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अपने ही गढ़ में सपा नहीं खड़ा कर रही प्रत्याशी, चुनाव से पहले ही भाजपा को मिल गई बढ़त

locationइटावाPublished: Sep 13, 2018 08:12:15 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

इस बार यहां चुनाव में मुख्य विरोधी दल समाजवादी पार्टी ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।

Akhilesh Yadav

Akhilesh Yadav

इटावा. समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले इटावा जिले में इस बार पार्टी कुछ बदली-बदली नजर आ रही है। चुनाव माहौल में यहां से एक बड़ी खबर आई है जिसपर किसी को विश्वास नहीं हो रहा है। इस बार यहां के महेवा ब्लाक प्रमुख पद के लिए मुख्य विरोधी दल समाजवादी पार्टी ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। यह पहला मौका है जिसमें सपा किसी महत्वपूर्ण चुनाव से पीछे हटी है। इससे पहले सपा हर चुनाव में हिस्सा लेती रही है, भले ही नतीजा कुछ भी रहा हो।
सपा से प्रमोद यादव थे निर्वाचित-

पूर्व में अखिलेश यादव सरकार में हुए चुनाव में महेवा ब्लाक प्रमुख पद पर पार्टी की ओर से प्रमोद यादव निर्वाचित हुए थे, लेकिन भाजपा की सरकार बनने के बाद उनके खिलाफ भाजपा नेता गोविंद त्रिपाठी ने अपनी पत्नी रीना त्रिपाठी तो उतारकर अविश्वास प्रस्ताव ला दिया था, जिससे प्रमोद यादव को कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद अब एक बार फिर से एशिया के सबसे बड़े और पहले ब्लॉक महेवा में 15 सितंबर को रोचक उपचुनाव होने जा रहा है। आज इसी क्रम में नामांकन प्रक्रिया हुई, लेकिन समाजवादी पार्टी अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतार पायी। ऐसा पहली बार हो रहा है कि अपने गढ़ में सपा की मजबूती को चुनौती मिली हो।
सपा-भाजपा में रही है कांटे की टक्कर-

जबकि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 1982 में मुंशीलाल दोहरे को लोकदल से अपना प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस के हरिश्चन्द्र शुक्ला को चुनाव हरा दिया। उसके बाद 1988 में हुए चुनाव में एक बार फिर से मुंशीलाल दोहरे ने कांग्रेस के सूरज त्रिपाठी को एक वोट से चुनाव हराकर लोकदल का झंडा फहरा दिया। लंबे अंतराल के बाद इस देश में पंचायत एक्ट का गठन हुआ और ये ब्लॉक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया। तब तक मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया था और 1995 में बिजौली के रहने वाले सपा के स्थानीय नेता प्रेमदास कठेरिया को न सिर्फ टिकट दिया बल्कि चुनाव भी जिता दिया। सन् 2000 में सपा ने कुसुमलता गुप्ता को टिकट दिया, लेकिन इस चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी मंजुला दुबे, पत्नी शिवमहेश दुबे, वर्तमान जिलाध्यक्ष भाजपा चुनाव जीतने में सफल रहीं।
सपा सरकार में प्रमोद यादव बने ब्लॉक प्रमुख-

2005 में सपा ने एक बार फिर से पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया की पत्नी श्रीमती वीनेश को टिकट दिया और जिताने का काम किया। 2010 में सपा ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित होने पर प्रमोद यादव को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह बसपा की मनीषा सविता से केवल एक वोट से चुनाव हार गए। 2012 में सपा की सत्ता में वापसी होते ही प्रमोद यादव अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मनीषा को हटाकर निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख बन गए।
2016 में फिर जीता सपा ने चुनाव-

2016 में एक बार फिर सपा के प्रमोद यादव ने बसपा प्रत्याशी रीना त्रिपाठी पत्नी गोविंद त्रिपाठी को 92 मतों से हराकर सपा का झंडा फहरा दिया। इस तरह इस ब्लॉक में समाजवादी पार्टी ने हमेशा न सिर्फ प्रत्याशी उतारा बल्कि मजबूती से चुनाव भी लड़ा। लेकिन पहली बार पार्टी के संग़ठन कमजोर दिख रहा है। बावजूद इसके कि सपा के पास ब्लॉक में कई सक्रिय कार्यकर्ताओं की फौज, कद्दावर नेता व पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया की पत्नी बीडीसी सदस्य भी हैं, लेकिन चुनावी मैदान में किसी को नहीं उतारा गया।
प्रमोद यादव का यह है कहना-

सपा के निवर्तमान ब्लॉक प्रमुख प्रमोद यादव ने बताया कि वे और उनकी पत्नी दोनों ही सदस्य हैं। इस चुनाव में भी कई महीनों से वे टिकट मांगते रहे हैं। प्रेमदास कठेरिया के कड़े विरोध के चलते सपा जिलाध्यक्ष ने उनको यह कहकर टिकट देने से इन्कार कर दिया कि उपचुनाव में किसी दूसरी जाति के व्यक्ति को चुनाव लड़ाएंगे।
ये होंगे मैदान में-

बसपा कभी उपचुनाव लड़ती नहीं है और सपा व कांग्रेस आज की नामांकन प्रक्रिया में अपना प्रत्याशी घोषित नहीं कर पायी। अब भाजपा नेता गोविंद त्रिपाठी व भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष अशोक चौबे के बीच ही नूराकुश्ती तय है। वर्चस्व की जंग में देखना होगा कि जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधेगा। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल ये है कि अखिलेश यादव के नेत्रत्व वाली सपा इस महत्वपूर्व चुनाव में क्यों नहीं खड़ी हो रही है। जहां पार्टी अध्यक्ष 2019 चुनाव से पहले हर मोर्चे पर भाजपा को हराने की कोशिश में लग गए हैं, वहां सत्ता धारी पार्टी को ऐसी छूट देना किसी के गले नहीं उतर रहा।
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