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17 जून 1857 को जंगे आजादी के दीवाने से जब ए.ओ. हयूम ने साड़ी पहन कर बचाई थी अपनी जान

locationइटावाPublished: Jun 17, 2018 11:53:43 am

आजादी के संधर्ष के दरम्यान हयूम को मारने के लिये सेनानियों ने पूरी तरह से घेर लिया था…

Unknown facts about A O Hume Etawah UP news

17 जून 1857 को जंगे आजादी के दीवाने से जब ए.ओ. हयूम ने साड़ी पहन कर बचाई थी अपनी जान

दिनेश शाक्य

इटावा. कांग्रेस सस्थापंक के रूप में ए.ओ.हयूम को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 17 जून 1857 को उत्तर प्रदेश के इटावा मे जंगे आजादी के सिपाहियो से जान बचाने के लिये साडी पहन कर ग्रामीण महिला का वेष धारण कर भागना पडा था। अपनी जान बचाये जाने का पाठ हयूम कभी नही भूले। हयूम ना बचते अगर उनके हिदंुस्तानी साथियो ने उनको चमरौधा जूता ना पहनाया होता, सिर पर पगड़ी न बांंधी होती और महिला वेश धारण कर सुरक्षित स्थान पर ना पहुंचाया होता।

हयूम ने इटावा से भाग कर आगरा के लालकिले मे शरण लेनी पडी। हयूम के भारतीय वफादार सहयोगियो ने मदद कर उनकी जान बचाई। कहा जाता है कि आजादी के संधर्ष के दरम्यान हयूम को मारने के लिये सेनानियों ने पूरी तरह से घेर लिया था तब हूयम ने साडी पहन कर अपनी पहचान छुपाई थी। ए.ओ. हयूम तब इटावा के कलक्टर हुआ करते थे।
1912 मे इटावा के रहने वाले शिमला के संत डा.श्रीराम महरौत्रा लिखित पुस्तक ” लक्षणा ” का हवाला देते हुए चंबल अकाईब के मुख्य संरक्षक किशन महरौत्रा बताते है कि 1856 से 1867 तक इटावा के कलेक्टर रहे हयूम कुशल लोकप्रिय सुधारवादी शासक के रूप मे ख्याति पाई। 1857 मे गदर हो गया। लगभग पूरे उत्तर भारत से अग्रेंज शासन लुप्त हो गया। आज के वक्त मे यह विश्वास करने वाली बात नही मानी जायेगी कि एक भी अग्रंेज अफसर उत्तर भारत के किसी भी जिले मे नही बचा। सब अपनी अपनी जान बचा भाग गये या फिर छुप गये। लखनऊ की रेजीडेंसी या आगरा किले मे छुप गये। अपने परिवार के साथ लंबे समय तक आगरा मे रहने के बाद 1858 के शुरूआत मे हयूम भारतीय सहयोगियो की मदद से इटावा वापस आकर फिर से अपना काम काज शुरू किया।

एलन आक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को वैसे तो आम तौर सिर्फ काग्रेंस के संस्थापक के तौर पर जाना और पहचाना जाता है लेकिन ए.ओ.हयूम की कई पहचाने रही है। यमुना और चंबल नदी के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले इटावा मे 4 फरवरी 1856 को इटावा के कलक्टर के रूप मे ए.ओ.हयूम की तैनाती अग्रेज सरकार की ओर से की गई। यह हयूम की कलक्टर के रूप मे पहली तैनाती थी। ए.ओ.हयूम इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। आते ही हयूम ने अपनी कार्यक्षमता का परिचय देना शुरू कर दिया। 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से हयूम ने खुद के अंश से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे।

हयूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम हयूम से हयूमगंज की स्थापना करके हॉट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है।
इटावा में स्थानीय रक्षक सेना के गठन की भी बडी दिलचस्प कहानी है। 1856 में ए.ओ.हयूम इटावा के कलक्टर बन कर आये। कुछ समय तक यहां पर शांति रही। डलहौजी की व्ययगत संधि के कारण देशी राज्यों में अपने अधिकार हनन को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरद्ध आक्रोश व्याप्त हो चुका था। चर्बी लगे कारतूसों क कारण 6 मई 1857 में मेरठ से सैनिक विद्रोह भडक था। उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली से लगे हुये अन्य क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी ने अत्यधिक संवेदनशील घोषित कर दिये थे। ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीयों की संख्या भी बडी मात्रा में थी। हयूम ने इटावा की सुरक्षा व्यवस्था को घ्यान में रख कर शहर की सडकों पर गश्त तेज कर दी थी। 16 मई 1857 की आधी रात को सात हथियारबंद सिपाही इटावा के सडक पर शहर कोतवाल ने पकडे। ये मेरठ के पठान विद्रोही थे और अपने गांव फतेहपुर लौट रहे थे। कलक्टर हयूम को सूचना दी गई और उन्हें कमांडिंग अफसर कार्नफील्ड पर गोली चला दी लेकिन वी बच गया। विद्रोहियों ने कार्नफील्ड पर गोली चला दी लेकिन वह बच गया। इस पर क्रोधित होकर उसने चार को गोली से उडा दिया परन्तु तीन विद्रोही भाग निकले।

इटावा में 1857 के विद्रोह की स्थिति भिन्न थी। इटावा के राजपूत विद्रोहियों का खुलकर साथ नहीं दे पा रहे थे,19 मई 1857 को इटावा आगरा रोड पर जसवंतनगर के बलैया मंदिर के निकट बाहर से आ रहे कुछ सशस्त्र विद्रोहियों और गश्ती पुलिस के मध्य मुठभेड हुई। विद्राहियों ने मंदिर के अंदर धुस कर मोर्चा लगाया। कलक्टर हयूम और ज्वाइंट मजिस्ट्रेट डेनियल ने मंदिर का घेरा डाल दिया। गोलीबारी में डेनियल मारा गया और हयूम वापस इटावा लौट आये जब कि पुलिस घेरा डाले रही लेकिन रात को आई भीषण आंधी का लाभ उठा कर विद्रोही भाग गये।

ए.ओ.हयूम की देशी पलटन को बढपुरा की ओर रवाना करने के निर्देश दिया गया इस पलटन के साथ इटावा में रह रहे अग्रेंज परिवार भी थे,इटावा के यमुना तट पर पहुंचते ही सिपाहियों को छोडकर बाकी सभी इटावा वापस लौट आये। इसी बीच हयूम ने एक दूरदर्शी कार्य किया कि उन्होंने इटावा में स्थित खजाने का एक बडा हिस्सा आगरा भेज दिया था तथा शेष इटावा के ही अग्रेंजो के वफादार अयोध्या प्रसाद की कोठी में छुपा दिया था। इटावा के विद्रोहियों ने पूरे शहर पर अपना अधिकार कर लिया और खजाने में शेष बचा चार लाख रूपया लूट लिया। इसके बाद अगेंजों को विद्रोहियों ने इटावा छोडने का फरमान दे दिया। इटावा में अपने कलक्टर कार्यकाल के दौरान हयूम ने अपने नाम के अग्रेंजी शब्द के एच.यू.एम.ई.के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी हयूम की दूरदर्शिता की याद दिलाते है।
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