6 जून को लवेदी थाना क्षेत्र के महात्मा गांधी इंटर कालेज परिसर मे मिले दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध का हवाला देते हुए बताया कि यह आम गिद्धों से अलग है क्योंकि पहले इस इलाके में गिद्ध पाये जाते थे।इससे पहले 23 दिसंबर, 2017 को इसी प्राजाति का एक विशाल गिद्ध मिला था, जो चलने फिरने से काफी लाचार था। जंगली जानवरों के झप्पटे के कारण उसकी मौत हो गई थी। लेकिन मौत का शिकार हुआ यह गिद्ध करीब 8 फुट लंबा और 15 किलो वजनी था।
पहले से विलुप्त हुए हैं गिद्ध पर्यावरणीय संस्था सोसाइटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव संजीव चौहान का कहना है कि चंबल इलाके मे पहले काफी गिद्ध देखे जाते थे। लेकिन बदले हालात मे गिद्धों गायब हो गए हैं। चंबल में इससे पहले 2003 तक गिद्दों की तीन प्रजातियों को देखा जाता था। इनमें लांगबिल्डबल्चर, वाइटबैक्डबल्चर, किंगबल्चर हैं,जो तेजी से विलुप्त हुये हैं। जबकि इजफ्सियनबल्चर लगातार देखे जाते रहे हैं। इनके उपर किसी तरह का प्रभाव नजर नहीं आया। गिद्ध के संरक्षण की दिशा में काम कर रही वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन की पहल के बाद वर्ष 2002 में इसे वन्य जीव अधिनियम के तहत इसके शिकार को प्रतिबंधित करते हुए इसे शेड्यूल वन का दर्जा दिया गया।
गिद्ध की संख्या में 99 फीसदी गिरावट अस्सी के दशक में एशिया के देशों में गिद्धों की सर्वाधिक संख्या भारत में ही थी। एक शोध के मुताबिक भारत, नेपाल और पाकिस्तान में गिद्धों की संख्या सिमट कर महज तीन हजार रह गई है। जबकि अस्सी के दशक में गिद्धों की संख्या साढ़े आठ करोड़ थी। जिस तेजी के साथ वल्चर गायब हुआ ऐसा अभी तक कोई जीव गायब नहीं हुआ। ताज्जुब यह है कि पिछले एक दशक के दौरान ही गिद्ध की संख्या में अप्रत्याशित रूप से 99 फीसदी की गिरावट आई है।