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जब वंदे मातरम की आवाज से गूंज उठा था विक्टोरिया मेमोरियल, जानिये इसकी अनसुनी कहानी

locationइटावाPublished: Aug 11, 2018 04:48:34 pm

जार्ज पंचम तुम युगों-युगों तक हमें पर राज करो, तभी एक जोरदार आवाज के साथ एक पत्थर पंचम की फोटो पर जा लगा और कांच टूट गया।

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जब वंदे मातरम की आवाज से गूंज उठा था विक्टोरिया मेमोरियल, जानिये इसकी अनसुनी कहानी

इटावा. आजादी के 71वें स्वतंत्रता दिवस की बयार बहनी शुरु हो गई है। 1857 के विद्रोह से लेकर 1947 तक की आजादी की लड़ाई अपने कंधों के बलवूते लड़ने वाले इटावा ने आज भी उन अमर शहीदों की यादों को दिलों दिमाग पर सजाकर रखा है। 1930 की एक सुबह जार्ज पंचम की जुबली के मौके पर विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में अंग्रेजी कलक्टर की अगुवाई में शानदार कार्यक्रम का आयोजन हो रहा था। जिले के स्कूली बच्चों, एनसीसी कैडेट्स व स्काउट छात्र-छात्राओं को बुलाकर अंग्रेजी में प्रार्थना गायी जा रही थी। मेमोरियल हॉल के बीचों-बीच जार्ज पंचम की एक बड़ी सी कांच की तस्वीर लगाई गई थी। प्रार्थना के बोल कुछ इस तरह थे कि हे जार्ज पंचम तुम युगों-युगों तक हमें पर राज करो, तभी एक जोरदार आवाज के साथ एक पत्थर पंचम की फोटो पर जा लगा और कांच टूट गया। पत्थर फेंकने वाले बच्चे को जब पकड़कर उससे ऐसा करने का कारण पूछा गया तो सातवीं कक्षा के स्काउट छात्र ने जवाब दिया कि वह नहीं चाहता कि उस पर कोई युगों-युगों तक राज करें। बौखलाए अंग्रेज कलक्टर ने बच्चे को दस बेंत मारने का आदेश दिया। वंदे मातरम की गूंज के बीच दर्द की आवाज तो छुप गई लेकिन विक्टोरिया मेमोरियल आजादी के शंखनाद से गूंज उठा। यह शुरुआत थी उस आजाद भारत की लड़ाई की जो शहर के विक्टोरिया मेमोरियल से शुरू हुई और सातवीं कक्षा का वह बच्चा बाद में स्वतंत्रता सैनानी कृष्ण लाल जैन के रूप में उभरा।

यहां संजोयी गईं स्मृतियों
महारानी विक्टोरिया के नाम पर जिले के रजवाड़ा व धनाढ्य घरानों ने शहर के पक्का तालाब के किनारे विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का निर्माण कराया। जब ब्रिटिश सरकार ने रजवाड़ों को भारत दौरे पर आ रहीं इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को खुश करने की सलाह दी। पक्का तालाब के किनारे न सिर्फ आजादी की लड़ाई के रूप में बल्कि कुछ अन्य स्मृतियों के साथ इसे संजोया गया है। 15 अगस्त 1957 को अंग्रेजी हुकूमत की यादों को मिटाने के लिए विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का नाम बदलकर कमला नेहरू हॉल रखा गया और पक्के तालाब के बीचों-बीच अशोक स्तम्भ स्थापित कर दिया गया। यह निशानी थी कि भारत अब आजाद है।

शौर्यता को बढ़ावा देती ईमारत
ब्रिटिश क्राउन महारानी विक्टोरिया जब 19वीं शताब्दी के दूसरे दशक में भारत दौरे पर आयीं तो उन्हें खुश करने के लिए कलकत्ता, दिल्ली, मद्रास, सूरत व गोवा में विक्टोरिया मेमोरियल हॉल की स्थापना की गई। अन्य शहरों में भी इस प्रकार के मेमोरियल बनाए गए। जिन्हें वकिंगम पैलेस के रूप में डिजाइन किया गया था । हालांकि मुगल, मराठा और सामान्तों के असर वाले इटावा में मेमोरियल हॉल का स्वरूप एक अलग स्थापत्य कला के रूप में नजर आया। मंदिर और बुर्ज शैली के साथ ही हॉल का मुख्य भवन चर्चनुमा बनाया गया । मुख्य भवन के बाहर बने पौटिकों पर जलनिकासी के लिए सिंह मुख की स्थापना की गई। जो इसकी शौर्यता को बढ़ावा देती है। पास ही बना प्राचीन पक्का तालाब भी इसके प्रतिविम्ब को पानी में उतारकर आईना दिखाता है।

