यम से संचालित किया गया है, जिसमें 200 बुनकरों की संख्या वाली समितियों को लाभ प्रदत्त दिया जा रहा है। वैसे सरकार ने बुनकरों को सीधे लाभ देने के लिए उनके आधार कार्ड आदि को जमा करवाया हुआ है जो किसी भी तरह का लाभ सीधे उनके खाते में भेजा जाता है चाहे वह उपकरण या फिर सूत काटने संबधी हो।
जीएसटी के बाद बुनकर हैं बदहाल
इटावा के बुनकर कारोबार से जुड़े कारोबारी फिरोज अहमद का कहना है कि पिछले साल एक जुलाई से लागू किये गये जीएसटी के बाद किसी ने भी अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है जब कि इटावा में करीब 4500 करधे बुनकरों ने लगा कर रखे हैं और 222 समितियॉ नामित हैं। इस योजना का सबसे बड़ा दुर्भाग्य भी माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि तकनीकी तौर पर मजबूत ना होने के कारण बुनकरों की ओर से अभी तक किसी भी संस्था ने अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है। दूसरे बुनकरों को इतनी आय भी नहीं है कि अपने आप को इस टैक्स के लिए सक्षम पाएं। असल में खेती के बाद देश में बुनकर कारोबार ही ऐसा माना जाता है जो रोजगार देने का दूसरा बड़ा माध्यम बना हुआ था, लेकिन जीएसटी के लागू होने के बाद बुनकरों के सामने संकट दर संकट आ खड़ा हुआ है।
टैक्स प्रकिया को गलत मानते हैं बुनकर
वे बताते हैं कि आजादी के बाद हमेशा से हैंडलूम उद्योग भी पूरी तहर से टैक्स के दायरे से मुक्त था, लेकिन अब जीएसटी के बाद बुनकर कारोबार पर टैक्स लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह टैक्स लगाने की प्रक्रिया बेहद कठिनाई भरी बन गई है। उन्होंने बताया कि जीएसटी में पांच प्रतिशत टैक्स लगाया गया है, लेकिन असलियत में टैक्स की जो प्रक्रिया है वो 18 फीसदी के आसपास बना हुआ है। वैसे यहां निर्मित कपड़ा देश के बाहर चीन, जापान, कनाडा आदि भी जा चुका है, लेकिन वो बीते दिनों की बात मानी जायेगी।
बुनकर संघर्ष समिति के जिला अध्यक्ष मुईन अंसारी ने बताया कि जीएसटी लागू होने के बाद सूत के दामों में काफी वृद्धि हुयी ह,ै जिससे सूत खरीदकर कपड़ा तैयार करने में बहुत लागत आ रही है। जिस कारण उत्पादित माल की कीमतें बढ़ गयीं हैं और बिक्री पर खासा असर पड़ रहा है। इटावा का बुनकर जो माल दूसरे शहरों की मण्डियों में बेचने को ले जाता था वहां माल की खरीद में बड़ी कमी आई है। जीएसटी के कारण खरीदारी पर प्रभाव पड़ा है और मांग में भारी कमी के चलते बुनकर व्यापारी व मजदूर भुखमरी की कगार पर आ गए हैं और उनके परिवारों के सामने भरण पोषण के लाले पड़ गए हैं। उन्होंने मांग की है कि सरकार बुनकरों की दुर्दशा पर ध्यान दे और जीएसटी में संशोधन कर करों में राहत प्रदान करे अन्यथा बुनकर व्यवसाय पूर्णत: ठप्प हो जायेगा।
महात्मा गांधी को प्ररेक मान कर रहे हैं बुनकरी
आजादी से पहले इटावा आये महात्मा गांधी को इटावा के बुनकरों ने हाथों से बना हुआ सूत भेंट के तौर पर दिया था तभी से बुनकर गांधी जी की चरखा आंदोलन की अलख को जगाने में लगे हुये लेकिन बुनकरी कारोबार से बुनकर अपने अपने कुनबों को सरसव्य नहीं कर पा रहे हंै। वो अपना कारोबार बदलना चाह रहे हैं लेकिन मजबूरी है कि वो कारोबार को बदल नहीं पा रहे हैं क्यों कि वो कोई दूसरा कारोबार करना जानते भी नहीं है।
1929 मे आये गांधी को दी गई थी सूत की लडियॉ
इटावा में बुनकरी कारोबार आजादी से बहुत पहले शुरू हो गया था। 1928 में महात्मा गांधी इटावा आये थे। गांधी का सूत प्रेम देखकर बुनकरों के मन में नया उत्साह पैदा हुआ और आजादी के वक्त तक इटावा में बुनकरी का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा। आजादी के बाद भी यह बढ़त जारी रही लेकिन तब तक जब तक सरकार ने विकास की योजनाओं का श्रीगणेश नहीं कर दिया।
1967 मे सूत मिल की हुई थी व्यवस्था
उत्तर प्रदेश में चंद्रभान गुप्त ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य की पहली सूत मिल 1967 में इटावा में स्थापित कराई। यह सब इटावा के बुनकर कारोबार को ध्यान में रख कर बुनकरों के हितों में किया गया महत्वपूर्ण कदम समझा गया। जिस समय सूत मिल की स्थापना हुई उस समय इटावा एवं आसपास के बुनकरों को सूत सस्ते दर पर मिलना शुरू हो गया, लेकिन सरकार की योजनाओं का लाभ ज्यादा समय तक बुनकर उठाने में सफल नहीं हो सका क्यों कि सरकारी मशीनरी बुनकरों का अहित करने में जुट गयी। 1967 मे स्थापति की गई सूत मिल को भी 1999 मे बंद कर दिया गया, जिसे पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने सूत मिल को पूरी तरह से नेस्तानाबूत कर आवास विकास कालोनी स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

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