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हिन्दू मुस्लिम सौहार्द की मिसाल है लुट्टस त्योहार, छत से फेंके जाते बर्तन और खाने का सामान

locationइटावाPublished: Sep 19, 2018 02:06:32 pm

वैसे तो यमुना नदी के किनारे पर बसा इटावा शहर सांप्रदायिक सद्भाव की एक ऐसी मिसाल पेश करता है कि जिसकी कोई दूसरी बानगी नहीं मिलती।

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हिन्दू मुस्लिम सौहार्द की मिसाल है लुट्टस त्योहार, छत से फेंके जाते बर्तन और खाने का सामान

दिनेश शाक्य
इटावा. वैसे तो यमुना नदी के किनारे पर बसा इटावा शहर सांप्रदायिक सद्भाव की एक ऐसी मिसाल पेश करता है कि जिसकी कोई दूसरी बानगी नहीं मिलती। मुहर्रम के मौके पर यहां होने वाली लुट्टस पंरपरा ने इसमें चार चांद लगा दिये हैं। गम के तौर पर मुहर्रम को देखा जाता है लेकिन लुट्टस के कारण लोग खुशी को इस तरह से जाहिर करते हैं मानो जश्न का कोई पर्व हो। जिसमें हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम लोग भी खासी तादाद में शरीक होते हैं। यह साम्प्रदायिक सौहार्द की एक बड़ी मिसाल है। इस परम्परा के निर्वाह के चक्कर में कई लोगों को हमेशा चोट लगती रहती है लेकिन कोई भी आज तक पुलिस के पास शिकायत करने के लिए नहीं पहुंचा।


बता दें कि लुट्टस परम्परा की शुरूआत इटावा के एक हिंदू परिवार ने लम्बी मन्नत के बाद बेटे की पैदाइश होने पर शुरू किया था। इस परिवार के कुछ लोग अपने मासूम बच्चों को प्रतीक स्वरूप लटका कर परम्परा का निर्वाह तो करते ही हैं साथ ही बर्तन आदि लुटा कर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए परम्परा को जीवंत बनाए हुए हैं, जो आज इटावा की एक परम्परा के रुप में पर्व बन गया है। जानकारी के अनुसार लुट्टस परम्परा की शुरूआत झम्मनलाल की कलार मुहल्ले में रहने वाले गुप्ता परिवार से हुई। जहां पर लंबी मन्नत के बाद जब बेटे के रूप मे खुशी मिली तो जश्न के तौर पर मुहल्ले वालों को खूब पैसा बर्तन तो लुटाया ही साथ ही खाने पीने के लिए खूब पकवान भी बंटवाए। आज के परिवेश में परम्परा के नाम पर ये परिवार करीब एक करोड़ से अधिक का सामान लुट्टस के तौर पर बंटवाते हैं।

 

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मन्नत के बाद जिस बेटे की पैदाइश हुई उसका नाम रखा गया था फकीरचंद्र। फकीरचंद्र का परिवार इटावा में करीब 300 लोगों के बड़े परिवार में बदल कर एक मुहल्ले का स्वरूप ले चुका है। आजादी से पहले अंग्रेज सरकार के कुछ चुंनिदा अफसर भी इस लुट्टस परम्परा के मुरीद हुआ करते थे, जो मुहर्रम के दिनों में लुट्टस का आनन्द लेने के लिए आते रहे हैं। इस बात के प्रमाण इटावा के गजेटियर में भी लिपिबद्ध किए गए हैं। इटावा में लुट्टस परम्परा की शुरुआत करने वाले परिवार के सदस्य राकेश गुप्ता बताते हैं कि खानदान में कोई नहीं था, सिर्फ पांच बेटियां ही थीं। रूढ़वादी दौर में बेटा न होना बड़ी ही कचोटने वाली बात मानी जाती थी। उस समय तमाम मन्नतों के बाद बेटे का जन्म हुआ तो पूरा परिवार खुशी के मारे पूरे शहर भर में झूमता फिरा।

गुप्ता परिवार की अलका गुप्ता का कहना है कि हमारे सुसर के पिता ने बेटे की मन्नत मांगी थी मुहर्रम के दिनो में एक साथ दो बेटे पैदा होने की दोहरी खुशी स्वरूप लुट्टस शुरू की गई । मुहर्रम के दिनों में पूरी तरह से गम का माहौल सभी घर परिवार में रखा जाता है कोई भी नया काम परिवार में नहीं किया जाता है। मन्नत पूरी होने के बाद परिवार के उस समय के बुर्जगों ने तय किया कि बेटे की मन्न्नत पूरी होने के एवज में मुहर्रम के दौरान बर्तन और खाने पीने का सामान बंटवाया जाएगा, तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है । अगर वो मन्नत पूरी नही होती आज हमारे परिवार का वजूद नही होता। यह लुट्टस परम्परा देश की अनोखी परम्परा के तौर पर तब्दील हो चुकी है क्योंकि मुहर्रम के दौरान देश में ना तो ऐसा होता है और ना ही ऐसा अभी तक देखा गया है।

इनके बटे राकेश गुप्ता का कहना है कि उनके परिवार ने मन्नत पूरी होने के एवज में जिस लुट्टस परम्परा की शुरूआत की है उसे हर हाल में न केवल जारी रखेंगे बल्कि परिवार के नए सदस्यों को भी इस बात के लिए प्रेरित करते रहेंगे कि मन्नत ने खानदान को बनाया है इसलिए लुट्टस रूपी मन्नत परम्परा को हमेशा बरकरार रखें। लुट्टस परम्परा शुरू करने वाले परिवार के रिश्तेदार दूर दराज से लुट्टस के दौरान खासी तादात में इस दौरान जमा हो जाते हैं।
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कौमी तहफुज्ज कमेटी के संयोजक खादिम अब्बास का कहना है कि मुहर्रम के दौरान होने वाली लुट्टस पंरपरा की बदौलत का इटावा का नाम अनोखी पंरपरा में दर्ज है। इस पंरपरा की खासियत यह है कि इस पंरपरा की शुरूआत हिंदु भाई ने की और आज इसमें हिस्सेदारी मुस्लिम तबके के लोग खासी तादात में करते हैं। सबसे खास बात यह है कि कई हजार लोग भारी संधर्ष के बाद एक दूसरे के उपर कूद कर सड़को पर उतर करके छतों से फेंके जाने वाले बर्तनों और अन्य सामान को लूटते हैं लेकिन कोई किसी से फसाद नहीं करता है क्योंकि सब यह मानते है कि छतो से फेंके जाना वाला सामान सिर्फ सामान ना होकर बल्कि तब्बरूख यानि प्रसाद की माफिक है।


इटावा के अशोक कुमार त्रिपाठी का कहना है कि मुहर्रम के दौरान वैसे तो सुरक्षा के खासे इंतजामात किये जाते है लेकिन यहा पर होने वाली लुटटस के मददेनजर व्यापक पुलिस बल का लगाया जाता है क्यो कि लुटटस के दौरान लोगो का भारी जमाबडा लगता है। उनका कहना है कि मुहर्रम के दौरान लुटटस नाम की अनोखी परपंरा के बारे मे पता चला है वाकई मे यह परपंरा पुराने संस्कारो का एहसास कर रहा है ।

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