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बच्चों के दिल से निकालें रिजल्ट का डर

Published: Apr 16, 2018 11:44:05 am

हर साल एग्जाम रिजल्ट के बाद बच्चों की खुदकुशी की कई खबरे सुनने को मिलती हैं।

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result fear

हर साल एग्जाम रिजल्ट के बाद बच्चों की खुदकुशी की कई खबरे सुनने को मिलती हैं। बच्चों के इस कदम के पीछे कुछ हद तक अभिभावक भी जिम्मेदार होते हैं। क्या वजह है कि हम बच्चों पर माक्र्स को लेकर इतना दबाव बढ़ा देते हैं कि वे खुदकुशी की कगार तक पहुंच जाते हैं? दरअसल हमने ही उनके दिमाग में यह भर दिया है कि परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आए तो जीवन में सफलता नहीं मिलने वाली। क्या आपको याद हैं कि आपके बोड्र्स में कितने नंबर आए थे? क्या आपने हर एंट्रेस एक ही बार में पास कर लिया था? क्या आपके पास कॅरियर को लेकर हमेशा एक ही विकल्प था? जरा सोचिए…
जल्द ही बोर्ड्स के रिज्लट आने शुरू हो जाएंगे। अब हाल कुछ ऐसा है कि इन दिनों हर पेरेंट अपने बच्चों को हर हालत में टॉप पर देखना चाहता है। यह भी सही है कि लाखों बच्चों में से कुछेक विद्यार्थी ही टॉपर हो सकते हैं। परीक्षा परिणामों में बच्चों के बहुत ज्यादा नंबर नहीं आने पर घर में मातम का वातावरण बन जाता है। बच्चों को अच्छे नंबर लाने के बावजूद डांट खानी पड़ती है और वो भी तब जब, उन्हें पेरेंट्स के थोपे गए विषयों का चयन करना पड़ा था। घर में उपजा यही दबाव बच्चों के भविष्य पर एक गंभीर प्रश्न चिह्न लगा देता है। जबकि हमें कभी अपने पेरेंट्स की इच्छाओं को ढोना नहीं पड़ा था। ऐसे में आप स्वयं ना जाने कब और कैसे खाते-पीते, मौज-मस्ती करते-करते शिक्षित और संस्कारी बन गए। याद कीजिए अपने बोड्र्स की मार्कशीट्स। आप लाख याद करने की कोशिश करेंगे, आपको याद नहीं आएगा कि आपको कितने नंबर मिले थे। तो फिर यही बात अपने बच्चों के लिए भी लागू क्यों नहीं करते। असल जिंदगी में देखा जाए तो माक्र्स शीट्स में बहुत ही अच्छे नंबर से बड़ी कुछ और चीजें हैं।
पहले बनें बच्चों के दोस्त

बच्चे खुदकुशी जैसा कदम कैसे उठा लेते हैं? असल में वे पेरेंट्स से कभी कह ही नहीं पाते कि उनके मन में क्या चल रहा है। आपको सबसे पहले अपने बच्चों का सच्चा मित्र बनना है, जिससे बच्चे आपके सामने अपनी समस्या, अपनी खुशी और अपने विचार खुलकर रख सकें। भय का भाव इस खुलेपन को समाप्त करता है और बच्चा हर बात छिपाना शुरू करके अंदर ही अंदर घुटना शुरू हो जाता है और कई बार यह घुटन कुंठा और फिर अवसाद की वजह बन जाती है। बच्चों के साथ बैठने से ही उनकी रुचि, योग्यता व सामथ्र्य को समझा जा सकता है। बच्चों को भ्रमित होने से बचाने के लिए पेरेंट्स को सजग मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। याद रखिए, एक अच्छे पेरेंट को अच्छा शिक्षक भी बनना आवश्यक है। बच्चों का सुशिक्षित होना अनिवार्य है लेकिन इससे भी अधिक जरूरी है कि वे अच्छे संस्कारों से युक्तहों तथा उनमें मानवीय मूल्यों को समझने का सामथ्र्य हो। उसे सफलता का अर्थ जीतने, उपलब्धियां अर्जित करने, सम्मान प्राप्त करने, प्रशंसा हासिल करने से न लेने दें।
बच्चों को रचनात्मक बनाएं

रचनात्मकता की प्रवृत्ति बच्चों को अपने माता-पिता और परिवार से मिलती है। यह प्रवृत्ति जीवन के प्रति दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है और निराशा के वातावरण को दूर कर आशा की किरण जगाती है। रचनात्मक व्यक्ति समाज में महत्वपूर्ण स्थान अर्जित करने में सफल तो हो ही जाता है।
बड़ी सोच में है बड़ा जादू

