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कभी राजनीति से खुद को दूर रखना चाहते थे प्रो राम गोपाल यादव, लेकिन मुलायम सिंह की ज़िद..

locationइटावाPublished: Jun 29, 2022 09:00:41 pm

Submitted by:

Dinesh Mishra

समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव कभी भी राजनीति मे नही आना चाहते थे लेकिन अपने बडे भाई और पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव (नेता जी) का आदेश टालने की हिम्मत नही दिखा सके ।नेता जी के आदेश के बाद प्रो.यादव ने अपने गृह जिले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर ब्लाक प्रमुख पद के लिए अपना नामांकन किया और रिकार्ड मतो से जीत हासिल की । साल 1987 मे बसरेहर के ब्लाक प्रमुख बन कर प्रो.यादव ने काग्रेस के पाले से यह सीट सपा के नाम कर ली थी।
 

File Photo of Mulayam Singh Yadav with Ram Gopal Yadav

File Photo of Mulayam Singh Yadav with Ram Gopal Yadav

जन्मदिन 29 जून पर विशेष
कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे रामगोपाल लेकिन बडे भाई नेता जी का आदेश टालने की नही हुई हिम्मत

राजनीति में आने से पहले प्रो.राम गोपाल यादव इटावा मुख्यालय पर स्थित के.के.कालेज में लेक्चरर थे । इसी के.के.कालेज से प्रो.रामगोपाल यादव ने अपना छात्र जीवन भी शुरू किया था । अपने बड़े भाई मुलायम सिंह के कहने से वह राजनीति में आए खुद से उनका मन राजनीति मेें आने का नहीं था ।
इटावा के के.के.कालेज के प्राचार्य डा.महेंद्र सिंह बताते है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव कालेज मे छात्र के रूप मे 20 जुलाई 1963 को बीएससी प्रथम वर्ष मे प्रवेश लिया था । रामगोपाल यादव 1971 और 72 मे कालेज मे प्रोक्टोरियल बोर्ड मे मेंबर के रूप मे शामिल हो गये ।
उनका बताते है यह बडा ही सौभाग्य का विषय है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव महाविधालय के यशस्वी छात्र रहे है । उसके बाद उन्होने यहॉ पर एक प्रोफेसर के रूप मे अपनी सेवाये लंबे समय तक देकर बेहतर कार्यकाल रहा । महाविधालय के प्रगति मे उन्होने हमेशा बढ चढ करके अपना योगदान दिया है । महाविधालय परिवार इस बात से बेहद गौरान्वित है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने छात्र के रूप मे निकल कर राजनैतिक उंचाई को छुआ ।
प्रो.रामगोपाल यादव का जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में 29 जून, 1946 को जन्म हुआ। यह वो दौर था। जब तकरीबन 200 साल बाद हिन्दुस्तान अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त होने जा रहा था। देश में स्वतंत्रता आंदोलन निर्णायक स्थिति में पहुंच चुका था। देश के लोगों में आज़ादी को लेकर एक नयी उमंग थी, एक नया जोश था।
रामगोपाल यादव पढ़ाई में हमेशा अव्वल दर्जे के छात्र रहे। उनकी शिक्षा-दीक्षा इटावा, आगरा और कानपुर में हुई। आगरा यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एम एससी और कानपुर यूनिवर्सिटी से पॉलीटिकल साइंस में एम ए करने के बाद पीएचडी की।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अध्यापन का कार्य शुरू किया। 1969 में वह के.के.पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, इटावा में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता नियुक्त हुए। आगे चलकर वह इसी कालेज में प्रोन्नत होकर रीडर बने। 1994 में वह चौधरी चरण सिंह डिग्री कालेज, हैंवरा, इटावा के प्रधानाचार्य बने। यहां पर उन्होंने 2006 तक अपनी सेवाएं दीं।
जीवन में राष्ट्र को सर्वाेपरि मानने वाले प्रो. रामगोपाल यादव का नाम हिन्दुस्तान की राजनीति में बहुत आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका सार्वजनिक जीवन पूरी तरह बेदाग रहा है। पेशे से शिक्षाविद प्रोफेसर रामगोपाल यादव संसद में जब किसी विषय पर बोलते हैं तो सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी उनके सारगर्भित, ओजस्वी, तथ्यों और तर्क से भरपूर भाषणों को ध्यान से सुनते हैं। जीवन में बेहद अनुशासित और संयमित रहने वाले प्रो. रामगोपाल यादव को अनुशासनहीनता और उदंडता बिल्कुल पसंद नहीं है। संसद हो या संसद के बाहर, वह बेहद विनम्र, शालीन और मर्यादित आचरण करते हैं। समाजवादी पार्टी ही नहीं दूसरे राजनीतिक दलों के लोग भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं।
समय के बेहद पाबंद प्रोफेसर रामगोपाल यादव सच्ची और खरी-खरी बात करने वाले इंसान हैं। वह चापलूसों और चाटुकारों से दूर रहते हैं। उनका मानना है कि इंसान के जीवन में समय सबसे अनमोल होता है, एक बार जो समय निकल जाता है। वह वापस लौटकर नहीं आता है। जो लोग समय की कद्र नहीं करते हैं उनसे कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं।
Ramgopal Yadav with Student Politics
प्रो. रामगोपाल यादव अक्सर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के हित में काम करते हैं। इस वजह से सभी दलों के लोग उनकी इज्जत करते हैं। सभी राजनैतिक दलों में उनके मित्र हैं। एक इंटरव्यू के दौरान प्रो.रामगोपाल यादव ने कहा था कि वो कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे । वो तो पेशे से प्राध्यापक थे। एक दिन नेता जी मुलायम सिंह जीप में आए और बोले कोई भी उम्मीदवार नहीं मिल रहा है तो तुम बसरेहर, इटावा से ब्लाक प्रमुख चुनाव के लिए नामांकन कर आओ । उसे जीतने के बाद फिर ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ और तब तक मैं सक्रिय राजनीति में पहुॅच चुका था ।
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