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भूजल गिरने से इटावा में बढ़ा पानी का संकट

locationइटावाPublished: Jul 22, 2019 01:06:20 pm

Submitted by:

Karishma Lalwani

– इटावा में पानी की कमी के संकट से जूझ रहे लोग
– 1993 से जलस्तर में आई गिरावट
– वॉटर रीचार्ज योजना फेल

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भूजल गिरने से इटावा में बढ़ा पानी का संकट

दिनेश शाक्य
इटावा. चंबल से जुडे उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में लगातार भूजल गिरने से पानी की कमी (Water Crisis) एक बडी समस्या बन कर उभर रही है। प्राकृतिक श्रोतों की कमी, पानी की बर्बादी, वॉटर रीचार्ज जैसी योजनाओं का फेल होना जिले में भूजल संकट को बढ़ावा दे रहा है।
जल निगम के अधिशाषी अभियंता जगदीश बाबू ने बताया कि 1993 से जिले में जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, ताखा जैसे कुछ क्षेत्रों में पिछले वर्षों में जल स्तर में सुधार हुआ है। शहरी क्षेत्र में स्थिति यह है कि समर पंप डेढ़ सौ फीट नीचे तक लगाए जा रहे हैं तब पानी की सुविधा मिल रही है। यही स्थिति जसवंतनगर, चकरनगर जैसे क्षेत्रों की भी है। पहले कुछ हैंडपंप लगाए गए थे लेकिन जलस्तर नीचे गिरने के कारण इनका इस्तेमाल भी न के बराबर होने लगा।उन्होंने कहा कि अगर समरपम्पों से ही पानी की बर्बादी रूक जाए, तो काफी पानी बचाया जा सकता है।
खतरनाक है आंकडे

इटावा जिले में साल दर साल भूजल स्तर बढ़ता व घटता गया। 1999 मे जसंवतनगर ब्लॉक में 20 से लेकर 30 फुट तक भूजल था। 2009 मे भूजल का आंकडा 60 से लेकर 70 फुट तक आ पहुंचा और साल 2019 में 55 से 65 फुट तक आ पहुंचा। इसी तरह से बसरेहर ब्लॉक में भूजल स्तर 1999 में 10 से 20 फुट तक, 2009 में 30 से 40 फुट तक और 2019 मे 60 से 65 फुट नीचे तक भूजल पहुंच गया। महेवा ब्लॉक में 1999 में 20 से 30 फुट, 2009 में 40 से 50 और 2019 में 50 से 60 फुट तक आ पहुंचा।
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इसी तरह से सैफई ब्लॉक में 1999 में 10 से 20, 2009 में 35 से 45 और 2019 में 50 से 60 फुट तक भूजल गिर गया। बढ़पुरा ब्लॉक में 1999 मे 45 से 50, 2009 में 35 से 45 और 2019 में 60 से 65 तक भूजल गिरा। ताखा ब्लॉक मे 1999 में 10 से 15, 2009 में 35 से 45 और 2019 में 25 से 30 फुट तक भूजल गिरा। भर्थना ब्लाक मे 1999 मे 25 से 35, 2009 मे 40 से 45 और 2019 मे 45 से 55 फुट तक भूजल गिरा। चकरनगर ब्लाक मे 1999 में 40 से 50 फुट,2009 में 30 से 40 फुट और 2019 में 65 से 75 फुट तक भू जल गिर गया है।
वॉटर रीचार्ज योजना फेल

इटावा में पानी की कमी का बड़ा कारण है प्राकृतिक श्रोतों की कमी। समरपंपों से पानी की खूब बर्बादी होती है। जगदीश बाबू ने कहा कि जिले में कुएं और झीलों की बड़ी मात्रा में कमी है। पानी की बर्बादी रोकने के साथ ही वॉटर रिचार्ज के लिए भी स्कीमें बनाई गईं लेकिन इन पर भी अमल नहीं हुआ। जिले में वॉटर रिचार्ज की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। सरकारी इमारतों की छतों पर भी बरसात का जल संचयन करने का भी कोई इंतजाम नहीं है।
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पक्की गलियां से मुसीबत

जगदीश बाबू ने कहा कि पहले कच्ची गलियां और नालियां थीं, जिससे बरसात के दौरान पूरा पानी जमीन में स्टोर हो जाता था। इससे कुछ हद तक वॉटर रिचार्ज हो जाता था और बर्बादी भी कम होती थी। अब कंक्रीट की सड़कें बनी हैं, जिससे बारिश का पानी जमीन के नीचे नहीं जाता है।
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बन रही जल सेना

नेचर कंजर्वेशन एंड ह्यूमन वेलफेयर सोसायटी के सचिव निर्मल सिंह ने यमुना की स्वच्छता के लिए बड़ा कदम उठाया है। समाजसेवी निर्मल सिंह जल सैनिकों की एक बड़ी फौज तैयार कर रहे हैं। योजना के अंतर्गत जिले के 8 ब्लॉकों में यमुना नदी के साथ अन्य सहायक नदियों की स्वच्छता के लिए 25 हजार जल सैनिक बनाने जाने का लक्ष्य है। उनका कहना है कि जलस्तर में लगातार गिरावट के लिए समरसेबल पंप सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी इन्ही समर पंपो के माध्यम से होती है। समर से पानी बहता रहता है और बर्बाद होता रहता है।
सरकारी योजनाएं फेल

सरकार ने जल संरक्षण की कई योजनाएं बनाई लेकिन इन पर अमल न होने के कारण योजनाएं कागजों पर ही दम तोड़ रही हैं। 2004 में बरसात के पानी के संरक्षण के लिए रूफटॉप वॉटर हार्वेस्टिंग स्कीम बनाई गई थी। इनमें बरसात का पानी छतों पर एकत्रित किया जाना था लेकिन इस योजना पर कोई काम नहीं हुआ हुआ।
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