ये भी पढ़ें- नरेश अग्रवाल का बहुत बड़ा विवादित बयान, मुलायम सिंह यादव के लिए कहा यह वैसे शिवपाल सिंह का सियासी सफर कम रोचक नहीं रहा है। इटावा जिले के सैफई में 6 अप्रैल 1955 को जन्मे शिवपाल 5 भाई और एक बहन में से एक हैं। इनमें मुलायम सिंह सबसे बड़े हैं। शिवपाल ने बीए तक पढ़ाई की है। मुलायम के राजनीति में आने के बाद उनकी सुरक्षा का पूरा जिम्मा शिवपाल के कंधों पर ही था। शुरूआत में कोआपरेटिव के जरिये राजनीति की बैसाखी पकड़ने वाले शिवपाल इटावा सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर काबिज हुए।
शिवपाल बन सकते थे सीएम- मुलायम सिंह द्वारा जसवंतनगर विधानसभा सीट छोड़े जाने के बाद शिवपाल 1996 से लेकर अब तक इस सीट पर अपनी जीत का परचम लहराते आ रहे हैं। 2003 में मुलायम की सरकार बनी तो शिवपाल मिनी मुख्यमंत्री की हैसियत में रहे। जब मायावती की सरकार बनी तो ये नेता प्रतिपक्ष रहे। 2012 यूपी चुनाव में सपा को बहुमत मिला तो माना जा रहा था कि यदि मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री नहीं बने तो शिवपाल सिंह यादव को कुर्सी मिलनी तय है, लेकिन जो हुआ उससे सब परिचित हैं। और यही से शुरू हुई सत्ता की असली जंग।
शुरू हुई शिवपाल-अखिलेश की जंग- अखिलेश सरकार में भी शिवपाल की ताकत कम नहीं हुई, वो कई मलाईदार विभागों के मंत्री रहे, लेकिन सरकार की विदाई की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती गई, वैसे-वैसे चाचा-भतीजे में तकरार बढ़ती गई। बदले हालात में शिवपाल सिंह यादव के इशारे पर अखिलेश यादव को सपा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। जिसके जवाब में मुख्यमंत्री भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को मंत्री पद से मुक्त कर दिया। अब दोनों के समर्थक लखनऊ के कालीदास मार्ग पर आमने-सामने आ गए। इन सबके पीछे शिवपाल सिंह यादव ने अपने चचेरे भाई राम गोपाल यादव को जिम्मेदार बताया।
….फिर किया प्रसपा का गठन- 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल के पर पूरी तरह से कतर दिए और उनके कई करीबियों को टिकट नहीं दिया। इस सबके बावजूद मुलायम सिंह यादव कभी अखिलेश के साथ तो कभी शिवपाल के साथ खड़े दिखे। लेकिन समाजवादी पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए शिवपाल ने नई पार्टी प्रसपा का गठन कर लिया। लोकसभा चुनाव के आते-आते उन्होंने अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दिया। कांग्रेस से लेकर कई अहम दलों से तालमेल की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहने पर पीस पार्टी समेत कई दलों से संपंर्क साधा और साथ चुनाव लड़ने का फैसले किया। शिवपाल खुद फिरोजाबाद सीट से राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे हैं, जहॉ पर वो अपनी जीत का दावा करते हैं। इसी कारण शिवपाल की यादवलैंड में बागीपन के तौर पर चर्चा जोरो पर है।
मैनपुरी में नहीं उतारा कोई प्रत्याशी- मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ प्रसपा ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। 1 अप्रैल को जब मुलायम सिंह यादव नामांकन भरने जा रहे थे, तो शिवपाल ने उनके घर जाकर मुलाकात की थी व उनका आशीर्वाद लिया। मैनपुरी में शिवपाल साइकिल के लिए वोट मांग रहे हैं, तो फिरोजाबाद में चाभी के लिए। फिरोजाबाद की जनता इतनी नासमझ नहीं है।
इटावा में इन्हें दिया टिकट- मुलायम परिवार के गढ़ इटावा में शिवपाल ने शंभू नाथ दोहरे को टिकट दिया है। इस सुरक्षित सीट में जाटवों की संख्या सर्वाधिक है और दोहरे भी जाटव समाज से आते हैं। पिछले तीन सालों से वह बसपा के लिए काम कर रहे थे, लेकिन गठबंधन में सीट सपा में जाने के बाद उन्होंने प्रसपा का दामन थाम लिया। सपा ने यहां पूर्व सांसद प्रेमदास के बेटे कमलेश कठेरिया और बीजेपी ने एससी-एसटी आयोग के चेयरमैन रामशंकर कठेरिया को अपना प्रत्याशी बनाया है। पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य इटावा में शिवपाल के साथ हैं। शिवपाल जाटव-यादव के समीकरण के सहारे जीत की उम्मीद बांधे हुए हैं।
लोगों ने कहा – शिवपाल नहीं लगा पाएंगे वोटों में सेंध- शिवपाल सिंह यादव के बेटे और प्रसपा के राष्ट्रीय महासचिव आदित्य यादव को जिला पंचायत चुनाव में हराने वाले दुष्यंत सिंह यादव का कहना है कि यहां के यादव मुलायम सिंह यादव के नाम पर ही वोट करते हैं। सपा के बाहर शिवपाल सिंह यादव का कोई वजूद नहीं है। रामगोपाल यादव को अपना राजनीतिक गुरु बताने वाले दुष्यंत बताते हैं कि मीडिया में चलता है कि कार्यकर्ताओं में शिवपाल की पकड़ मजबूत है, लेकिन हकीकत में इटावा-मैनपुरी-फिरोजाबाद में प्रोफेसर साहब (रामगोपाल) की बहुत इज्जत है। वहीं मुलायम अब भी हमारे लीडर हैं। शिवपाल यादव वोटों में कोई सेंध नहीं लगा पाएंगे।