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47 प्रत्याशियों को हराकर पहली बार लोकसभा चुनाव जीते थे कांशीराम, मुलायम ने की थी मदद

locationइटावाPublished: Mar 14, 2020 02:52:00 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– कांशीराम की जयंती पर विशेष- इटावा से पहला चुनाव जीते थे कांशीराम- भाजपा प्रत्याशी को दी थी शिकस्त

BSP founder kanshi ram

47 प्रत्याइटावा के लोगों ने पहली बार कांशीराम को वर्ष 1991 के चुनाव में जितवा कर संसद की दहलीज के पार पहुंचाया थाशियों को हराकर पहली बार लोकसभा चुनाव जीते थे कांशीराम, मुलायम ने की थी मदद

दिनेश शाक्य
एक्सक्लूसिव
इटावा. 15 मार्च को दलित राजनीति की बदौलत देश के लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संस्थापक कांशीराम की जयंती है। समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा में पूरे आदर भाव के साथ याद किया जाता है। इटावा के लोगों ने पहली बार कांशीराम को वर्ष 1991 के चुनाव में जितवा कर संसद की दहलीज के पार पहुंचाया था। इसी वजह से कांशीराम को भी इटावा से खासा लगाव रहा। इटावा लोकसभा क्षेत्र की अनारक्षित सीट पर हुये उस उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले, जबकि उनके निकटतम भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 22 हजार 466 मत कम मिले थे।
पंजाब के रोपड जिले में 15 मार्च, 1934 को जन्मे विज्ञान स्नातक कांशीराम ने दलित राजनीति की शुरूआत बामसेफ नाम के अपने कर्मचारी संगठन के जरिए की। दलित कामगारों को एक सूत्र में बांधा और निर्विवाद रूप से उनके सबसे बड़े नेता रहे। पुणे में डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में साइंटिफिक असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके कांशीराम ने नौकरी छोड़कर दलित राजनीति का बीड़ा उठाया। दलितों को एकजुट कर उन्हें राजनीतिक ताकत बनाने का अभियान 1970 के दशक में शुरू किया। कई वर्षों के कठिन परिश्रम और प्रभावशाली संगठन क्षमता के बूते उन्होंने बसपा को सत्ता के गलियारों तक पहुंचा दिया।
बामसेफ के बाद उन्होंने दलित-शोषित मंच डीएस-फोर का गठन 1980 के दशक में किया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी बनाकर चुनावी राजनीति में उतरे। 1990 के दशक तक आते-आते बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका हासिल कर ली। कांशीराम ने हमेशा खुलकर कहा कि उनकी पार्टी सत्ता की राजनीति करती है और उसे किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहिए, क्योंकि यह दलितों के आत्मसम्मान और आत्मबल के लिए जरूरी है।
मुलायम ने की थी मदद
मुलायम की मदद से कांशीराम ने 1991 में इटावा से लोकसभा का चुनाव जीता था, जबकि मुलायम के खास रामसिंह शाक्य जनता पार्टी से प्रत्याशी थे और उन्हें मात्र 82624 मत मिले थे। इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे-नुकसान के चलते शांत हो गया। कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई, इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला। दो जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढ़ी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गये। वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव मे सपा बसपा ने एक बार फिर से गठजोड़ किया, लेकिन गठजोड़ का फायदा बसपा को तो मिला, सपा को इसका कोई फायदा नहीं मिला। उल्टे मायावती ने सपा के वोट बैंक छिटकने का आरोप लगा दिया जिससे तल्खी बरकरार है।
हर पल फोन पर हालचाल लेते थे मुलायम
कांशीराम जिस समय इटावा से चुनाव लड़े रहे थे, मुलायम आये दिन अनुपम होटल फोन करके उनका हालचाल लेते रहते थे। साथ ही होटल मालिक को यह भी दिशा निर्देश देते रहते थे कि कांशीराम हमारे मेहमान हैं उनको किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। होटल के मालिक रहे बल्देव प्रसाद वर्मा बताते हैं कि चुनाव लड़ने के दौरान कांशीराम उनके होटल में करीब एक महीने रहे थे। वैसे तो होटल के सभी 28 कमरों को एक महीने तक के लिये बुक करा लिया गया था, लेकिन कांशीराम खुद कमरा नंबर छह में रुकते थे। सात नंबर में उनका सामान रखा रहता था। इसी होटल में कांशीराम ने अपना चुनाव कार्यालय भी खोला था। वर्मा बताते हैं कि उस समय मोबाइल फोन की सुविधा नहीं हुआ करती थी और कांशीराम के लिये बड़ी संख्या में फोन आया करते थे। इस वजह से कांशीराम के लिये एक फोन लाइन उनके कमरे मे सीधी डलवा दी गई थी, जिससे वह अपने लोगों के संपर्क में लगातार बने रहते थे।
इटावा खादिम अब्बास ने दिया था नारा
नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा उड़ गए जयश्री राम’, बाकी राम झूठे राम, असली राम कांशीराम’ नारा लगा। इस नारे ने राजनीतिक बिसात में खासा परिवर्तन किया। यह नारा कांशीराम के पुराने साथी रहे खादिम अब्बास ने दिया था। खादिम आज भले ही बसपा की मुख्यधारा मे न हों, लेकिन वह आज भी कांशीराम से खासे प्रभावित रहे हैं, इसीलिए बसपा से निकाले जाने के बाद आज तक किसी भी दल का हिस्सा नहीं बने हैं।
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