इटावा के के.के.पी.जी.कालेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इटावा का पुरबिया टोला एक समय आध्यात्मिक साधना का बडा केंद्र रहा है। असल में पुरबिया टोला के वासी पुरातन पंरपराओं को निभाने में सबसे आगे रहने वाले माने गये हैं। इसी कड़ी में यहां पर धार्मिक आयोजन खासी तादात में होते रहे हैं। औरंगजेब के काल में यहां पर टकसाले खोली गई थीं। पुरबिया टोला गुप्तरूप से आघ्यात्मिक साधना का केंद्र रहा है। बेशक एक वक्त धार्मिक केंद्र के रूप में लोकप्रिय रहे पुरबिया टोला अति आधुनिक काल में पुरानी परपंराओं से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है जिसके प्रभाव में अब पहले की तरह से यहॉ पर जन्माष्टमी नही मनाई जाती है ।
इस मंदिर के पास स्थित कुएं का निर्माण सन 1875 में किया गया था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि मंदिर का निर्माण भी इसी के आसपास हुआ होगा। सन 1895 में रामगुलाम मंदिर की स्थापना हुई थी। इसके अलावा बड़ा मंदिर जो अपने सर्वाेच्च शिखर के लिए मशहूर है वह दो बार में निर्मित हुआ था। पहले चौधरी दुर्गा प्रसाद द्वारा बनवाया गया था। फिर 1907 में उनके निधन के बाद दिलासा राम की देखरेख में 1915 में बन कर तैयार हुआ था। तलैया मैदान में स्थित चौधरी दुर्गाप्रसाद के मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से करीब 90 फीट है। पहले इस मंदिर में भगवान शंकर की सोने चांदी की मूर्तियां स्थापित थी लेकिन अब वे यहां नहीं हैं।
इन सभी मंदिरों की बनावट काफी चित्ताकर्षक है और इनकी गगनचुंबी चोटियां देखकर दूर से ही इस बात का आभास हो जाता है कि यहां पर विशालकाय मंदिर हैं। मंदिरों की इन गगनचुम्बी चोटियों पर आकर्षक तरीके से तरह-तरह की नक्काशी की गई है और मंदिरों की दीवारों पर लगे पत्थरों को काट-काट कर उन पर देवी-देवताओं की तस्वीरें और तरह-तरह की नक्काशी की गई है। पुरबिया टोला में जो ग्यारह बडे़ मंदिर हैं, उनमें सबसे पुराना जियालाल का मंदिर है। यह मंदिर नालापार क्षेत्र में अवस्थित है। जियालाल मंदिर के कारण ही पुरबिया टोला नालापार की पहचान होती है।