सपा-प्रसपा में लगी होड़ इस प्रक्रिया पर समाजवादी पार्टी की ओर से कोई आपत्ति प्रकट बेशक न की गई हो लेकिन जैसे ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के जिला अध्यक्ष सुनील यादव ने 17 दिसंबर को अपनी जिला कमेटी का ऐलान किया, जिसमें कई ऐसे पदाधिकारियों के नाम थे जो समाजवादी पार्टी में अभी भी किसी पद पर हैं। निश्चित है कि इसकी प्रतिक्रिया होनी ही थी और ऐसा हुआ भी। मंगलवार को समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष गोपाल यादव ने सिविल लाइन स्थित पार्टी कार्यालय पर बुलाई एक पत्रकार वार्ता में स्पष्ट किया कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के नेता उनकी पार्टी के पदाधिकारियों को अपनी पार्टी का पदाधिकारी बता रहे हैं, जबकि यह प्रक्रिया किसी भी तरीके से ठीक नहीं है। उनका साफ कहना है कि इससे एक बात स्पष्ट लग रही है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के नेताओं को अपने संगठन के लिए पदाधिकारी नहीं मिल रहे हैं। इसीलिए वह उनके दल से ताल्लुक रखने वाले पदाधिकारियों को अपने दल में घोषित करने में लगे हुए हैं।
लिस्ट घोषित करते ही मचा बवाल गोपाल यादव ने स्पष्ट किया कि उनकी सूचना के मुताबिक प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष सुनील यादव की ओर से पदाधिकारियों की जिस लिस्ट को घोषित किया गया उसमें करीब एक दर्जन के आसपास समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी शामिल हैं। इनमें से अवधेश, सविता और अनिल यादव को उन्होंने अपनी प्रेस वार्ता में दिखाया भी। उन्होंने दावा किया कि अगर यह दोनों पदाधिकारी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के वाकई में सचिव होते तो निश्चित है कि किसी भी सूरत में समाजवादी पार्टी की इस प्रेस वार्ता में मौजूद नहीं होते। दरअसल सोमवार को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के जिलाध्यक्ष सुनील यादव ने अपनी प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया था इटावा में अब समाजवादी पार्टी बची नहीं है। जो भी पदाधिकारी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं और बचेकुचे पदाधिकारी आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी छोड़ कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन जाएंगे।
दोनों खेमों से चल रही जोर-आजमाइश शिवपाल और अखिलेश खेमों की ओर से की जा रही जोर-आजमाइश के बीच दोनों खेमों से जुड़े हुए समर्थक, प्रशंसक और कार्यकर्ताओं के बीच में असमंजस की स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है। शिवपाल सिंह यादव की अगुवाई वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया दल के नेता समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए पदाधिकारियों को अपने दल में शामिल करने में जुटे हुए हैं और इसी को लेकर दोनों दलों के नेताओं के बीच गर्माहट बन गयी है। यह गर्माहट अब किसी दूसरे ओर जाती हुई दिखाई दे रही है।
सैफई से हुई शुरुआत असल में इसकी शुरुआत सैफई से हुई। जहां पर समाजवादी पार्टी के विधानसभा अध्यक्ष रामनरेश यादव को बिना इस्तीफा दिलाए ही शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का विधानसभा अध्यक्ष घोषित कर दिया। 9 दिसंबर को राजधानी लखनऊ में पार्टी की रैली के सिलसिले में एसएस मैमोरियल स्कूल में बुलाई गई बैठक में रामनरेश यादव को शिवपाल सिंह यादव की ओर से बुलाया गया और बिना सहमति के बाद उनको अपनी पार्टी लोहिया का घोषित कर दिया। उसके बाद से यह सिलसिला बदस्तूर चलता हुआ दिखाई दे रहा है।
दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा शिवपाल और अखिलेश की तरह ही गोपाल और सुनील के बीच भी लंबे समय से छत्तीस का आंकडा बना हुआ है। असल मे जिस समय शिवपाल को समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, उस समय उन्होंने इटावा के जिलाध्यक्ष के तौर पर सुनील यादव का मनोनयन किया था। लेकिन एक जनवरी 16 को राजधानी लखनऊ में हुए समाजवादी पार्टी के विशेष अधिवेशन में अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया और शिवपाल को मुख्यधारा से अलग किया गया। वैसे ही सुनील यादव को इस पद से हटा कर गोपाल यादव को जिलाध्यक्ष बना दिया गया। तब से दोनो के बीच अनबन कायम है और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के सृजन के बाद पदाधिकारियो की तोड़ फोड़ ने आग में घी डालने का काम किया है।