यहां से शुरू हुई अनबन दोनों के बीच अनबन 1988 में इटावा जिला पंचायत के अध्यक्ष को लेकर शुरू हुई। दर्शन सिंह मुलायम सिंह के मित्र होने के नाते अपना हक यह मान कर जताते हुए जिला परिषद के अध्यक्ष की मांग कर बैठे कि मुलायम उनको इंकार नहीं करेंगे लेकिन मुलायम ने अपने भाई प्रो रामगोपाल यादव को दर्शन सिंह के मुकाबले काबिज कराना मुनासिब समझा।
मुलायम के इसी कदम के बाद दोनों के बीच दूरियां बन गईं और फिर आ गया 1989 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का वक्त जिसमें मुलायम समाजवादी जनता पार्टी से चुनाव मैदान में जसवंतनगर विधानसभा चुनाव में उतरे तो वहीं दर्शन सिंह कांग्रेस के टिकट पर मुलायम के मुकाबले उतरे लेकिन नतीजा मुलायम सिंह के पक्ष में आ गया। नतीजे के बाद मुलायम यूपी के सीएम पद की दौड़ में अजीत सिंह के मुकाबले प्रभावी होते हुए यूपी के सीएम की गद्दी पर काबिज हो गए। सीएम की गद्दी पर मुलायम के काबिज होते हुए ही दोनों के बीच तकरार और बढ़ चली। दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुट गए।
मुलायम के इसी कदम के बाद दोनों के बीच दूरियां बन गईं और फिर आ गया 1989 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का वक्त जिसमें मुलायम समाजवादी जनता पार्टी से चुनाव मैदान में जसवंतनगर विधानसभा चुनाव में उतरे तो वहीं दर्शन सिंह कांग्रेस के टिकट पर मुलायम के मुकाबले उतरे लेकिन नतीजा मुलायम सिंह के पक्ष में आ गया। नतीजे के बाद मुलायम यूपी के सीएम पद की दौड़ में अजीत सिंह के मुकाबले प्रभावी होते हुए यूपी के सीएम की गद्दी पर काबिज हो गए। सीएम की गद्दी पर मुलायम के काबिज होते हुए ही दोनों के बीच तकरार और बढ़ चली। दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुट गए।
मजबूत मुलायम को हरा पाने में सक्षम नहीं थे
1989 दर्शन सिंह यादव ने मुलायम को नीचे करने की भरसक कोशशि की। राजनीतिक तौर पर बेहद मजबूत हो चुके मुलायम को हरा पाने में दर्शन सक्षम नहीं हुए।
इटावा के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष त्रिपाठी बताते हैं कि 1991 के चुनाव में इटावा में इन दोनों नेताओं की वजह से हिंसा भी हुई जिसमें गोलियां भी चलीं।
1989 में दर्शन सिंह और मुलायम सिंह में टक्कर हुई, मुलायम जीत गए। 1993 में दर्शन ने मुलायम को कड़ी टक्कर दी थी। 1996 में मुलायम ने इस सीट को अपने भाई शिवपाल के लिए छोड़ दिया, लेकिन दर्शन से फिर मुकाबला हुआ लेकिन वे जीत नहीं पाए। दर्शन ने मैंनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा तब इनके खिलाफ सपा से बलराम सिंह यादव थे इस चुनाव में भी उन्हें शिकस्त मिली बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए।
1989 दर्शन सिंह यादव ने मुलायम को नीचे करने की भरसक कोशशि की। राजनीतिक तौर पर बेहद मजबूत हो चुके मुलायम को हरा पाने में दर्शन सक्षम नहीं हुए।
इटावा के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष त्रिपाठी बताते हैं कि 1991 के चुनाव में इटावा में इन दोनों नेताओं की वजह से हिंसा भी हुई जिसमें गोलियां भी चलीं।
1989 में दर्शन सिंह और मुलायम सिंह में टक्कर हुई, मुलायम जीत गए। 1993 में दर्शन ने मुलायम को कड़ी टक्कर दी थी। 1996 में मुलायम ने इस सीट को अपने भाई शिवपाल के लिए छोड़ दिया, लेकिन दर्शन से फिर मुकाबला हुआ लेकिन वे जीत नहीं पाए। दर्शन ने मैंनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा तब इनके खिलाफ सपा से बलराम सिंह यादव थे इस चुनाव में भी उन्हें शिकस्त मिली बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए।
दोस्त ने ही पहुंचाया राज्यसभा 2006 के आते-आते एक बार फिर राजनीतिक दुश्मन जिगरी दोस्त बन गए। मुलायम सिंह ने उन्हें समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करा कर 2012 में राज्यसभा भेज दिया। इस तरह उनकी दुश्मनी फिर दोस्ती में बदल गई। 74 साल के दर्शन सिंह का हार्ट अटैक के बाद निधन हो गया, लेकिन उनके भाई सोबरन सिंह यादव मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा से लगातार दूसरी बार समाजवादी पार्टी से विधायक हैं। वह अपने भाई की दोस्ती को कायम रखेंगे।