ईमारत को होगा जीर्णाेद्धार
महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती पर जगह-जगह भारत में भवन बनवाए गए थे। तत्कालीन जमींदारों के सहयोग से ही यहां विक्टोरिया मेमोरियल हॉल बनाया गया था, जो टाउन की तरह उपयोग आता रहा। आजाद भारत को विरासत में मिले इस ऐतिहासिक भवन का वर्ष 1989 में तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव खेर द्वारा नुमाइश के फंड से जीर्णाेद्धार कराया गया था। जमीदारों के सहयोग से पहली बार यहीं विक्टोरिया हॉल में इटावा प्रदर्शनी लगाई गई थी जो सात साल तक प्रत्येक वर्ष लगी। अब एक बार फिर से मेमोरियल हॉल को नया स्वरुप देने की तैयारी है। जिलाधिकारी सेल्वा कुमारी जे ने इसके जीर्णाेद्धार व रंग-बिरंगी लाइटों से रोशन करने की जिम्मेदारी एसडीएम सदर सिद्धार्थ को सौंपी है।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं को देखकर अंग्रेजों के भय से मुंह फेर लेते थे

इसी विक्टोरिया हॉल से जार्च पंचम के खिलाफ मुखर बिगुल फूंकने वाले कृष्णलाल जैन के नाती और राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार के प्रदेश महासचिव आकाशदीप जैन बताते है कि विक्टोरिया हाल मे जार्ज पंचम की जुबली मनाई जा रही थी । इटावा शहर के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के बाहर अंग्रेजी कलेक्टर की अगुवाई में बड़ा कार्यक्रम आयोजित हो रहा था । शहर के विभिन्न स्कूलों से एनसीसी कैडेट और स्काउट छात्र बुलाए गए थे । सब पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे एक बड़ी कांच की तस्वीर जार्ज पंचम की मध्य में रखी गई थी । अंग्रेजी में एक प्रार्थना गायी जा रही थी । जिसका आशय था कि हे जार्ज पंचम तुम युगों-युगों तक हम पर राज्य करो। तभी एक जोरदार आवाज के साथ एक पत्थर तस्वीर पर लगता है और तस्वीर टूट जाती है । पत्थर फेंकने के आरोपी सातवीं दर्जा के स्काउट छात्र कृष्णलाल जैन पत्थर फेंकने के आरोप मे पकडे लिये जाते है । पत्थर मारने के बारे में पूछने पर जबाव मिलता कि हम नहीं चाहते कि कोई हम पर युगों-युगों तक राज्य करे । जिस कारण 10 बेंत की सजा मिलती है और यहीं से शुरू होती है । जिन दिनों लोग कांग्रेस कार्यकर्ताओं को देखकर अंग्रेजों के भय से मुंह फेर लेते थे । जैन उस समय गले में कनस्तरिया बांध कर डुग्गी पीट-पीट कांग्रेस की सभाओं की मुनादी जोरदार स्वर में करते थे। यहीं से उनकी आवाज में इतनी कड़कता आयी कि जिंदगी के नौ दशक बाद भी उनकी वाणी में ओज कम न हुआ । वह बीस साल से भी कम आयु में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए थे। एआईसीसी की बैठक में पहली बार पहुंचे तो पं. जवाहर लाल नेहरू ने घोषणा की कि जो सदस्य नहीं है वह बाहर चले जाएं। कृष्णलाल जैन ने जेब से हाथ निकालकर कहा कि हम संयुक्त अवध प्रांत से चुनकर आये हैं। यह सुनते ही लाल बहादुर शास्त्री ने उनकी बांह पकड़कर मंच तक ले गए और कहा कि अब कांग्रेस को जरूर सफलता मिलेगी क्योंकि इतना कम उम्र का युवा चुनकर आने लगा है ।

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