बड़ी सोच में बड़ा जादू माना जाता है। यही कहा जाता है कि महान सोचें और महान बनें। सकारात्मक सोच के साथ गलतियों से सबक लेकर पुन: सफलता प्राप्त करने का प्रयास शुरू कर दें तो सफलता दूर नहीं रह सकती। सकारात्मक विचारों को प्रोत्साहित करना हर पेरेंट का दायित्व है और इसके लिए यह आवश्यक है कि उसमें स्वयं सकारात्मकता का भाव हो। सुदृढ़ इच्छाशक्ति से ही बच्चे बहुमुखी प्रतिभा के साथ अपने जीवन में प्रगति कर सकते हैं। पेरेंट्स का बच्चों के प्रति आत्मविश्वास बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है।
समय प्रबंधन करना सिखाएं

समय का सदुपयोग करने की प्रवृत्ति बचपन से ही पेरेंट्स अपने बच्चों में डालकर उनका भविष्य भविष्य संवार सकते हैं। आज के दौर में जब बच्चों की दिनचर्या बहुत ज्यादा अस्त-व्यस्त है, ऐसे में पेरेंट्स को ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत होती है।
पहले बच्चे को जानें

प्रत्येक बच्चा बुद्धि, योग्यता, क्षमता आदि की दृष्टि से दूसरे बच्चों से अलग होता है। बच्चे की क्षमता के अनुरूप उसका लक्ष्य निर्धारण करना चाहिए। कई पेरेंट्स बच्चों को अंधी दौड़ में दौड़ा देते हैं और बच्चे दौड़ते-दौड़ते चौराहे पर दिशा भ्रमित हो जाते हैं। दोष सडक़ पर डाल दिया जाता है। यह दोष सडक़ का नहीं, सही दिशा नहीं देने का है। बच्चों की इच्छा शक्ति ?, उनकी योग्यता, उनकी प्राथमिकता इत्यादि के आधार पर ही लक्ष्य का निर्धारण किया जाना उचित है। लक्ष्य निर्धारण के बाद लक्ष्य के प्रति संकल्पबद्ध होकर कार्य करने की प्रेरणा देकर हम अपनी उचित भूमिका का निवर्हन कर सकते हैं। बच्चों के साथ विचार-विमर्श कर अल्पकालीन और दीर्घकालीन कार्य योजना बनाएं। इसके साथ ही मार्ग में आने वाली समस्याओं को चिह्नित कर उनके समाधान के तरीकों पर भी मंथन किया जाना आवश्यक है। हर पेरेंट की आर्थिक या सामाजिक परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती है। एक अच्छा पेरेंट वही माना जाता है, जो बच्चों को हीनता की भावना से मुक्त रखे। देखा जाए तो वर्तमान परिवेश में पेरेंट्स की जिम्मेदारी, कत्र्तव्य, समझ और उनकी सोच की व्यापकता बढ़ गई है। वे अपने पेरेंट्स की तुलना में अधिक शिक्षित, अर्थ संपन्न एवं अपने बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। अपने एक या दो बच्चों के पालन-पोषण व उनकी परवरिश में अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं। इसके बावजूद उनके मन में असंतोष का भाव बना रहता है, असंतोष का यह भाव हटा दें।
विकल्पों की दें जानकारी

निर्णय लेने की क्षमता जीवन के हर पहलू में आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को हर पल हर स्थान पर किसी न किसी प्रकार का निर्णय लेना होता है। अनेक अवसरों पर अनेक विकल्प मौजूद होते हैं और इन विकल्पों में से सही विकल्प को चुनना ही सही निर्णय होता है। बच्चों को अनेक विकल्पों के बारे में समुचित जानकारी देकर उन्हें सही विकल्प चुनने के लिए सामथ्र्यवान बनाना प्रत्येक पेरेंट की जिम्मेदारी है। बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति तभी विकसित हो सकती है, जब हम सभी बचपन से ही इसके प्रति गंभीर हों। सीखने की प्रवृत्ति भी एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ होनी चाहिए। सीखने की यह प्रवृत्ति यदि पेरेंट्स में हो तो स्वाभाविक रूप से यह बच्चों में भी बढ़ती जाती है। अच्छी बातों को सीखकर जीवन को सार्थक मोड़ दिया जा सकता है, जबकि विध्वंसात्मक गतिविधियों को सीखकर जीवन को नारकीय मोड़ पर डाला जा सकता है। बच्चों का चंचल होना स्वाभाविक है। उनकी चंचलता बनाए रखकर एकाग्रता बढ़ाने के प्रति पेरेंट्स को गंभीर होना चाहिए। एकाग्रचित होकर बच्चे किसी भी कार्य पूरा कर सकते हैं।
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