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मुलायम सिंह यादव पुण्यतिथि: ‘धरती पुत्र’ ने तीन बार संभाली यूपी की कमान, राजनीतिक दाव-पेंच से बड़े-बड़ों को किया चित

10 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की दूसरी पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं कि अखाड़े में पहलवानी के दाव- पेंच आजमाने वाले मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक करियर के दौरान अपने प्रतिद्वंदियों को कैसे पटखनियां दी ?

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इटावा

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Anand Shukla

Oct 10, 2024

Mulayam Singh yadav 2nd death anniversary ​know inside story

छात्र राजनीति हो या फिर राष्ट्रीय राजनीति। मुलायम सिंह यादव ने अपने नाम का ऐसा सिक्का जमाया कि कोई उनकी चाहकर भी अनदेखी नहीं कर सकता था। राजनीति में उनकी औपचारिक एंट्री तो 70 के दशक में हुई थी, लेकिन बहुत ही कम समय में उन्होंने मुख्यमंत्री तक का सफर तय कर लिया। एक मौका ऐसा भी आया कि जब उनका नाम प्रधानमंत्री पद की रेस में भी शामिल हो गया था, हालांकि उनका यह सपना अधूरा रह गया।

उत्तर प्रदेशके इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को मूर्ति देवी और सुघर सिंह यादव के घर मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ। उनकी शुरुआती पढ़ाई अपने गृह जनपद में ही हुई। बाद में वह आगे की पढ़ाई के लिए इटावा पहुंचे। साल 1962 मे जब पहली बार छात्र संघ चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया और छात्र संघ के अध्यक्ष बन गए। बताया जाता है कि उन्हें पहलवानी का शौक था और वह अपने दाव-पेंच से प्रतिद्वंदियों को चित कर दिया करते थे।

28 साल की उम्र में विधायक बन गए थे मुलायम

छात्र राजनीति के दौरान ही वह अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थू सिंह के संपर्क में आए और उनकी मेहनत देख गुरु का आशीर्वाद मिला। एक छोटे से गांव से आना वाला लड़का 28 साल की उम्र में ही विधायक बन गया। वह 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर की सीट से पहली बार विधायक चुने गए।

आपातकाल के दौरान जेल गए थे मुलायम

आपातकाल के दौरान जिन नेताओं की गिरफ्तारी की गई थी, उनमेंमुलायम सिंह यादवभी शामिल थे। हालांकि, जब इमरजेंसी हटाई गई तो वह उत्तर प्रदेश की राम नरेश यादव सरकार में मंत्री भी बने। इसके बाद 1980 में वह लोकदल के अध्यक्ष चुने गए और 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष चुने गए।

1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह

उन्होंने महज कुछ ही साल में अपने नाम का सिक्का उत्तर प्रदेश की राजनीति में जमा लिया। वह पहली बार साल 1989 में मुख्यमंत्री बने। उन्हीं के कार्यकाल के दौरान राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई। हालांकि, इस घटना के बाद उनकी सरकार ज्यादा दिन तक सत्ता में नहीं रही और 24 जनवरी 1991 को सरकार गिर गई। साल 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी की नींव रखी।

वह 1993 में कांशीराम और मायावती की पार्टी बसपा की मदद से दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन, इस बार भी वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया। दो बार सीएम बनने के बाद उनका कद बढ़ गया और अब उनके कदम राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ने लगे।

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पीएम बनते- बनते रह गए थे मुलायम सिंह यादव

साल 1996 में वह मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। इस चुनाव में किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया और फिर अस्तित्व में तीसरा मोर्चा आया। इस बार मुलायम सिंह किंगमेकर की भूमिका में थे, लेकिन वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और देश के रक्षा मंत्री बने। यह सरकार भी गिर गई और फिर मुलायम सिंह यादव लखनऊ और दिल्ली की राजनीति ही करते रहे। वह तीसरी बार साल 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सरकार पूरे पांच साल तक चली।

समाजवाद की राजनीति करने वाले 'धरती पुत्र' ने 10 अक्टूबर 2022 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें साल 2023 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया।