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फिर बजेगा राग-द्वेष का डमरू, जनता नाचे या करे तांडव ये उसकी मर्जी

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान शांति-सद्भाव कायम रखना अब जनता के हाथ

Mar 10, 2019 / 10:45 pm

shyam bihari

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जबलपुर। लो!!! तैयार हो जाएं लोकसभा चुनाव के लिए तारीखें तय हो गईं। जल्द ही शहर-गांव की गलियां राजनीतिक रंग में रंग जाएंगी। अब जनता सिर आंखों पर बिठाई जाएगी। पैर छूने, गले लगाने की होड़ मचेगी। राग-द्वेष का डमरू बजेगा। डमरू बजाने वाले मदारी खास किस्म की गुलाटी मारेंगे। आमतौर पर डमरू के शोर में बंदर गुलाटी मारते हैं। चुनावी सीजन के मदारियों की हरकत को अन्यथा नहीं लेना चाहिए। यह लोकतंत्र की ताकत है कि वे मदारी बनने पर मजबूर हैं। जनता कुछ भी कहे, लेकिन उसे खुश होना चाहिए कि लोकतंत्र ने उसे असीम ताकत दी है। अब अपनी ही ताकत पहचान नहीं सकें, तो इसमें किसी और की गलती नहीं है। इसमें लोकतंत्र की भी कमजोरी नहीं है। जनता राजनीति के डमरू पर गुलाटी मारे, या तांडव करे, इसे तो जनता को ही तय करना है। हम किसी और पर गलत बयानी का आरोप नहीं लगा सकते। दूसरे की प्रचार शैली को हम नाटक भी नहीं कह सकते। अपने प्रचार के जो भी हथकंडे हैं, वे जनता के बीच से ही ईजाद किए गए हैं। इन पर जनता की ही छाप होती है। किसे जिताना है? किसे हराना है? इतने बड़े लोकतंत्र में इसकी समझ नहीं होना, आम आदमी की हार है। फिलहाल, जिसे जीतना है, उसे जीतने दें। हारने वाला अपने आप ही हार जाएगा। रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हुए राजनीति की बात करना सबकी जिम्मेदारी है। शायद फर्ज भी। अच्छे या बुरे की पहचान इसी समय करनी चाहिए। लेकिन, असल समस्या यही है कि इसी समय मूल मुद्दे पटरी से उतर जाते हैं। जनता बलवान है। समझदार है। अपनी दर्द समझती है। वोट देने का अधिकार भी समझती है। फिर समस्या आनी ही नहीं चाहिए। ताल ठोंककर मैदान में आम जनता भी आ जाए। सामने वाला जो चाहे, उसे उसकी की भाषा में जवाब दे। यदि आपको कोई नासमझ मान रहा है, तो उसे मानने दो। जो जीते उसे सिकंदर मानना है, तो अपने को भी सिकंदर मानो। आपकी ताकत दुनिया में किसी भी देश के नागरिक से ज्यादा है। फिर आ जाएं मैदान में। डमरू की आवाज पर गुलाटी नहीं मारें। तांडव करें। तभी आपकी असली ताकत दूसरों की समझ में आएगी।

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