बेशक पवन पुत्र श्री हनुमान शोभायात्रा पहली दफा निकाली जा रही हो, लेकिन इस यात्रा को लेकर के जैसी उम्मीद जताई जा रही थी, उस तरह का जनसमर्थन हासिल नहीं हो सका। इस शोभायात्रा का सबसे दुखद पहलू यह माना जा रहा है कि इसमें शामिल हुए अधिकाधिक लोग जय श्री राम के नारे लगाते हुए ही दिखाई दिए। बंजरगी से जुड़ी हुई उनकी किसी भी चौपाई का प्रयोग करते हुए ना तो कोई दिखा और ना ही कोई हनुमान चालीसा का गान करता नजर आया। इस यात्रा में एक ऐसा भी रथ था, जिसमें भगवान श्री राम और लक्ष्मण को विराजे हुए दर्शाया गया था जबकि पवन पुत्र श्री हनुमान को अलग एक रथ पर स्थापित किया गया था। केवल उनकी पूजा करके ही इतिश्री कर ली गई।
इस यात्रा को 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। देश में पहली बार निकाली जा रही इस यात्रा को लेकर के तरह-तरह की बातें भी कही गई। कई लोग ने कहा कि राजनेताओं ने महापुरुषों के नाम पर यात्राओं को वोट लेने के इरादे से निकालना शुरू कर दिया है। राम भक्त हनुमान की शोभायात्रा के नाम पर एक नई परंपरा की शुरूआत से लोग आश्चर्यचकित हैं हालांकि इस यात्रा को निकालने वाले हिन्दू युवा वाहिनी के पदाधिकारी इससे साफ इंकार करते हैं।
श्री हनुमान शोभा यात्रा को शुरू करने से पहले इटावा शहर के कई हिस्सों में बैनर लगाए गये जिसकी चर्चाये पूरे शहर भर में रही।
यात्रा में मुख्य अतिथि रहीं सरिता भदौरिया का कहना है कि आज बुढवा मंगल है। उसी के मद्देनजर धार्मिकता के हिसाब से इस यात्रा को निकाला गया। इस यात्रा को लेकर कड़े सुरक्षा के इंतजामात भी किये गये। सीओ सिटी डा.अंजनी कुमार चतुर्वेदी, सिटी मजिस्टेट एस एन शुक्ला समेत बड़ी तादाद में पुलिस और पीएसी बल की तैनाताी करके रखी गई।
हिन्दू युवा वाहिनी के जिला प्रभारी राजेन्द्र प्रजापित का कहना है कि इस यात्रा का मुख्य मकसद जाति छोड़ो हिन्दू जोड़ो है। वाहिनी के जिला महामंत्री शैलेंद्र तोमर का कहना है कि श्री राम जी के भक्त हनुमान जी है। हमेशा उनका साथ है। बाल ब्रहमचारी राम भक्त हनुमान जी हिंदुत्व के सबसे बड़े पुजारी है। इस वजह से हनुमान शोभा यात्रा निकालने का निर्णय लिया गया।
इसके ठीक विपरीत समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष गोपाल यादव का कहना है कि हम समझते हैं कि कहीं से भी यह यात्रा आस्था से प्रेरित नहीं है। पूरी तरह से इसका उद्देश्य राजनीतिक है। हमारा मानना है कि आस्था तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन आस्था व्यतिगत होती है। आस्था का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिये।